भारत में बेरोजगारी की समस्या पर लेख | Unemployment in India (Bharat me berojgari ki samasya) in hindi
अगर हम बहुत ही सरल शब्दो मे समझना चाहे, तो बेरोजगारी का सीधा सीधा संबंध काम या रोजगार के अभाव से है. या कहा जा सकता है कि जब किसी देश की जनसंख्या का अनुपात वहा उपस्थित रोजगार के अवसरो से कम हो, तो उस जगह बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न हो जाती है. बढ़ती बेरोजगारी के कई कारण हो सकते है जैसे बढ़ती जनसंख्या, शिक्षा का अभाव, ओधगिकरण आदि.
भारत में बेरोजगारी की समस्या (Unemployment in India in hindi)
बेरोजगारी / बेकारि से तात्पर्य उन लोगो से है, जिन्हे काम नहीं मिलता ना कि उन लोगो से जो काम करना नहीं चाहते. यहा रोजगार से तात्पर्य प्रचलित मजदूरी की दर पर काम करने के लिए तैयार लोगो से है. यदि किसी समय किसी काम की मजदूरी 110 रूपय रोज है और कुछ समय पश्चात इसकी मजदूरी घटकर 100 रूपय हो जाती है और कोई व्यक्ति इस कीमत पर काम करने के लिए तैयार नहीं है, तो वह व्यक्ति बेरोजगार की श्रेणी मे नहीं आएगा. इसके अतिरिक्त बच्चे, बुड़े, अपंग, वृध्द या साधू संत भी बेरोजगारी की श्रेणी मे नहीं आते.
जनसंख्या वृध्दी और बढ़ती बेरोजगारी :
जनसंख्या वृध्दी और शिक्षा की कमी मे गहरा संबंध है जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ती गयी, उनके हिसाब से न तो शिक्षा के साधनो की वृध्दी हुई ना ही परिवार मे हर बच्चे को ठिक से शिक्षा का अधिकार मिल पाया ना व्यवस्था. आज भी भारत मे अधिक्तर जनसंख्या अशिक्षित है. परिवार मे ज्यादा बच्चो के चलते हर किसी को शिक्षा देने मे माता पिता असमर्थ पाये गए, जिसके परिणाम यह हुये,कि या तो परिवार मे बेटियो से शिक्षा का अधिकार छीना जाने लगा या पैसो की कमी के चलते परिवार के बड़े बच्चो को अपनी पढ़ाई छोड़कर मजदूरी मे लगना पढ़ा| जिसके परिणाम उन्हे आगे जाकर बेरोजगारी के रूप मे भुगतने पड़े.
जिस हिसाब से जनसंख्या मे वृध्दी हुई उस हिसाब से उद्योग और और उत्पादन मे वृध्दी नहीं हुई| यह भी बढ़ती बेरोजगारी का एक कारण है. तेजी से ओध्योगीकरण भी बढ़ती बेरोजगारी का एक कारण है. पहले भारत मे हस्तकला का काम किया जाता था, जो विश्वप्रसिध्द था, परंतु ओध्योगीकरण के चलते यह कला विलुप्त सी हो गयी और इसके कलाकार बेरोजगार.
शिक्षा और बेरोजगारी :
शिक्षा और बेरोजगारी का भी गहरा संबंध है, हमने पहले ही कहा आज भी भारत की जनसंख्या काफी बड़े अनुपात मे अशिक्षित है, तो आशिक्षा के चलते बेरोजगारी का आना तो स्वभाविक बात है. परंतु आज कल अशिक्षा के साथ साथ एक बहुत बड़ी समस्या है, हर छात्र के द्वारा एक ही तरह की शिक्षा को चुना जाना. जैसे आज कल हम कई सारे इंजीनीयर्स को बेरोजगार भटकते देखते है, इसका कारण इनकी संख्या की अधिकता है. आज कल हर छात्र दूसरे को फॉलो करना चाहता है, उसकी अपनी स्वयं की कोई सोच नहीं बची वो बस दूसरों को देखकर अपने क्षेत्र का चयन करने लगा है . जिसके परिणाम यह सामने आए है कि उस क्षेत्र मे रोजगार की कमी और उस क्षेत्र के छात्र बेरोजगार रहने लगे. आज कल न्यूज़ पेपर मे यह न्यूज़ मे आम बात है कि छोटी छोटी नौकरी के लिए भी अच्छे पढे लिखे लोग आवेदन करते है, इसका कारण उनकी बेरोजगारी के चलते उनकी मजबूरी है.
बेरोजगारी के प्रकार (Types of unemployment):
- संरचनात्मक बेरोजगारी : यदि किसी देश की अर्थव्यवस्था मे कोई परिवर्तन होता है और उसके कारण जो बेरोजगारी उत्पन्न होती है उसे संरचनात्मक बेरोजगारी कहते है.
- अल्प बेरोजगारी : जब कोई व्यक्ति जीतने समय काम कर सकता है, उससे कम समय उसे काम मिलता है या कह सकते है कि उसे अपनी क्षमता से कम काम मिलता है, उसे अल्प बेरोजगारी कहते है. इस अवस्था मे व्यक्ति वर्ष मे कुछ समय बेरोजगार रहता है. यह बेरोजगारी 2 प्रकार की है :
- दृश्य अल्प बेरोजगारी
- अदृश्य अल्प बेरोजगारी
दृश्य अल्प बेरोजगारी : इस बेरोजगारी मे व्यक्ति को अपनी क्षमता से कम समय काम मिलता है जिसके फलस्वरूप उसकी आय भी कम होती है.
अदृश्य अल्प बेरोजगारी : इस बेरोजगारी की अवस्था मे व्यक्ति को उसके द्वारा किए गए काम के अनुपात मे कम वेतन मिलता है . मतलब वह ज्यादा समय काम करता है और वेतन कम होता है.
- खुली बेरोजगारी : यह बेरोजगारी का वह रूप है, जिसमे व्यक्ति काम करने के योग्य भी है और वह काम करना भी चाहता है, परंतु उसे काम नहीं मिलता . इस तरह की बेरोजगारी समान्यतः कृषि श्रमिकों, शिक्षित व्यक्तियों या उन लोगो मे पायी जाती है, जो काम की तलाश मे गाव से शहर की तरफ आए हो और उन्हे काम नहीं मिलता.
- मौसमी बेरोजगारी : भारत कृषि प्रधान देश है, यहा साल मे कुछ समय जैसे फसलों की बुआई कटाई के समय श्रमिकों की आवश्यकता अधिक होती है, वही अन्य समय वे बेरोजगार हो जाते है. उसी प्रकार यदि किसान स्वयं भी साल मे केवल एक फसल लेता है, तो अन्य समय वह बेरोजगार हो जाता है.
- छिपी बेरोजगारी : छिपी बेरोजगारी से तात्पर्य होता है, कि इसमे ऐसा लगता तो है कि व्यक्ति काम मे लगा है, परंतु वास्तविकता मे ईएसए नहीं होता और उसकी आय नहीं होती.
बढ़ती बेरोजगारी को देखते हुये कई योजनाए लागू की गयी, उनमे से कुछ हम आपको बता रहे है:
महात्मा गाँधी रोजगार गेरेंटी योजना | 25 अगस्त 2005 को इस योजना को अधिनियमित किया गया. इस योजना के अंतर्गत गरीब ग्रामीण परिवार को वर्ष मे 100 दिन रोजगार उपलब्ध कराना अनिवार्य किया गया. महात्मा गाँधी रोजगार गेरेंटी योजना के अंतर्गत प्रतिदिन न्यूनतम मजदूरी 220 रूपय तय की गयी थी. |
मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना | इस योजना का मुख्य उद्देश्य युवाओ को स्वरोजगार के लिए प्रेरित करना है. फिलहाल इस योजना का केंद्र उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और राजस्थान है. |
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Sneha
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