चाबहार बंदरगाह का इतिहास व महत्त्व | Chabahar Port history and importance for India in Hindi

चाबहार बंदरगाह का इतिहास व महत्त्व  | Chabahar Port history and importance for India in Hindi 

चाबहार बंदरगाह को भारत सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में गिना जाता हैं, लेकिन इसके साथ ये भी सच ये हैं कि चाबहार बन्दरगाह को विकसित करने के पीछे ना सिर्फ भारत को लाभ हैं, बल्कि ईरान और अफगानिस्तान को भी इस बंदरगाह से काफी फायदा होगा. हालांकि ये बन्दरगाह भारत को आर्थिक रूप से बहुत लाभ पहुंचाने वाला है, लेकिन यह भारत के लिए कूटनीतिक और सामरिक महत्व रखने वाला बन्दरगाह भी हैं.   

चाबहार बंदरगाह

चाबहार का इतिहास (Chabahar Port History)

1017 में भारत भ्रमण करने वाले पर्सियन विद्वान अल बिरूनी  ने एक  किताब तारीख एल-हिन्द (भारत का इतिहास) लिखी थी, जिसमें उन्होंने लिखा था कि भारत एक कस्बे से शुरू होता है, जिसका नाम “तिस” हैं जिसे बाद में तिज किया गया. अलेक्सेंडर ने भी 326 ईसा पूर्व में भारत जाते समय अपने सैन्य बल के साथ इस तिज़ को पार किया था. अब यह तिस ही आधुनिक चाबहार हैं जो कि 1970 में अस्तित्व में आया था. और 1980 में ईरान-ईराक युद्ध के समय यह तेहरान के लिए भी महत्वपूर्ण बन गया, इसीलिए कालान्तर में इसे आर्थिक बंदरगाह के रूप में विकसित किया गया. 

चाबहार बंदरगाह कहाँ स्थित हैं ? (Location of Chabahar Port)

चाबहार बंदरगाह ईरान के सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत में स्थित हैं. ओमान की खाड़ी में स्थित यह बंदरगाह  ईरान  के दक्षिणी समुद्र तट को  भारत के पश्चिमी समुद्री तट से जोड़ता है. चाबहार बंदरगाह ईरान के दक्षिणी-पूर्वी समुद्री किनारे पर बना हैं. इस बंदरगाह को ईरान द्वारा व्यापार मुक्त क्षेत्र घोषित किया गया हैं. यह पाकिस्तान के गवादर बंदरगाह के पश्चिम की तरफ मात्र 72 किलोमीटर की दूरी पर हैं.

अभी ईरान का सबसे बड़ा बंदरगाह “बंदर-अब्बास” है, जो कि यूनाइटेड अरब अमीरात और ओमान के बहुत नजदीक स्थित हैं,और इस पर बड़े देशों द्वारा चौकसी की जाती हैं, क्योंकि यहाँ से मध्य पूर्वी देश विभिन्न देशों को अपना बहुकिमती तेल भेजते हैं. ऐसे में यह ईरान के लिए एक स्वायत और स्वतंत्र बंदरगाह नहीं हैं, इसलिए ईरान को एक अन्य स्वतंत्र बंदरगाह की आवश्यकता है, जिसके लिए चाबहार में सम्भावना तलाशी जा सकती हैं.

इस बंदरगाह की भौगोलिक स्थिति भारत और अफगानिस्तान के साथ भी व्यापार के लिए बहुत अनुकूल हैं, क्यूंकि अफगानिस्तान के साथ भारत का केवल थल मार्ग ही जुड़ सकता हैं जो कि पाकिस्तान से होकर गुजरता हैं. अफगानिस्तान सब तरफ से थल से गिरा हुआ देश हैं, यहाँ तक पहुँचने के लिए कोई समुद्री मार्ग नहीं हैं, ऐसे में भारत के लिए ईरान का ये बंदरगाह ईरान के अलावा अफगानिस्तान के साथ के संबंधो को सुधारने में भी सहायक हो सकता हैं.

चाबहार परियोजना (Chabahar Project)

अभी तक मात्र 2.5 मिलियन टन तक  के समान ढोने की क्षमता वाले इस बंदरगाह को भारत,ईरान और अफगानिस्तान मिलकर इसे 80 मिलियन टन तक समान ढोने की क्षमता वाला बन्दरगाह विकसित करने की परियोजना बना रहे हैं. अफगानिस्तान और मध्य एशिया के साथ व्यापारिक रिश्ते मजबूत करने के लिए भारत ने ईरानी बंदरगाह का निर्माण शुरू किया था, और इसकी अच्छी बात ये है कि इस बंदरगाह के कारण भारत को पाकिस्तान के भीतर से होते हुए अफगानिस्तान और ईरान की तरफ जाने की जरूरत नहीं होगी.

 मई 2015 में भारत ने ईरान के साथ महत्वपूर्ण समझौता किया था, जिसके अंतर्गत चाबहार बंदरगाह के विकास में भारत के योगदान का अनुबंध किया गया था. चाबहार समझौते से भारत, ईरान और अफगानिस्तान तीनों देशों को फायदा मिलेगा. ईरान के लिए ये अलगाव के वर्षों का अंत होगा. 2015 में यूएस-ईरान न्यूक्लिअर समझौते के बाद इस त्रिपक्षीय समझौते से ईरान को अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने का मौका मिला हैं. भारत के लिए यह ईरान और मध्य एशिया तक व्यापार के क्षेत्र में  अपने पैर ज़माने का सुअवसर होगा. वहीँ अफगानिस्तान के लिए अपनी पाकिस्तान पर निर्भरता खत्म करने का एक सुनहरा अवसर होगा.

चाबहार बंदरगाह परियोजना की शुरुआत (Initiation of Chabahar Project)

2002  में ईरान और तत्कालीन भारत  के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हसन रौहानी और ब्रजेश मिश्रा के मध्य हुई वार्ता में चाबहार बंदरगाह के विकास में भारत के योगदान की नीव रखी गयी थी. इसके कुछ महीने बाद जनवरी 2003 में ईरान के राष्ट्रपति खातमी भारत में गणतंत्र दिवस की परेड में मुख्य अतिथि के रूप में आए और तब उन्होंने और तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भारत के इस महत्वकांक्षी परियोजना पर हस्ताक्षर किए. चाबहार आधारित इस परियोजना का उद्देश्य के अनुसार दक्षिण एशियन उपमहाध्विपों को पर्सियन खाड़ी, अफगानिस्तान, मध्य एशिया और यूरोप से जोड़ना था. लेकिन कालान्तर में कुछ कारणों से यह परियोजना सही दिशा नहीं पकड़ सकी,और इस पर काम रुक गया, लेकिन 2015 में इसे पुन: जीवित किया गया .

क्यों लगा इतना समय इस परियोजना में? (Why so much time was taken for this Project)

  • भारत और ईरान के बीच यह सामरिक-आर्थिक सहयोग दोनों देशों की तालिबानी हुकूमत के खिलाफ पृष्ठभूमि बनाने जैसा था और इस तरह से दोनों देश उस समय अहमद शाह मसूद  के नेतृत्व वाले उत्तरी गठबंधन के प्रमुख पीठ के बीच जा फंसे.  इस कारण खातमी-वाजपेयी की ये द्विपक्षीय महत्वकांक्षी परियोजना उस समय अपने लक्ष्य की तरफ नहीं बढ़ पाई.
  • सबसे बड़ी समस्या जो भारत के इस दिशा में व्यापार करने की थी, वो थी मार्ग में पाकिस्तान का होना,क्योंकि पाकिस्तान अपना थल और वायु मार्ग भारत के लिए बंद रखता था, जिस कारण भारत को चाबहार परियोजना को यथार्थ के धरातल तक पहुंचाने में समय लगा. वास्तव में पाकिस्तान और भारत के सम्बंध इतने वर्षों में कोई स्थिरता प्राप्त नहीं कर सके,ऐसे में चाबहार परियोजना का सफल होना मुश्किल होता चला गया.
  • इसके अलावा तात्कालिक अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के ईरान को इराक और नार्थ कोरिया के साथ “एक्सिस ऑफ़ एविल” में शामिल करने पर भारत को भी तेहरान के साथ अपने रिश्ते ख़त्म करने पड़े, जिसके कारण यह परियोजना ना चाहते हुए भी रुक गयी. ईरान के विवादित न्यूक्लियर प्रोग्राम के कारण भी चाबहार परियोजना आगे नहीं बढ़ सकी.

चाबहार उदघाटन (Chabahar Inauguration)

 चाबहार के “शाहिद बहिश्ती बंदरगाह” के प्रथम चरण के उद्घाटन ईरान के प्रधानमंत्री रोहानी ने किया था, जिसमें भारत के तत्कालीन शिपिंग राज्य मंत्री पोन राधकृष्णन ने भारत का प्रतिनिधित्व किया. भारत-ईरान-अफगानिस्तान की चाबहार पर त्रिपक्षीय वार्ता भी इस उद्घाटन समारोह के साथ अनौपचारिक रूप से सम्पन्न हुई, जिसमें 3नों देशों ने कनेक्टिविटी इन्फ्रास्ट्रक्चर जिसमें पोर्ट, रोड और रेल नेटवर्क समग्र विकास पर बात की.

रौहानी ने इस उद्घाटन समारोह में कहा कि यह रास्ता जमीन, समुद्र और हवा तीनों माध्यम से जुड़ा होना चाहिए. इस उद्घाटन समारोह में ही यह बात भी सुनिश्चित की गयी, कि चाबहार पोर्ट के माध्यम से 1,10,000 टन गेहूं  भारत से अफगानिस्तान भेजे जायेंगे.

भारत कई वर्षों से अफगानिस्तान के अपने व्यापारिक और कुटनीतिक रिश्ते मजबूत करना चाहता हैं और चाबहार बंदरगाह इस दिशा में भारत को काबुल तक पहुँचने में मदद करेगा. और यह बंदरगाह इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्यूंकि पाकिस्तान ने भारत को वाघा बॉर्डर को पार कर पकिस्तान के थल मार्ग से होते हुए अफ्गानिस्तान में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी थी. ये बात भी दोनों देशों के नेताओं ने सांकेतिक भाषा में स्वीकार की थी.

23 मई 2016 को  भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ईरान दौरे पर  भारत, ईरान और अफगानिस्तान के त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किये गए 

 समझौते में क्या हैं?? (About Agreement)

2015  में साईन किये गये अनुबंध के अनुसार भारत और ईरान की इन्फ्रास्ट्रकचर कंपनियों के मध्य जो भी व्यापारिक सौदा होगा, वो इस बंदरगाह के माध्यम से होगा, मतलब सामान के आवगमन के लिए इस बन्दरगाह का प्रयोग किया जाएगा. भारत के लिए अपने व्यापार में सहयोगी देशों के साथ  जुड़ना भी सरल होगा, इसलिए अफगानिस्तान के लिए समुद्री बंदरगाह का विकल्प “गारलैंड रोड नेटवर्क” भी विकसित हो सकेगा.

इस अनुबंध के अनुसार चाबहार बंदरगाह के घाट को 10 साल के लिए किराए पर दिया जाएगा, जो कि आगे पारस्परिक सहमती से वापिस नया भी बनाया जा सकेगा. स्पेशल पर्पस वेहिकल (SPV) के अंतर्गत इस पोर्ट का विकास किया जाएगा, जो कि 85.21 मिलियन डालर के विनियोग से घाट को कंटेनर टर्मिनल और मल्टी पर्पज टर्मिनल कार्गो टर्मिनल में बदलेगा. भारत की तरफ से यह कान्दिला पोर्ट ट्रस्ट और जवाहर नेहरु पोर्ट ट्रस्ट मुंबई द्वारा मिलकर करवाया जायेगा . 10वे  वर्ष के अंत में भारत द्वारा लगाई जाने वाली इन्फ्रास्ट्रक्चर की स्वायत्ता और नियुक्ति ईरान के पोर्ट एंड मरीन ऑर्गनाइजेशन को (P&MO) को स्थान्तरित कर दी जाएगी.

इसे सामरिक और व्यापारिक रूप से महत्वपूर्ण बनाने के लिए भारत इसे बडी परियोजनाओं से जोड़ेगा जैसे इंटरनेशनल नार्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कोरिडोर (INSTC) , इस परियोजना की शुरुआत रसिया, भारत और ईरान  द्वारा 2000 में की गयी थी . यह मल्टी-मॉडल ट्रांसपोर्टेशन रूट हैं कि जो  भारतीय सागर को इरान से होते हुए कैस्पियन सागर के पर्सियन खाड़ी से जोड़ता है और उत्तरी यूरोप से होते हुए रसिया के सेंट पीटर्सबग से जुड़ता हैं.

इन्वेस्टमेंट में जापान की भागीदारी (Japan Contribution in Investment)

एशिया अफ्रीका ग्रोथ कोरिडोर (AAGC) का हिस्सा होने के नाते जापान भी चाबहार के विकास में भारत का सहयोग करना चाहता है. चाबहार को सुदृढ़ बनाने जापानी तकनीक की सहायता ली जाएगी,और जापान इस परियोजना के लिए आर्थिक सहायता भी देगा.इसके कारण दक्षिण चीन सागर में भी भारत को जापान का साथ मिल जाएगा.  

कैसे बनेगा ये भारत के लिए व्यापरिक गलियारा (Corridor of India )

  1. चाबहार की भौगोलिक स्थिति भी भारत के लिए इसमें निवेश करने का मुख्य कारण हैं. भारत द्वारा 2009 में ईरान-अफगानिस्तान के मध्य प्रस्तावित रोड नेटवर्क मिलक-ज़रांज-दिलराम का एक हिस्स्सा बनवाया गया था, जिसका उपयोग अफगानिस्तान के गारलैंड हाईवे पर व्यापारिक कार्यों के लिए किया जाएगा.
  2. भारत ने इस पर अब तक पश्चिमी अफगानिस्तान के देलारम से लेकर ईरान-अफगानिस्तान के बॉर्डर पर स्थित ज़रांज को चाबहार बंदरगाह से जोड़ने के लिए 218 किलोमीटर (140 मील) लम्बी सडक बनाने पर लगभग 100 मिलियन डॉलर खर्च कर दिए हैं. इस प्रोजेक्ट के पूरा होने पर इस नेटवर्क की  सहायता से अफगानिस्तान के 4 मुख्य शहरों हेरत,कंधार,काबुल और मजार-ए-शरीफ तक पहुचना आसान होगा.
  3. भारत, ईरान में ज़ाहेदान की 1.6 बिलियन डॉलर रेल लाइन बनाने में भी मदद करेगा जो कि अंतत: उत्तर के मशद से जुड़ेगी और तुर्कमेनिस्तान और दक्षिण में बफ्क-मशद रूट से जोड़ेगी.  
  4. इसके अलावा मध्य एशिया तक भी भारत की पहुँच आसान हो जायेगी और इस समुन्द्र-थल मार्ग के नेटवर्क से ट्रांसपोर्ट कॉस्ट कम होने के साथ भारत से मध्य एशिया तक पहुँचने वाला समय भी कम हो जाएगा.
  5. भारत अफगानिस्तान के बामियन प्रांत के खनिज सम्पन्न हजिगाक क्षेत्र को चाबहार बन्दरगाह से जोड़ने के लिए 900 किलोमीटर की रेल लाइन बनाने पर भी विचार कर रहा हैं. एक अध्ययन के अनुसार इस प्रस्तावित रेल प्रोजेक्ट का बजट ईरान और अफगानिस्तान के लिए 5 बिलियन डॉलर तक हो सकता हैं जिसमें भारत इन दोनों देशों की बहुत बड़ी आर्थिक मदद कर सकता हैं. इस रेल नेटवर्क से भारत मध्य एशिया के अन्य राज्य कजाकिस्तान,उजेबिक्स्तान,तजाकिस्तान,तुर्कमेनिस्तान और किर्गिस्तान तक अपनी पहुँच बना सकेगा.
  6. अब तक भारतीय कंपनियों के लिए इन क्षेत्रों में रेल मार्ग उपलब्ध ना होना बहुत बड़ी समस्या रही हैं. इस क्षेत्र में 1 ट्रिलियन डालर तक के खनिज उपलब्ध है जिसके अधिकार भारत की स्टील ऑथोरिटी ऑफ़ इंडिया लिमिटेड (SAIL) द्वारा खरीद लिए गए हैं. इस जुडाव के कारण SAIL के अंतर्गत आने वाले भारती स्टील स्टील कंपनी के 10.8 बिलियन डालर की आयरन और स्टील प्रोजेक्ट पूरे हो सकेंगे.

चाबहार बंदरगाह का भारत के लिए महत्व  ( Importance of Chabahar port for India in hindi)

चाइना अपने राष्ट्रपति जी जिनपिंग के नेतृत्व में आऊन बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव(BRI) को वन बेल्ट वन रोड (OBOR) प्रोजेक्ट के अंतर्गत आक्रामक रूप से बढ़ा रहा हैं और भारत का यह चाबहार बंदरगाह इसी का जवाब हैं.  इस प्रोजेक्ट की मदद से चीन सडक के माध्यम से रसिया,अफगानिस्तान,तुर्क, इटली केन्या और बांग्लादेश से होता हुआ पूरे भारत का घेराव कर लेगा. लेकिन भारत के पास अफगानिस्तान तक के लिए भी सडक का माध्यम नहीं होगा. ऐसे में चाबहार बंदरगाह जो कि भारत को अफगानिस्तान के सडक मार्ग से जोड़ेगा,और भविष्य में भारत इसके आगे भी अन्य देशों तक अपनी पहुँच बना सकेगा. इस तरह भारत की अफगानिस्तान तक सडक के माध्यम से पहुँचने के लिए  पाकिस्तान पर निर्भरता भी ख़त्म हो जाएगी.

भारत के लिए समझौते का कूटनीतिक महत्व (Political Importance of Chabahar for India)

भारत द्वारा 2015-20 में बनायी गयी विदेश नीति में इंटरनेशनल नार्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कोरिडोर (INSTC) को महत्वपूर्ण माना गया हैं जिसमे भारत मध्य एशिया तक अपने व्यापारिक और राजनीतिक रिश्ते मजबूत करेगा. ऐसे में इस प्रस्तावित व्यापारिक गलियारे से भारत को मध्य एशिया और यूरेशिया तक अपने लिंक बनाने में बहुत मदद मिलेगी. और चाबहार बंदरगाह इस दिशा में एक सही कदम साबित होगा.

एक बार परियोजना पूरी होने पर भारत के लिए बहुत से भू-राजनीतिक और आर्थिक संभावनाओं का विकास होगा. भारतीय कंपनी अफगानिस्तान में बहुत सी व्यापारिक सम्भावाओं को तलाश सकेंगी और इसके खनिजो का उपयोग कर सकेगी. दीर्घकाल में यह यह भारत के लिए मध्य एशिया से तेल और खनिजों  सम्बन्धित व्यापार में बहुत बड़ा सहायक सिध्ह होगा.  .

चाबहार बन्दरगाह बनाम ग्वादर बन्दरगाह (Chabahar Port v/s Gvadar port)

चाबहार बंदरगाह और ग्वादर बंदरगाह में तुलना होना स्वाभाविक हैं,क्योकिं ये दोनों बंदरगाह ना केवल बहुत बहुत ही कम दूरी पर बने हैं,बल्कि इन्हें विकसित करने वाले राष्ट्र भी आपस में पडोसी देश हैं और इन देशों की आपस में एक दूसरे की गतिविधियों पर नजर इन बंदरगाहों से राखी जा सकती हैं.

चाबहार बंदरगाह और ग्वादर बंदरगाह के इतने नजदीक होने के कुछ नुकसान भी भारत को उठाने पड़ सकते हैं. ग्वादर बंदरगाह भारत के मार्ग में चाबहार से पहले आता हैं इसलिए पूरा ट्रेफिक पहले ग्वादर से होकर गुजरेगा. ग्वादर की प्राकृतिक बनावट और गहराई इस तरह की हैं कि बड़ी से बड़ी जहाज वहां पर लगायी जा सकती हैं जबकि चाबहार और दुबई दोनों ही बंदरगाह में ये सुविधा नहीं हैं.

चाबहार की अधिकतम क्षमता 10 मिलियन से 12 मिलियन टन प्रति वर्ष हैं जबकि ग्वादर की क्षमता 300 मिलियन से 400 मिलियन टन हैं. यह तैयार होने पर शहर के 2 मिलियन निवासियों को प्रभावित करेगा.यदि प्लान के अनुसार काम होता हैं और यह बंदरगाह अपनी पूर्ण क्षमता के लक्ष्य तक पहुँच पाता हैं तो ग्वादर बंदरगाह भारत के 212 बंदरगाह के एक साथ प्रति वर्ष होने वाले 500 मिलियन टन की क्षमता से बहुत आगे निकल जाएगा.

भू-राजनैतिक दृष्टि से समझे तो भी बलूचिस्तान की अस्थिरता को देखते हुए कोई इस तथ्य से इंकार नहीं कर सकता की चाबहार इरान के सबसे अस्थिर क्षेत्र में स्थित हैं. सिया-सुन्नी आयाम को भी नकारा नहीं जा सकता, इस कारण सऊदी-अरेबिया और युएई जैसे देश यमन परिदृश्य और अन्य मुद्दों को ध्यान में रखते हुए चाबहार की जगह ग्वादर को बंदरगाह को पसंद करेंगे.

जहाँ तक अफगानिस्तान के चाबहार बंदरगाह के उपयोग की बात हैं तो यह निकट भविष्य में कहीं दिखाई नहीं देता हैं क्योंकि यह देश अस्थायी हैं और यूएस अब भी वहां शांति स्थापित करने की कोशिश कर रहा है.

चाइना का व्यापार इतने बड़े पैमाने पर हैं कि यदि केवल चाइना ग्वादर बंदरगाह का प्रयोग शुरू में करे तो यह अन्य सभी देशों के एक साथ मिलकर किए जाने वाले व्यापार के बराबर होगा.

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Ankita
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