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फुटबॉल गोल लाइन तकनीक क्या है | Goal Line Technology In Football in Hindi

 फुटबॉल से जुड़ी गोल लाइन टेक्नोलॉजी | Goal Line Technology In Football in Hindi Hawk Eye, GoalRef (Cost, Watch, Pros Cons, Who invented) 

फुटबॉल विश्व का सबसे फेमस गेम है और इस गेम को विश्व की अधिकतर देश में खेला जाता है. भारत में भी इस गेम को काफी पसंद किया जाता है और हमारे देश में भी इस गेम से जुड़े कई सारे क्लब मौजूद हैं और इस खेल से जुड़ा हुए एक लीग भी हमारे देश में हर साल आयोजित किया जाता है जिसका नाम इंडियन सुपर लीग है. हालांकि इतना प्रसिद्ध गेम होने के बावजूद भी फुटबॉल के वर्ल्ड कप में केवल  32 देशों की टीम ही भाग ले पाने में कामयाब हो पाती हैं. क्योंकि हर चार साल बाद होने वाले इस गेम के वर्ल्ड कप के लिए क्वालीफायर करना काफी कठिन है.  

90 मिनट की अवधि में खेले जाने वाले इस खेल से जुड़े कई सारे नियम भी हैं और कुछ साल पहले ही इस खेल के नियमों में ‘गोल लाइन टेक्नोलॉजी’ का इस्तेमाल करने का नियम भी जोड़ा गया है.

Goal Line Technology In Football

फुटबॉल खेल से जुड़े नियमों की जानकारी

  • फुटबॉल खेल में कुल 11 खिलाड़ी एक टीम में होते हैं और ये खेल दो टीमों के बीच खेला जाता है. इस गेम के नियमों के मुताबिक दोनों टीमों में से जो टीम सबसे अधिक गोल कर पाने में कामयाब होती है, वो इस खेल को जीत लेती है. हालांकि गोल करना इतना आसान कार्य नहीं होता है और दोनों टीमों के गोलकीपर गोल रोकने के लिए जी जान से मेहनत करते हैं.
  • जब एक टीम के स्ट्राइकर (जो गोल करता है) द्वारा बॉल को गोल करने के लिए मारा जाता है, तो अन्य टीम का गोलकीपर अपने पैरों और हाथों की मदद से उस बॉल को रोकने की कोशिश करता है.
  • नियमों के मुताबिक अगर फुटबॉल गोल लाइन के पार चली जाती है तो वो गोल माना जाता है. वहीं गोलकीपर अगर फुटबॉल को गोल लाइन पार करने से रोक देता है तो वो गोल नहीं माना जाता है.
  • बॉल गोल लाइन के पार गई है कि नहीं इस बात का फैसला रेफरी द्वारा किया जाता है और कई बार रेफरी गलत फैसला भी सुना देते हैं. क्योंकि उन्हें एकदम से ये पता नहीं लग पाता है कि गेंद ने गोल लाइन को पार किया है कि नहीं. और रेफरी की इस दुविधा को खत्म करने के लिए इस खेल में अब गोल लाइन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाने का नियम जोड़ा गया है.

क्या होती ही गोल लाइन टेक्नोलॉजी (Goal Line Technology)

गोल लाइन टेक्नोलॉजी में कई तरह की टेक्नोलॉजी शामिल होती हैं और इन टेक्नोलॉजी की मदद से ये पता लगाया जाता है कि फुटबॉल खेलने के दौरान, स्ट्राइकर द्वारा गोल करने के लिए मारी गई फुटबॉल, लक्ष्य रेखा यानी गोल लाइन को पार कर पाने में कामयाब हुई है कि नहीं.

क्यो पड़ी इस टेक्नोलॉजी की जरूरत

इस खेल में ऐसा कई बार देखा गया है कि गोलकीपर द्वारा गेंद को गोल लाइन के पास आकर रोक लिया जाता है. मगर रेफरी के लिए ये पता लगाना मुश्किल हो जाता है कि गोलकीपर द्वारा उस गेंद को गोल लाइन के पास पकड़ा गया है या फिर गोल लाइन पार किए जाने के बाद पकड़ा गया है. और इसी परेशानी से निपटने के लिए इस टेक्नोलॉजी को इस खेल में शामिल किया गया है.  

किस तरह से कार्य करती है ये टेक्नोलॉजी (How Does Goal Line Technology Work?)

  • गोल लाइन टेक्नोलॉजी की मदद से केवल एक सेकेंड के अंदर ही रेफरी को इस बात की जानकारी मिल जाती है कि फुटबॉल ने गोल लाइन पार की है कि नहीं.
  • गोल लाइन टेक्नोलॉजी के तहत मैच के अधिकारियों और रेफरी को एक घड़ी पहनाई जाती है और जैसे ही गेंद गोल रेखा को पार कर लेती हैं, तो इस बात का सिग्नल रेफरी को घड़ी की मदद से मिल जाती है. ये सिग्नल मिलने के बाद रेफरी फिर अपना फैसला सुनाता है.
  • ये तकनीक इतने तेज तरीके से काम करती है कि गेंद के गोल लाइन के पास पहुंच जाने के महज एक सकेंड के अंदर ही घड़ी में सिग्नल पहुंच जाता हैं.

गोल लाइन टेक्नोलॉजी में इस्तेमाल होने वाली टेक्नोलॉजी

  • जब गोल लाइन टेक्नोलॉजी को इस खेल में लाने की बात हो रही थी, तो उस वक्त नौ तरह की टेक्नोलॉजी का टेस्ट किया गया था. जिसके बाद फीफा और इंटरनेशनल फुटबॉल एसोसिएशन बोर्ड ने इन्हीं 9 टेक्नोलॉजी में जो दो टेक्नोलॉजी का चयन किया गया था और जिन टेक्नोलॉजी का चयन किया गया था वो हॉक आई और गोलरेफ टेक्नोलॉजी थीं.
  • फीफा और इंटरनेशनल फुटबॉल एसोसिएशन बोर्ड द्वारा हॉक आई और गोलरेफ प्रणालियों को मंजूरी मिलने के बाद इनका इस्तेमाल अब फुटबॉल में किया जा रहा है. हालांकि फुटबॉल से जुड़े नियमों के मुताबिक ये जरूरी नहीं है कि इन तकनीक का इस्तेमाल हर मैच में किया जाए.

हॉक आई (Hawk Eye)

  • हॉक आई टेक्नोलॉजी में करीब 14 कैमरों का इस्तेमाल किया जाता है और ये तकनीक साल 1999 में बनाई गई थी. इस तकनीक के तहत हाई स्पीड वीडियो कैमरों का इस्तेमाल किया जाता है और इन कैमरों को मैदान के ऊपर लगाया जाता है. हाई-स्पीड कैमरे गेंद को ट्रैक करते हैं और ट्राईऐन्ग्युलेशंस का उपयोग कर गेंद की गोल रेखा से संबंधित सटीक स्थिति की गणना करना करते हैं.
  • ट्राईऐन्ग्युलेशंस यानी त्रिभुज एक जियोमेट्रिक तकनीक है जिसकी मदद से गेंद की दूरी और स्थिति की गणना करने में मदद मिलती है और इसलिए मैदान पर लगाए गए हाई स्पीड वीडियो कैमरा को ट्राईऐन्ग्युलेशंस फॉर्म में लगाया जाता है.
  • हॉक आई टेक्नोलॉजी में इस्तेमाल होने वाले सॉफ्टवेयर की मदद से गेंद को ट्रैक किया जाता है और वो किस दिशा में जाएगी इस बात का भी अनुमान लगाया जा सकता है. आप लोगों ने कई बार देखा होगा की क्रिकेट मैच में ग्राफिक के जरिए गेंद का पाथ यानी दिशा दिखाई जाती है और गेंद की इस दिशा का पता हॉक आई टेक्नोलॉजी की मदद से ही लगाया जाता है.
  • हॉक आई टेक्नोलॉजी के तहत यदि गेंद पूरी तरह से गोलमाउथ को पार करती है, तो एक एन्क्रिप्टेड सिग्नल रेफरी घड़ी या इयरपीस के माध्यम से आधे सेकेंड के अंदर मिल जाता है. जिसके बाद रेफरी अपनी निर्णय लेते है.
  • इस तकनीक को हाल ही में इस गेम में लाया गया है, मगर अन्य प्रसिद्ध गेम जैसे क्रिकेट और टेनिस में इस तकनीक का इस्तेमाल काफी लंबे समय से हो रहा है.

गोलरेफ (GoalRef)

  • इस तकनीक में निष्क्रिय इलेक्ट्रॉनिक सर्किट को गेंद के अंदर लगाया जाता है. जबकि एक लॉ फ्रीक्वेंसी मैग्नेटिक को गोलमाउथ पर लगाया जाता है, जिसमें तीन तांबे के कॉइल्स होते हैं.
  • जैसे ही गेंद गोल लाइन को पार करती हैं, तो गोलमाउथ के चारों और लगे एंटेना अपने चुंबकीय क्षेत्रों में परिवर्तन होते ही इसका डेटा, कंप्यूटर को भेज देते हैं. जिसके बाद कंप्यूटर में लगा सॉफ्टवेयर ये तय करता है कि गेंद ने लाइन पार की है कि नहीं. यदि गेंद ने गोल लाइन पार कर ली होती है तो कंप्यूटर द्वारा इस बात का संकेत रेफरी को आधे सेकेंड के भीतर उसके द्वारा पहनी हुई घड़ी के माध्यम से मिल जाता है.

कब इस्तेमाल की गई ये तकनीकें (Goal Line Technology in Premier League)

दिसंबर 2012 में, फीफा ने घोषणा की थी कि वो जापान में होने वाले 2012 के फीफा क्लब विश्व कप में गोल रेखा प्रौद्योगिकी को पेश करेगा. जिसके बाद टोयोटा स्टेडियम में पहली बार हॉक-आई तकनीक का इस्तेमाल किया गया था. वहीं गोलरेफ तकनीक का इस्तेमाल इंटरनेशनल स्टेडियम योकोहामा में किया गया था.

जोड़ी गई एक नई तकनीक

अप्रैल 2013 में, फीफा ने गोलकंट्रोल, जो कि कैमरा आधारित प्रणाली है उसका इस्तेमाल भी फुटबॉल गेम के दौरान करने की घोषणा की थी. जिसके बाद गोलकंट्रोल, तकनीक का उपयोग पहली बार साल 2013 में हुए कन्फेडरेशंस कप में किया गया था. इस तकनीक की मदद से भी गोल के बारे में जानकारी कुछ सेकेंड के अंदर मिल जाती है और ये भी एक सफल तकनीक है.

कितनी कारगर साबित हुई गोल लाइन टेक्नोलॉजी

  • इस वक्त गोल लाइन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कई फुटबॉल मैचों से जुड़ी लीग में किया जा रहा है और ये तकनीक काफी कारगर साबित हो रही है. इस वक्त फुटबॉल से जुड़े अधिकतर क्लब्स ने भी इस तकनीक को अपना भी लिया है. साल 2016 में पहली बार यूईएफए यूरोप लीग के फाइनल मैच में भी इस तकनीका को अपनाया गया था, ताकि इस मैच में किसी भी तरह का गलत फैसला ना लिया जाए, जबकि यूईएफए चैंपियंस लीग, यूरोपीय चैम्पियनशिप के मैचों में भी इस तकनीक का इस्तेमाल किया गया है.
  • फीफा की वेबसाइट के मुताबिक 144 स्टेडियमों को गोल लाइन टेक्नोलॉजी को लगाने के लिए लाइसेंस दिए जा चुके हैं और इन सभी स्टेडियमों ने हॉक आई तकनीक को अपनाया हुआ है.

काफी महंगी हैं ये तकनीक (Expensive)

  • गोल लाइन टेक्नोलॉजी के अंतर्गत आने वाली गोलकंट्रोल, हॉक आई और गोलरेफ तकनीकों का इस्तेमाल करने में काफी खर्चा आता है. जिसके कारण इस तकनीक का इस्तेमाल केवल इस खेल के शीर्ष स्तर पर ही किया जाता है.
  • ये तकनीके कितनी महंगी हैं इस बात का अंदाजा इसी चीज से लगाया जा सकता है कि गोलकंट्रोल और हॉक आई तकनीक को एक स्टेडियम में स्थापित करने में करीब $ 260,000 का खर्चा आता है. इस तकनीक के महंगी होने के कारण ही फीफा ने अपने नियमों में ये अनिवार्य नहीं किया है कि हर मैच में इस तकनीक का इस्तेमाल किए जाए.

ये जरूरी नहीं है कि रेफरी द्वारा हर वक्त सही निर्णय लिया जाए और ऐसा कई बार देखा गया है कि तकनीक की कमी के कारण कई फुटबॉल मैचों में कई बार गलत फैसले लिए गए हैं. जिसकी वजह से ना केवल इस खेल की छवि बल्कि लोगों की भावनाओं को भी चोट पहुंची है. इसलिए फीफा ने कुछ साल पहले गोल लाइन टेक्नोलॉजी को मंजूरी दे दी थी ताकि इस खेल में किसी भी तरह का गलत फैसला ना लिया जाए. वहीं गोल लाइन टेक्नोलॉजी के जरिए रेफरियों को भी सही निर्णय लेने में काफी सहायता मिल रही है.

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Pavan Agrawal
मेरा नाम पवन अग्रवाल हैं और मैं मध्यप्रदेश के छोटे से शहर Gadarwara का रहने वाला हूँ । मैंने Maulana Azad National Institute of Technology [MNIT Bhopal] से इंजीन्यरिंग किया हैं । मैंने अपनी सबसे पहली जॉब Tata Consultancy Services से शुरू की मुझे आज भी अपनी पहली जॉब से बहुत प्यार हैं।

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