पहला भाग,
युद्ध में जाने के लिए सेनाये तैयार है, कोरव और पांडव बुजुर्गो का आशिर्वाद लेकर आगे बड रहे है |गुरु द्रोण भी सभी राज कुमारों का इन्तजार कर रहे है, सभी गुरु के सामने आकर खड़े है | द्रोण राजकुमारों से कहते है कि यह उनके जीवन का पहला युद्ध है और आज उनका सारा ज्ञान भी कम पड़ जायेगा क्यूंकि उनके सामने द्रुपद है | द्रुपद ने भी गुरु द्रोण के पिता ऋषि भारद्वाज से ही ज्ञान प्राप्त किया है और वो उन सभी कलाओं में निपूर्ण है जो द्रोण ने अपने शिष्यों को सिखाई है,इसलिए जो भी डर रहा है वो बोल सकता है जिसे खुद की शक्ति और गुरु की शिक्षा पर यकीन नहीं वो जा सकता है |तभी अर्जुन कहता है उसे पूरा विश्वास है खुद पर | गुरु पांडवो को आगे बड़ने और कोरवो को वापस जाने का आदेष देता है | द्रोण कहता है कोरवो को खुद पर और उनके दिए ज्ञान पर यकीन नहीं है तभी वो अपनी ढाल के रूप में कर्ण को अपने साथ लिए जा रहे है | कर्ण द्रोण का शिष्य नहीं अगर उसकी वजह से युद्ध हार गये तो उन्हें स्वीकार नहीं और अगर जीत गये तो उनका उपहास होगा क्यूंकि कर्ण उनका शिष्य नहीं |इस तरह कोरव बिना कर्ण के आगे बड़ते है |
दूसरा भाग
सेना पांचाल की तरफ बड़ रही है, पांडवो में अर्जुन कहता है जीवन में जिसे किसी चीज की चिंता नहीं उसे कोई नहीं हरा सकता | जब तक द्रुपद को हरा कर युधिष्टिर को राजा नही बना देते ,चैन नहीं आएगा |
कोरव युद्ध की नीती बनाते है, तीन गुट होंगे पहले गुट का नेतृत्व दुर्योधन,दुसरे का दुह्शासन और तीसरे का विकर्ण करेगा | तभी अश्व्थामा बताता है कि पांचाल का सेनापति अमर है उसे किसी से बदला लेना है कुछ पूर्व जनम की घटना है | उसे हराना मुश्किल है | दुर्योधन कहता है यह सब बस डराने के लिए कहते है |अश्व्थामा कहता है उन्हें हराने के लिए व्यूह रचना आवश्यक है | दुर्योधन को व्यूहरचना का ज्ञान नहीं है | अश्थामा कहता है अर्जुन जानता है | दुर्योधन को पांडवो की सहायता नहीं लेनी| अश्व्थामा कहता है युधिष्टिर बड़ा है इसलिए सेनापति तो वही होगा | दुर्योधन कहता है फिर हम सब उसके आधीन हो जायेंगे तो हर हाल में जीत तो युधिष्टिर की हो जाएगी | इसलिए वो बिना पांडवो के ही युद्ध में जायेंगे |
तीसरा भाग
पांचाल का सेनापति युध्द का अभ्यास कर रहा है | द्रुपद खुद उसे संदेश देता है कि द्रोण का संदेश आया है, कुरु कुमार आक्रमण करेंगे| वो उन 105 कुरु कुमारो को बंधी बनाले ताकि भीष्म उन्हें लेने आये और वो अपना प्रतिशोध पूरा कर सके |
Flash back
(पांचाल का सेनापति शिखंडी है जो की पूर्व जनम में अम्बा था, जिसने भीष्म की मौत का कारण बनने का आशीर्वाद भगवान शिव से प्राप्त किया |
अम्बा काशी की राज कुमारी थी ,उसका और उसकी बहनों का स्वयम्बर होने जा रहा था ,तभी वहाँ भीष्म ने आकर विचित्रवीर्य के लिए इन बहनों का हाथ माँगा | उस स्वयम्बर में अम्बा महारज शाल्व को अपना पति मान चुकी थी पर भीष्म के साथ हुए द्वंद में शाल्व मारा जाता है| अम्बा भरी सभा में भीष्म से कहती है वो विचित्रवीर्य से विवाह नहीं करेगी, उसे भीष्म ने जीता है ,वह उसी से विवाह करेगी | भीष्म उसे कहते है कि उन्होंने ब्रह्मचर्य का प्रण लिया है | वो विवाह नहीं कर सकता | अम्बा प्रतिशोध के लिए भीष्म के गुरु परशुराम से न्याय मांगने जाती है | परशुराम और भीष्म के बीच द्वन्द छिड़ जाता है जिसके कारण पूरी पृथ्वी पर संकट आजाता है तब शिव भगवान ने अम्बा को आशीर्वाद दिया, कि जब भी धर्म के लिए भीष्म को मारने का वक्त आएगा जब अम्बा ही उसकी मृत्यु का कारण बनेगी | उसके बाद अम्बा खुद को अग्नी में समर्पित कर देती है | उसके बाद वह पांचाल की धरती पर जन्म लेती है | यह एक आधी नारी और आधा नर का रूप है जिसका नाम “शिखंडी” रखा जाता है | और यही भविष्य में भीष्म की मृत्यु का कारण बनेगी |)
Karnika
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