हवाई जहाज़ कैसे उड़ता है How Does Airplane Fly in hindi Hawai Jahaj Kaise Udta Hai
हवाई जहाज़ मानव यातायात में एक बहुत बड़ी क्रांति के रूप में सामने आया है. इसकी सहायता से कम से कम समय में मीलों की दूरी तय की जा सकती है. हवाई जहाज़ की कल्पना ही अपने आप में एक बहुत बड़ी सोच वाली बात है. फिर भी इस तरह की सोच कुछ लोगों में आई और फिर हवाई जहाज़ की कल्पना एक नया रूप ले सकी. कालांतर में हवाई जहाज़ बन कर तैयार भी हुआ और लोग आज इसकी सहायता से लम्बे से लंबा सफ़र आसानी से तय कर पा रहे हैं. यातायात की समस्या और समाधान पर निबंध यहाँ पढ़ें.

हवाई जहाज़ कैसे उड़ता है
How Does Airplane Fly in hindi
हवाई जहाज़ का इतिहास (Airplane History)
हवाई जहाज़ का इतिहास उन्नीसवीं सदी के आस पास देखने मिलता है. इस समय मानव के लिए किसी उड़ने वाली मशीन के अविष्कार का प्रयास किया जा रहा था. कोशिशें भरपूर की जा रही थीं, लेकिन सफ़ल नहीं हो पा रही थी. इसकी सबसे ख़ास वजह ये थी कि इन सभी मशीनों में किसी न किसी तरह की डिजाइनिंग ग़लतियाँ रह जाती थीं, किन्तु प्रयास छोड़ा नहीं गया. लगातार प्रयत्न करते हुए एक बार प्रयास सफ़ल हो गया. यह सफलता राईट बंधुओं को प्राप्त हुई.
हवाई जहाज़ के उड़ने में सहायता प्रदान करने वाले कारक (Factors Which Helps in Aircraft Fly)
हवाई जहाज़ के उड़ने में दो मुख्य कारक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं.
- टेकऑफ.
- उड़ान के समय हवाई जहाज़ पर कुल फोर्स को न्यूट्रल यानि जीरो रखना.
राईट बंधुओं की सफलता (Wright Brothers Success)
राईट बंधुओं ने अपने परिश्रम से इस आविष्कार को सफ़ल बनाया. इस बार हवाई जहाज़ बनाने के लिए एयर फॉयल तकनीक का इस्तेमाल किया गया था. राईट बंधुओं ने हवाई जहाज़ के लिए एयर फॉयल टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके एयरप्लेन विंग्स तैयार किये. ये एयरप्लेन विंग उड़ते हुए न्यूटन के तीसरे नियम का पालन करता है. इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके इन दोनों बंधुओं ने कर्वड (वक्ररुपी) विंग्स तैयार किया. इस आकार के विंग से एयरक्राफ्ट को टेकऑफ और लैंडिंग करने में ख़ूब सहायता प्राप्त होती है.
हवाई जहाज की उड़ान प्रक्रिया (Airplane Flying Process)
वक्र एयरविंग इन पर वायुमंडल से आ रहे हवा के अणुओं को नीचे की तरफ भेजता है. यह महान वैज्ञानिक आइजैक न्यूटन के गति विषयक के तीसरे सिद्धांत के अनुसार होता है. न्यूटन का तीसरा नियम है –‘किसी क्रिया की विपरीत तथा बराबर प्रतिक्रिया होती है’. इसके बाद एयर क्राफ्ट के नीचे की हवा जहाज़ को ऊपर की तरफ उड़ने के लिए धक्के देती है. नीचे की हवाओं का यह लिफ्ट फोर्स हवाई जहाज़ पर लग रहे गुरुत्वाकर्षण बल को संभालता है, जिससे हवाई जहाज़ पर कुल फोर्स का परिमाण शून्य हो जाता है. डेटा वैज्ञानिक की भारत में कमाई यहाँ पढ़ें.
प्रोपेलर : एक बार हवा मे गुरुत्वाकर्षण बल संतुलित हो जाने के बाद हवाई जहाज़ को आगे बढाने के लिए एक विशेष बल की आवश्यकता होती है. यह बल प्रोपेलर द्वारा इन एयरक्राफ्ट को प्राप्त होती है. प्रोपेलर एक पंखे की तरह होता है, जिसके घूमने पर एयरक्राफ्ट आगे की ओर हवा में उड़ान भरता है.
आधुनिक एयरक्राफ्ट (Modern Airplanes)
आधुनिक एयरक्राफ्ट भी राईट बन्धुओ द्वारा तैयार किये गये एयरक्राफ्ट के उड़ान के सिद्धांत पर ही उड़ते हैं. हालाँकि इस समय के हवाई जहाजों के एयर विंग को एयरोडायनामिक का इस्तेमाल करके बहुत ही उन्नत किस्म का बनाया जाता है. इसी के साथ इसमें विभिन्न तरह की गति को नियंत्रित तथा नियमित करने के लिए तरह तरह की मशीन लगाई जाती है. प्रोपेलर से मिलने वाले फोर्स को बैलेंस करने की आवश्यकता होती है. हवाई जहाज़ को इससे मिलने वाले फोर्स को प्रोपल्शन फोर्स कहते हैं. इसके विपरीत जो फोर्स काम करता है उसे ड्रैग फोर्स कहा जाता है.
आधुनिक एयरक्राफ्ट की डिजाइन ऐसी बनायी जाती है. कि वह इस ड्रैग फोर्स को कम से कम रख सके, ताकि प्रोपलशन बड़े आसानी से उड़ान की दिशा में एक त्वरण उत्पन्न कर सके और हवाई जहाज़ आसानी से उड़ सके. एक विशेष परिमाण में त्वरण उत्पन्न होने पर हवाई जहाज़ टेकऑफ कर लेता है. आधुनिक एयरक्राफ्ट में विभिन्न तरह के पार्ट होते हैं. ये विभिन्न पार्ट हैं फ्लैप, स्लेट और ऐलेरोंस. टेकऑफ करने के समय फ्लैप और स्लेट नीचे की तरफ फैलने लगता है, जिससे विंग का सरफेस एरिया और कर्वेचर बढ़ जाता है. इस वजह से हवा नीचे की तरफ अधिक विक्षेपित होती है, जो हवाई जहाज़ को उड़ने में सहायता करता है. एयर बार एयरक्राफ्ट के टेकऑफ होने के बाद ये स्लैट और फ्लैप वापस अन्दर चले जाते हैं.
हवाई जहाज़ के उड़ान के समय नेविगेशन (Aircraft Flight Navigation)
उड़ान भरते समय हवाई जहाज़ के नेविगेशन के लिए कई महत्वपूर्ण विंग लगे रहते हैं. ये महत्वपूर्ण विंग अटैचमेंट हैं रडर, एलीवेटर, स्पोइलर और ऐलेरोन. कोई पायलट इन विंग अटैचमेंट का इस्तेमाल अलग अलग या आवश्यकता पड़ने पर एक साथ कर सकते हैं.
- एलीवेटर का प्रयोग फ्लाइट के दौरान जहाज़ को ऊपर ले जाने अथवा नीचे लाने के लिए किया जाता है.
- ऐलेरन का प्रयोग हवाई जहाज़ की दिशा बदलने के लिए किया जाता है. हालाँकि इस काम के लिए रडर का भी प्रयोग किया जाता है.
- उदाहरण के तौर पर यदि किसी हवाई जहाज को अपनी दिशा बदल कर बांयी तरफ जाना हो तो रडर पर विपरीत दिशा में दबाव डाल कर ऐसा किया जा सकता है. हालाँकि ऐलेरन से भी ऐसा किया जा सकता है. ऐलेरन से हवाई जहाज़ का दिशा बदलना ही एक सही निर्णय होता है. इसके प्रयोग से हवाई जहाज़ में सवार यात्रियों को किसी तरह की परेशानी नहीं होगी.
- ऐलेरन से हवाई जहाज़ की दिशा बदलने के लिए एक वायु दबाब का निर्माण करना पड़ता है. यह वायुदाब एक ऐलेरन को ऊपर तथा दुसरे ऐलेरन को नीचे करके बहुत सरलता से बनाया जा सकता है. इससे जहाज़ के लिफ्ट फोर्स में एक अंतर आ जाता है, इसके बाद जहाज़ रोल होना शुरू हो जाता है.
- स्पोइलर का प्रयोग लैंडिंग के समय किया जाता है. यह ड्रैग फोर्स को बढाने का काम करता है, जिस वजह से एयरक्राफ्ट की गति कम होने लगती है और वह ज़मीन की तरफ लैंड होने लगता है. यह बहुत ही सावधानीपूर्वक करने वाला कार्य है ताकि जहाज़ को एक सुरक्षित लैंडिंग प्राप्त हो सके.
अतः इस तरह से कोई एयरक्राफ्ट उड़ान भरता है. आधुनिक तकनीकों ने नये एयरक्राफ्ट को पहले से अधिक सुरक्षित बना दिया है, ताकि इसमें सफ़र करने से किसी तरह का संकट उत्पन्न न हो सके.
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