चिकनगुनिया का कारण, इलाज व घरेलू उपचार (Chikungunya virus diagnosis, Cause, symptoms, prevention, treatment in hindi)
चिकनगुनिया, यह एक प्रकार का ऐसा वाइरस है, जोकि बुखार के रूप मे आता है. यह सबसे पहली बार उन्नीस सौ बावन में तंजानिया में पाया गया था. जब तंजानिया मे यह वायरस मिला, तब उसके बाद इस वाइरस पर रिसर्च हुई और उस रिसर्च के बाद पाया गया, कि यह चिकनगुनिया का वायरस है. यह सन् दो हजार छ: मे पहली बार भारत मे पाया गया जोकि, अंडमान द्वीप समूह मे पाया गया था. तथा उसके बाद क्रमशः आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, केरल, दिल्ली, गुजरात तथा मध्यप्रदेश मे पाया गया, पर इसका औसत नही के बराबर था. यह बहुत बड़ी बीमारी बिल्कुल नही है ना ही यह ला इलाज है. इसके बहुत से उपचार है जिससे आसानी से ठीक हुआ जा सकता है. कोई भी बीमारी बड़ी नही होती, बस उससे लड़ने की क्षमता तथा सकारात्मक सोच होनी चाहिये. यदि यह घातक भी हुई तो यह हजारों मे से, किसी एक के लिये जानलेवा साबित हुई है. जानलेवा भी वही साबित हुई है जैसे- बहुत छोटे बच्चे या किसी बुजुर्ग को जिनके शरीर मे रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता नही है. सामान्य व्यक्ति इस बीमारी से बिल्कुल ठीक हो सकते है पर समय लगता है. यह एक संक्रामक बीमारी है, जो एक से दूसरे मे फैलती है.
चिकनगुनिया के कारण (Causes of Chikungunya) –
यदि हम सामान्य कारण देखे तो यह सिर्फ मच्छर के काटने से होता है, पर यह मच्छर हमारे आसपास फैली गंदगी से पनपते है. गंदगी मे हजारों मच्छर पैदा होते है, उनमे से कुछ बहुत विषैले होते है. चिकनगुनिया एडेस अल्बोपिक्टस् (Aedes Albopictus) तथा एडेस इज्यप्ती (Aedes Aegypti) नाम के मच्छर के काटने से होता है. यह वायरस मुख्य रूप से जानवरों तथा पक्षियों में होता है तथा वही से आसपास के वातावारण मे फैलता है.
चिकनगुनिया के लक्षण (Symptoms of Chikungunya) –
चिकनगुनिया एक अलग तरह के बुखार के साथ सामने आता है. परंतु इसमें शुरुआत में ही कई लक्षण समझ में आते है जो इस प्रकार है :
- शुरुआती दौर मे हाथ पैर मे दर्द बहुत तेज होता है, यह दर्द मुख्य रूप से जोड़ो मे होता है, तथा इसी के साथ बहुत तेज सिर दर्द भी होता है.
- इसमें धीरे-धीरे ठण्ड लग कर तेज बुखार आता है तथा यह बुखार पांच-छ: दिनों तक इसी प्रकार कम-ज्यादा होता है. वह बुखार एक सौ दो डिग्री से एक सौ चार डिग्री फेरेनाईट तक हो सकता है.
- इसमे हाथ पैर मे सूजन आ जाती है तथा कई बार शरीर पर दाने-दाने तथा स्पॉट्स पड़ जाते है.
- इस बीमारी का असर कम से कम दस से बारह दिनों तक रहता है तथा इसके केसेस देखने के बाद पता चला है कि यह, शुरू के छ: दिनों में इसमें ज्यादा तकलीफ होती है. तथा बाद के चार–पांच दिनों मे बुखार कम होकर यह खत्म हो जाता है.
- इस बीमारी मे बुखार इतना तेज होता है, जिससे शरीर मे पाचन की क्रिया भी कमजोर हो जाती है. इस दौरान कुछ खाने-पीने मे भी तकलीफ होती है व शरीर मे बहुत कमजोरी आ जाती है.
चिकनगुनिया रोग की पहचान के लिये होने वाली जाँच (Test to Diagnosis Chikungunya) –
किसी भी बीमारी के इलाज के लिये सबसे पहले उसकी जाँच या डाईग्नोसिस कराना सबसे जरुरी होता है, जिससे उस बीमारी का पता लगाया जा सके. ठीक उसी तरह इसमें भी बुखार आते ही सबसे पहले ब्लड टेस्ट कराना होता है, जिससे वायरस का पता चल जाये. यदि चिकनगुनिया वायरस के लक्षण है, तो डॉक्टर की सलाह से सारी जांचे कराये जिनमें से ये मुख्य है –
टेस्ट के नाम (Test Name) | टेस्ट की जानकारी |
सीएचआईकेवी (ChikV) टेस्ट | इसे चिकनगुनिया वायरस कहते है. इस टेस्ट को मुख्य रूप से चिकनगुनिया के वायरस की जाँच के लिये किया जाता है. |
आरटी- पीसीआर टेस्ट | यह जाँच शरीर मे फैले चिकनगुनिया के जीन जोकि, कितनी मात्रा मे ब्लड में फैल गये पता लगाने के लिये कराया जाता है. |
सीबीसी टेस्ट | यह टेस्ट सामान्य रूप से यदि प्लेटलेट्स काउंट का पता लगाने के लिये किया जाता है, क्योकि चिकनगुनिया बुखार तेज होने से कमजोरी बहुत आ जाती है तथा ब्लड सेल कम हो जाते है. |
ईएलएसए टेस्ट | यह जाँच बहुत ही बारीकी से पता लगाने के लिये डॉक्टर करते है, जिसमे सही मायने मे डेंगू, मलेरिया तथा चिकनगुनिया तीनों मे किस का वायरस है यह पता लग जाये. |
वाइरस इसोलेशन | यह टेस्ट चिकनगुनिया के वायरस और उससे सबंधित और छोटी-छोटी जानकारी के लिये डॉक्टर करते है. |
चिकनगुनिया के लिये अभी तक कोई भी वैक्सीनेशन नही बन पाया है, जिससे हम इसे होने से रोक सके, पर हमने यहाँ कुछ टेस्ट के नाम तथा उससे संबन्धित जानकारी संक्षिप्त मे बताई है. यदि डॉक्टर को लगता है तो वह कुछ टेस्ट बढा या कम भी कर सकते है. इनमे से कोई सी भी जांच मरीज को मन से बिल्कुल नही करानी है.
चिकनगुनिया का सावधानियां (Prevention of Chikungunya)
हर बीमारी से ठीक होने के निवारण होते है, जिसे समय रहते ही कर लेना चाहिये. जिससे ज्यादा तकलीफ ना सहन करना पड़े तथा वह बीमारी दुबारा ना होने पाये. चिकनगुनिया के निवारण इस प्रकार है-
- सफाई रखना – हम बचपन से पढते आ रहे है, कि हमे अपने आस पास साफ-सफाई रखना चाहिये. यदि कही कोई गन्दा पानी भरा है जिसमे मच्छर पनप रहे है तो उसे हटाये. आसपास की नालियों मे दवा का छिडकाव कराये इसी के साथ घर मे स्वच्छता का विशेष ध्यान दे. स्वच्छ तथा मौसम के अनुसार कपडे पहने और खाने से पहले सेनेटाईजर या साबुन से हाथ धो कर खाना खाये.
- खाद्य सामग्री का ध्यान रखना – हमे अपने खाने-पीने का ध्यान रखना चाहिये, मौसम के परिवर्तन के साथ खाने मे बदलाव लाये. हम जो भी खाने की वस्तु खरीद रहे है वह अच्छी जगह से, अच्छी क्वालिटी की ख़रीदे. बाहर का खाना नही के बराबर खाए, और बारिश के दिनों मे इसका खास ख्याल रखे. ज्यादा तलन तथा अत्यधिक मिर्च-मसाले का सेवन ना करे.
- बीमारी को नजर अंदाज ना करे – कई बार यदि सामान्य सर्दी-जुकाम, बुखार है तो, उसे भी नजरअंदाज बिल्कुल ना करे. तुरंत घर का उपचार चालू करे, यदि ठीक ना हो पाये, तो अपने डॉक्टर की सलाह ले ,तथा जाँच कराने मैं लापरवाही ना बरते.
चिकनगुनिया के घरेलू उपचार (Home Remedies of Chikungunya) –
बीमारी कितनी भी बड़ी क्यों ना हो, सदियों से हर बीमारी के घरेलू उपाय चले आ रहे है जों काफी हद तक फायदेमंद भी होते है, इस बीमारी के लिए कुछ इस प्रकार है –
- बुखार उतारने के लिये ठन्डे पानी की पट्टी रखे तथा तुलसी अदरक की चाय पिलाये. यह उपाय किसी भी तरह के बुखार में कारगर होता है.
- आयुर्वेदिक की दुकान पर कड़वा चिरायता के नाम से एक काढ़ा आता है उसकी दो बूंद पानी के साथ पिए.
- कड़वा नीम की पत्ती, जों हर बीमारी को जड़ से खत्म करता है, उसके पानी से नहाये तथा उसकी कोमल पत्ती को धोकर खाये.
- तुलसी, लौंग, काली मिर्च तथा अजवाइन को पानी मे डाल कर उबाल कर काढ़ा बनाये तथा उसे पिए. घर का सात्विक भोजन करे तथा हरी सब्जी तथा ताजे फलों का सेवन करे.
ये सभी उपाय डॉक्टर की सलाह के बाद ही करें.
चिकनगुनिया मे, कुछ बातों का विशेष ध्यान दे जैसे कि, यह किसी गर्भवती स्त्री, किसी बच्चे या किसी बुजुर्ग तथा पहले से किसी बीमारी से ग्रस्त किसी व्यक्ति को नही होना चाहिये. इस बीमारी का संक्रमण एक से दुसरे में फैलता है. हालाकि इसके उपचार है पर इसमें व्यक्ति ठीक बहुत धीरे-धीरे होता है कई बार जोड़ो के दर्द जाने मे पांच-छ: महीने तक लग जाते है. इसका बीमारी का पता लगते ही तुरंत इलाज कराना सबसे सही होता है.
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