ज्ञानी जेल सिंह जीवन परिचय Giani Zail Singh biography in hindi
ज्ञानी जेल सिंह भारत के सातवें राष्ट्रपति रहे. जेल सिंह नेहरु व गाँधी परिवार के सबसे बड़े समर्थक थे, जिस वजह से कई बार उनकी आलोचना भी होती थी. देश के सबसे बड़े राजनैतिक परिवार से अच्छे सम्बन्ध के कारण जेल सिंह कम समय में बहुत उपर ऊंचाई तक पहुँच गए थे. जेल सिंह का राष्ट्रपति काल काफी चुनौती से भरा रहा, लेकिन उन्होंने इसे अपनी समझ से पूरा किया.
ज्ञानी जेल सिंह जीवन परिचय ( Giani Zail Singh biography in hindi )

जेल सिंह का जन्म, परिवार व शिक्षा (Zail Singh family education)–
क्रमांक | जीवन परिचय बिंदु | जेल सिंह जीवन परिचय |
1. | पूरा नाम | ज्ञानी जेल सिंह |
2. | जन्म | 5 मई 1916 |
3. | जन्म स्थान | संध्वान गाँव, जिला फरीदकोट, पंजाब |
4. | माता-पिता | इंद कौर – भाई किसान सिंह |
5. | पत्नी | प्रधान कौर |
6. | बच्चे | 1 बेटा, 3 बेटी |
7. | राजनैतिक पार्टी | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
8. | मृत्यु | 25 दिसम्बर, 1994 चंड़ीगढ़ |
जेल सिंह को जरनैल सिंह भी कहते थे. उनका जन्म 5 मई, 1916 को पंजाब के फरीदकोट जिले के संध्वान ग्राम में हुआ था. इनके पिता का नाम किसान सिंह था, जो एक किसान एवं बढई थे. बचपन में ही उनकी माता चल बसी थी, जिस वजह से इनका पालन पोषण इनकी मौसी ने किया था. जेल सिंह जी को शुरू से ही पढाई से ज्यादा लगाव नहीं था. उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा भी पूरी नहीं की. जेल सिंह जी को उर्दू भाषा सिखने का मन में हमेशा से काफी उत्साह रहा, सो अपनी इस इच्छा पूर्ती के लिए उन्होंने उर्दू का ज्ञान प्राप्त भी किया. थोड़े समय बाद उन्हें गाना-बजाना सीखने की धुन सवार हुई, पैसे की तंगी के कारण वे एक हारमोनियम बजाने वाले के यहाँ उसके कपड़े धोकर, उसका खाना बनाकर हारमोनियम बजाना सीखने लगे. पिता की राय मिलने पर वे गुरुद्वारा में भजन कीर्तन करने लगे. कुछ समय पश्चात उन्होंने अमृतसर के शहीद सिख मिशनरी कॉलेज से गुरु ग्रंथ का पाठ सिखा, जिससे वे गुरुग्रंथ साहब के ‘व्यावसायिक वाचक’ बन गए थे और उन्हें ज्ञानी की उपाधि से सम्मानित किया गया.
स्वतंत्रता संग्रामी जेल सिंह –
देश की स्वतंत्रता एवं अपने देश के प्रति प्रेम के लिए जेल सिंह जी ने मात्र 15 वर्ष की आयु में ही ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध काम कर रहे, एक अकाली दल के सदस्य बन गए. 1938 में उन्होंने प्रजा मंडल नामक एक राजनैतिक पार्टी का गठन किया, जो भारतीय कॉग्रेस के साथ मिल कर ब्रिटिश विरोधी आंदोलन किया करती थी. जिस वजह से उन्हें जेल भेज दिया गया और उन्हें पांच वर्ष की सजा सुनाई गई. इसी दौरान उन्होंने अपना नाम बदलकर जैल सिंह (Jail Singh) रख लिया. प्रजा मंडल पार्टी के गठन के दौरान उनकी मुलाकात मास्टर तारा सिंह से हुई, जिन्होंने उन्हें दोबारा अपनी शिक्षा शुरू करने की सलाह दी. किन्तु जेल सिंह जी का पढाई में मन नहीं लगा और वे गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी में नौकरी करने लगे.
स्वतंत्रता से पूर्व ज्ञानी जैल सिंह देश को स्वतंत्र कराने के लिए और अंग्रेजों को देश से बाहर निकालने के लिए विभिन्न आंदोलनों का हिस्सा बने. सन 1946 में फरीदकोट जिले में किसी कार्यक्रम के दौरान जेल सिंह जी को अंग्रजो द्वारा तिरंगा झंडा फहराने से रोका गया, इस बात से परेशान जेल सिंह जी ने जवाहर लाल नेहरू जी को चिट्ठी लिख फरीदकोट आने का निमंत्रण दिया. फरीदकोट आने के बाद नेहरूजी ने देखा, कैसे पूरा फरीदकोट जेल सिंह जी की बातों का अनुसरण करता है. ये देख कर नेहरु जी ने जेल सिंह जी की योग्यता पहचान ली और अपनी पार्टी से जोड़ लिया.
जेल सिंह का राजनैतिक सफर –
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात ज्ञानी जैल सिंह को पटियाला और पूर्वी पंजाब राज्यों के संघ का राजस्व मंत्री बना दिया गया. 1951 जैल सिंह जी कृषि मंत्री बन गए. इसके अलावा वे 1956 से 1962 तक राज्यसभा के भी सदस्य रहे. 1969 में जेल सिंह जी के राजनैतिक संबध इंदिरा गाँधी से काफी अच्छे हो गए थे. तत्पश्चात 1972 में वे पंजाब के मुख्यमंत्री नियुक्त हुए. 1977 तक जेल सिंह जी इस पद पे कार्यरत रहे. 1980 में जेल सिंह जी को लोकसभा की सीट मिल गई और इंदिरा जी से मित्रता के चलते उनके कार्यकाल में जेल सिंह जी को देश का गृह मंत्री बना दिया गया.
1982 में नीलम संजीव रेड्डी का कार्यकाल समाप्त होने के बाद, सभी के मत से ज्ञानी जेल सिंह जी को राष्ट्रपति पद से नवाज़ा गया. 25 जुलाई, 1982 को उन्होंने इस पद की शपथ ली। ज्ञानी जेल सिंह का राष्ट्रपति के रूप में कार्यकाल प्रारंभ से अंत तक विवादों से ही घिरा रहा. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी जी के आदेशों के अनुसार, जब सिख अलगाववादियों को पकड़ने के उद्देश्य से अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में ओपरेशन ब्लू स्टार चलाया गया, उस समय ज्ञानी जेल सिंह ही राष्ट्रपति थे. इंदिरा गाँधी की हत्या और उसके विरोध में जब सिख समुदाय को मारा गया, तब भी जेल सिंह जी ही राष्ट्रपति थे. एक सिख समुदाय के होने बाबजूद, सिख्खों पर हो रहे अत्याचार को इन्होने नहीं रोका, जिससे इनका बहुत विरोद हुआ था, साथ ही आलोचना भी की गई. इसके बाद जब राजीव गाँधी प्रधानमंत्री बने, तब किसी विधेयक को पास करने को लेकर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के संबंधों में खिंचाव के समाचार भी सुनने में आए, पर ज्ञानी जी ने अपना कार्य सकुशलता पूर्वक पूरा किया और 25 July,1987 तक इस पद पर कार्यरत रहे.
ज्ञानी जेल सिंह मृत्यु (Giani Zail Singh Death) –
ज्ञानी जेल सिंह बेहद धार्मिक व्यक्तित्व वाले इंसान थे. 25 दिसम्बर, 1994 में तख्त श्री केशगड़ साहिब जाते समय उनकी गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गई और उनकी मृत्यु हो गई. दिल्ली में जहां ज्ञानी जैल सिंह का दाह-संस्कार हुआ था, उसे एकता स्थल के नाम से जाना जाता है. आज भी लोग वहां जा कर उन्हें श्रधांजलि देते है. वह केवल एक दृढ निश्चयी और साहसी व्यक्तित्व वाले इंसान ही नहीं बल्कि एक समर्पित सिख भी थे. भारतीय राजनीति में आज भी उन्हें एक निरपेक्ष और दृढ़ निश्चय वाले व्यक्ति के रूप में याद किया जाता है.
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FAQ
Ans- ज्ञानी जैल सिंह हमारे देश के सांतवे राष्ट्रपति थे।
Ans- ज्ञानी जैल सिंह का जन्म 5 मई 1916 को हुआ।
Ans- ज्ञानी जैल सिंह की मृत्यृ 25 दिसंबर 1994 को हुई
Ans- ज्ञानी जैल सिंह कांग्रेस पार्टी के नेता थे।
Ans- 25 जुलाई 1982 को बने राष्ट्रपति।
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