भारत आधारित न्यूट्रिनो वेधशाला प्रोजेक्ट | India-Based Neutrino Observatory (INO) Project Details in Hindi
भारत में जल्द ही न्यूट्रिनो वेधशाला प्रोजेक्ट का कार्य शुरू होने वाला है. इस प्रोजेक्ट को हर तरह की मंजूरी मिल गई है और आनेवाले समय में हमारे देश का नाम भी उन देशों में शामिल हो जाएगा. जिन देशों में न्यूट्रिनो कणों पर अध्ययन किया जा रहा है. भारत में बनने वाली ये वेधशाला तमिलनाडु राज्य में बनाई जाएगी.
आज हम अपने लेख में आपको भारत में शुरू होनेवाले इस प्रोजेक्ट के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं और ये बताने जा रहे हैं कि आखिर ये कण होते क्या हैं और इन कण पर अध्ययन क्यों किया जा रहा है.

भारत आधारित न्यूट्रिनो वेधशाला प्रोजेक्ट
क्या होते हैं न्यूट्रिनो (What Are Neutrinos)
हमारे ब्रह्मांड में कई तरह के कण मौजूद हैं और इन्हीं कणों में से कई कणों पर वैज्ञानिकों द्वारा शोध भी किए जा रहे हैं. हमारे ब्रह्मांड में मौजूद इन्हीं कणों में से एक कण का नाम न्यूट्रिनो है और इस कण के अध्ययन पर कई सालों से वैज्ञानिकों द्वारा कार्य किया जा रहा है. ये कण काफी अधिक मात्रा में हमारे ब्रह्मांड में मौजूद हैं. फोटॉन के बाद ये ही एक ऐसा कण है जो हमारे यूनिवर्स में अधिक मात्रा में पाए जाते हैं. हमारे यूनिवर्स यानी ब्रह्मांड में हर एक क्यूबिक सेंटीमीटर में करीब 1,000 फोटॉन और 300 न्यूट्रिनो पाए जाते हैं.
कहां से आते हैं न्यूट्रिनो (Where do neutrinos come from)
वैज्ञानिकों के अनुसार हर पल हमारे यूनिवर्स में लाखों की संख्या में न्यूट्रिनो बनते हैं. सूर्य, तारे, वातावरण और कॉस्मिक विकिरणों की क्रिया के कारण ये उत्पन्न होते हैं. यूनिवर्स में उत्पन्न होने के बाद ये कण लम्बी यात्रा तय करते हुए धरती पर आते हैं. दरअसल यूनिवर्स में उत्पन्न हुए कई सारे अन्य कण भी धरती की और आते हैं, लेकिन इनमें से ज्यादातर कण धरती पर पहुंचने से पहले ही नष्ट हो जाते हैं. लेकिन न्यूट्रिनो कण बिना किसी दिक्कत के आसानी से अपनी यात्रा तय करके धरती पर पहुंच जाता है. इस कण के रास्ते में आने वाले तारे, गैलेक्सी और अन्य बधाएं भी इनको रोक नहीं पातीं और इस कण की यही खासियत इन्हें अन्य कणों से अलग बनाती है.
न्यूट्रिनोस से जुड़ी अन्य जानकारी (Facts About Neutrinos)
कृत्रिम रूप से भी बनाए जा सकते हैं- इनका निर्माण कृत्रिम रुप से भी आसानी से किया जा सकता है. इनका कृत्रिम रूप से निर्माण रेडियोएक्टिव डायस एंड इन नुक्लेअर रिएक्टर में होता है.
न्यूट्रिनो का द्रव्यमान- न्यूट्रिनो का द्रव्यमान लगभग ना के सामान होता है. दरअसल पहले जब वैज्ञानिकों ने इन पर अध्ययन किया था, तो ये पाया था कि इनमें द्रव्यमान नहीं होता है. लेकिन हाल के प्रयोगों से पता चला है कि ये द्रव्यमान रहित नहीं होते हैं और इनमें हल्का सा द्रव्यमान होता है.
किसी के संपर्क में नहीं आते हैं- यूनिवर्स में मौजूद लगभग सभी तरह के कण किसी ना किसी चीज से (जैसे मजबूत बल, विद्युत चुम्बकीय या कमजोर बल) संपर्क में आ जाते हैं. लेकिन न्यूट्रीनो ही केवल ऐसा कण है, जो कि किसी के संपर्क में नहीं आता है और इस बात का अंदाजा इसी चीज से लगाया जा सकता है कि एक व्यक्ति के जीवनकाल में औसतन एक न्युट्रिनो ही उनके शरीर के संपर्क में आ पाता है.
नुकसानदेह नहीं होते हैं- अगर आप ये सोच रहे हैं कि ये कण हमारे शरीर के लिए नुकसानदेह होते हैं, तो आप गलत सोच रहे हैं. वैज्ञानिक के मुताबिक न्यूट्रिनोस शरीर के लिए हानिकारक नहीं होते हैं.
न्यूट्रीनो के प्रकार- न्यूट्रीनो के तीन तरह के रूप हैं, जिनके नाम इस प्रकार हैं इलेक्ट्रॉन (electron) , म्यूऑन (muon) और ताऊ (tau). सूर्य में निर्मित हुआ इलेक्ट्रॉन न्यूट्रिनो अपने आपको म्यूऑन न्युट्रिनो में बदल लेता है और इसी तरह से म्यूऑन न्युट्रिनो धरती पर आते समय ताऊ न्यूट्रिनो में परिवर्ति हो जाता है. न्युट्रिनो के इस तरह से बदलने की प्रक्रिया को न्यूट्रिनो ओस्किल्लेश्न (Neutrino Oscillation) कहा जाता है.
किसने की थी इनकी खोज- इस कण के बारे में सबसे पहले साल 1930 में पता चला था. जिसके बाद से कई वैज्ञनिकों ने इस कण पर कार्य किया था. साल 1930 से न्यूट्रिनो पर कई रिसर्च किए जा रहे हैं और साल 2015 में न्यूट्रिनो के रिसर्च पर लगे दो वैज्ञानिकों को नोबले इनाम भी मिला था.
भारत के न्यूट्रिनो योजना की जानकारी- (India-based Neutrino Observatory (INO) Project Information in hindi)
भारत के तमिलनाडु राज्य में इस प्रोजेक्ट को भारत सरकार शुरू करेगी और इस प्रोजेक्ट की ऑब्जर्वेटरी इस राज्य के थेनी जिले की बोडी पहाड़ियों में बनाई जाएगी. इस प्रोजेक्ट को भारत सरकार ने 11वीं, पंचवर्षीय योजना में शामिल किया था और न्यूट्रिनो ऑब्जर्वेटरी को बनाने के लिए सरकार ने साल 2015 में अपनी मंजूरी दी थी. इस प्रोजेक्ट पर 1500 करोड़ रुपये से अधिक राशि का खर्चा आने वाले है. वहीं इस ऑब्जर्वेटरी के जरिए किस तरह से न्यूट्रिनो पर कार्य किया जाएगा इसकी जानकारी नीचे दी गई है-
किसी तरह से होगा ऑब्जर्वेटरी का निर्माण (Construction work Details)
- इंडिया बेस्ड न्यूट्रिनो ऑब्जर्वेटरी (आईएनओ) प्रोजेक्ट के पहले चरण के तहत न्यूट्रिनो का पता लगाने के लिए एक डिटेक्टर बनाया जाएगा. इस डिटेक्टर को पहाड़ के अंदर बनाया जाएगा और ऐसा इसलिए किया जाएगा क्योंकि वातावरण में न्यूट्रिनो के अलावा अन्य कण भी मौजूद होते हैं. लेकिन न्यूट्रिनो ही एक ऐसा कण है, जो कि किसी भी चीज के संपर्क में नहीं आता है और आसानी से किसी भी चीज के पार चले जाता है.
- डिटेक्टर के पहाड़ के नीचे होने के कारण अन्य कण या तो पहाड़ से टकरा जाएं या फिर पहाड़ में चट्टान द्वारा फ़िल्टर हो जाएंगे. और इस तरह ये अन्य कण डिटेक्टर तक नहीं पहुंच पाएंगे.
- आयरन कैलोरीमीटर नामक इस डिटेक्टर में रेसिस्टिव प्लेट चेंबर (आरपीसी) नामक एक और डिटेक्टर भी लगाया जाएगा. योजना के मुताबिक आयरन कैलोरीमीटर में 30,000 से ज्यादा आरपीसी का उपयोग किया जाएगा.
- आरपीसी की मदद से करीब 3.6 मिलियन से अधिक चैनल्स इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल कंप्यूटर तक पहुंचाए जाएंगे, जिन्हें कंप्यूटर में संग्रहीत किया जाएंगे. इस संग्रहीत डेटा के जरिए वैज्ञानिक इस पर अध्ययन करेंगे.
- भारत में बनाया जा रहे इस डिटेक्टर का कुल वजन 50 केटन (ktons) होगा और ये विश्व का सबसे बड़ा इलेक्ट्रोमैग्नेट होगी. इस प्रोजेक्ट के तहत दो गुफाओं का निर्माण किया जाएगा. एक गुफा के अंदर डिटेक्टर लगाया जाएगा और ये डिटेक्टर (26 मीटर (चौड़ाई) x 30 मीटर (ऊंचाई) x 132 मीटर (लंबाई)) का होगा.
- वहीं दूसरी गुफा के अंदर डिटेक्टर को नियंत्रित करने और निगरानी रखने के लिए कंप्यूटर और अन्य उपकरणों को रखा जाएगा. इस जगह से पहली गुफा में हो रहे कार्य पर ऑब्जरवेशन भी रखी जाएगा.
- इसके अलावा इस गुफा के इलाके के आस पास वैज्ञानिकों, इंजीनियरों, श्रमिकों, छात्रों के लिए रहने की सुविधा उपलब्ध करवाई जाएगी और घरों का निर्माण करवाया जाएगा.
भारत आधारित न्यूट्रिनो वेधशाला प्रोजेक्ट से जुड़ी अन्य जानकारी-
आखिर क्यों चुनी गई ये जगह – सरकार ने कुछ वैज्ञानिकों को इस ऑब्जर्वेटरी को बनाने के लिए जगह चुनने का कार्य दिया गया था. जिसके बाद इन वैज्ञानिकों ने पश्चिमी घाट की पहाड़ियों को इस ऑब्जर्वेटरी को बनाने के लिए सबसे उचित पाया था. वैज्ञानिकों ने भूवैज्ञानिक और भूकंपी जैसी चीजों को ध्यान में रखते हुए इस जगह का चयन किया था. इस इलाके में आबादी भी ना के समान हैं. ऐसे में अगर कभी ये ऑब्जर्वेटरी किसी आपदा का शिकार होती है, तो इस जगह पर होने के कारण लोगों को इससे कोई नुकसान नहीं होगा. वहीं ये ऑब्जर्वेटरी मदुरई से लगभग 110 किमी पर स्थित होगी.
कौन-कौन ले रहे हैं इस प्रोजेक्ट में भाग- भारत के कई जाने माने विश्वविद्यालय और अनुसंधान संस्थान इस प्रोजेक्ट का हिस्सा हैं. टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च इस शोध का नेतृत्व करेगा. इस इंस्टीट्यूट के अलावा भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र और परिवर्तनीय ऊर्जा चक्रवर्ती केंद्र में भी शोध में हिस्सा लेने वाले हैं. भारत के इन सभी इंस्टीट्यूट को अलग-अलग तरह की जिम्मेदारी दी गई हैं.
छात्रों को भी मिलेगा सीखने का मौका – आईएनओ ने न्यूट्रिनो अनुसंधान सें संबंध एक स्नातक प्रशिक्षण स्कूल भी शुरू किया है. इस स्कूल के छात्रों को भी इस प्रोजेक्ट के जरिए विभिन्न प्रकार की जानकारी दी जाएगी और इस प्रोजेक्ट पर कार्य करने का मौका भी दिया जाएगा.
सालों से इस प्रोजेक्ट पर हो रहा है कार्य- इस प्रोजेक्ट पर केंद्रीय सरकार और तमिलनाडु सरकार मिलकर कार्य कर रही हैं और साल 2010 में परमाणु ऊर्जा विभाग (डीएई) ने इस प्रोजक्ट से संबंधित एक पत्र तमिलनाडु सरकार को लिखा था. इस पत्र के जरिए डीएई ने यहां की सरकार से इस ऑब्जर्वेटरी को बनाने के लिए जमीन देने को कहा था. जिसके बाद तमिलनाडु सरकार ने बोडी वेस्ट हिल्स में इस परियोजना के लिए 26.8 हेक्टेयर भूमि आवंटित की थी.
हाल ही में मिली पर्यावरण मंत्रालय से मंजूरी (Clearance To Neutrino Project)
इस ऑब्जर्वेटरी को बनाने का काम पर्यावरण कारणों के चलते काफी सालों तक रुका रहा था. वहीं हाल ही में केन्द्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने इस प्रोजेक्ट के लिए कुछ शर्तें के साथ अपनी मंजूरी दे दी है. मंत्रालय की और से रखी गई शर्तों में से कुछ शर्तें इस प्रकार हैं-
- इस ऑब्जर्वेटरी को बनाते समय कम से कम पेड़ों को काटा जाना चाहिए. इसके अलावा प्रत्येक 80 वर्गमीटर भूमि के लिए 1 वृक्ष लगाया जाना चाहिए. ताकि पर्यारण को नुकसान ना हो.
- किसी भी निर्माण के कारण यहां के प्राकृतिक जल निकासी को हानि नहीं पहुंचनी चाहिए. मंत्रालय के मुताबिक, मंत्रालय के पास समय समय पर सुरक्षा की जांच करने का भी अधिकार होगा और मंत्रालय के पास सुरक्षा के लिए नई नियमों को भी जोड़ने का अधिकार होगा.
हालांकि मंत्रालय की और से इस प्रोजेक्ट को मंजूरी मिलने के बाद भी कई लोग इस प्रोजेक्ट का विरोध कर रहे हैं और इन लोगों ने मंत्रालय के इस फैसले को पर्यावरण के लिए गलत बताया है.
भारत में शुरू होने वाले इस प्रोजेक्ट के फायदे (Neutrino Project Advantages)
- वैज्ञानिकों का माना है कि न्यूट्रिनो का निर्माण ब्रह्मांड के साथ ही हुआ था. ऐसे में इन कणों पर अध्ययन करने से वैज्ञानिकों को ब्रह्मांड के निर्माण से जुड़े कई सारे सवालों के जवाब आसानी से मिल सकेगा हैं.
- ये कण अन्य कणों से एकदम अलग हैं और इन कणों को किसी भी चीजे के साथ रोका नहीं जा सकता है. कहा जाता है कि ये कर्ण धरती पर आने के बाद, धरती के पार चले जाते हैं. ऐसे में इन कणों की खासियत का पता लगाना विज्ञान के क्षेत्र में काफी बड़ी उपलब्ध होगी.
- दुनिया में कई देश न्यूट्रिनो पर कई सालों से अध्ययन कर रहे हैं और अब भारत के वैज्ञानिकों को भी न्यूट्रिनो पर अध्ययन करने का मौका मिलेगा और जिससे की विज्ञान के क्षेत्र में भारत की और तरक्की होगी.
भारत में शुरू होने वाले इस प्रोजेक्ट के नुकसान (Neutrino Project Disadvantages) –
- न्यूट्रिनो के अध्ययन के लिए बनने वाली लैब से कई तरह के रेडिएशन निकलेंगे, जो कि पर्यावरण को काफी हानि पहुंचा सकते हैं और इस लैब के आसपास के वातावरण को खराब कर सकते हैं.
- इस ऑब्जर्वेटरी को पहाड़ों के नीचे बनाया जाएगा, जिससे की इन पहाड़ों को नुकसान होने का काफी खतरा है. हालांकि इस प्रोजेक्ट पर कार्य करने वाले लोगों ने साफ किया है कि ऑब्जर्वेटरी बनने से पहाड़ों को किसी भी तरह की हानि नहीं होगी.
- इसके अलावा इस ऑब्जर्वेटरी को बनाने के लिए कई सारे पेड़ों को भी काटा जाएगा और ये भी चिंता का कारण है. इसी कारण के चलते इस प्रोजेक्ट का काफी समय से विरोध हो रहा है.
कई देशों ने अच्छी प्लानिंग के साथ, अपने देश में इस तरह की ऑब्जर्वेटरी बनाई हुई हैं और भारत सरकार ने भी इस ऑब्जर्वेटरी को बनाने के लिए हर चीज पर खासा ध्यान दिया है. लेकिन इस ऑब्जर्वेटरी को बनाने से होने वाले नुकसानों को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. ऐसे में ये तय कर पाना की ये ऑब्जर्वेटरी बनाना सही है कि गलत ये थोड़ा मुश्किल है. लेकिन देश की तरक्की के लिए और विज्ञान के क्षेत्र में आगे बढ़ने के ये ऑब्जर्वेटरी बनाने काफी जरुरी है.
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