हिंदी नैतिक कहानियाँ सच्ची तालिम ( Moral Short Story in hindi)
आज मैं आपको एक कहानी सुनाने जा रही हूँ जिसका नाम हैं “सच्ची तालिम ”
दोस्तो यह कहानी हैं शरारती राजू की. राजू एक ऐसा शरारती बच्चा हैं जिसने पूरे मौहल्ले की नाक में दम कर रखा हैं. उसकी शरारते भी ऐसी होती कि लोगो के आपस में झगड़े ही करवा देती. वो कभी किसी की साइकल पंचर कर देता, तो कभी किसी के घर की बेल बजाकर भाग जाता.
मौहल्ले वाले राजू से बहुत परेशान हो चुके थे. राजू की उम्र इतनी भी कम नहीं थी, कि उसे बच्चा समझकर छोड़ दिया जाये, इसलिये सभी उसको बहुत डांटते और कभी- कभी तो मार भी देते थे .
जब उसके पापा, दफ्तर से घर वापस आते, तो राजू उनसे पड़ोसियों की शिकायत करता. कभी कहता, उसे शर्मा अंकल ने डाटा या कभी गुप्ता आंटी ने झाड़ू से मारा. जब राजू के पापा पड़ोसियों से बात करने जाते, तो पड़ोसी उल्टा उन्हे ही चार बाते सुना जाते. राजू के पापा, उसकी शरारतों से परेशान हो चुके थे .
एक दिन, राजू के पापा ने सोचा. आज वो दिन भर राजू के साथ रहेंगे और उसकी सभी शरारतों मे उसका साथ देंगे.
सुबह से ही राजू की शरारते शुरू हो गई. उसने पड़ोसी का न्यूज़ पेपर छिपा दिया. जब गुस्से से लाल पड़ोसी बाहर आया, तो उन्हे देख राजू ज़ोर- ज़ोर से हंसने लगा. इस बार राजू के साथ उसके पापा को देख पड़ोसी के गुस्से का पारा, मई की गर्मी से भी कई गुना ज्यादा हो गया था. गुस्से से लाल पड़ोसी ने दोनों को बहुत सुनाई, पर जब राजू और उसके पापा को कोई फर्क नहीं पड़ा, तो वो भी दरवाजा पटकते हुये घर के अंदर चला गया.
अब मोहल्ले में बाते भी शुरू हो गई थी. लड़का क्या कम था, जो बाप भी ऐसा करने लगा.
राजू ने दिनभर बहुत सी शरारते की, उसके पापा ने भी उसका भरपूर साथ दिया. रात को उसके पापा ने राजू से कहा – तुमने आज बहुत सारी शरारते की और तुम्हें मजा भी बहुत आया. पर, अब कल मैं शरारते करूंगा. क्या तुम मेरा साथ दोगे. राजू को तो यह सुनकर मजा ही आ गया.
अब अगले दिन सुबह, राजू के पापा, उसे सब्जी बेचने वाली बुढ़िया के पास ले गये. राजू, अक्सर ही उस बुढ़िया को बहुत परेशान किया करता था. कभी उसकी सब्जियाँ फेंक देता, तो कभी उसकी चप्पल चुरा लेता. फिर वो बुढ़िया डंडा लेकर उसके पीछे भागती.
राजू को लगा पापा भी कुछ ऐसा करेंगे. लेकिन उसके पापा ने कुछ अलग किया. बुढ़िया जैसे ही अपनी सब्जियों से दूर गई. राजू के पापा ने, राजू के साथ मिलकर सब्जियाँ साफ करके जमा दी. बुढ़िया वापस आई तो, जमी हुई सब्जियाँ देख कर बहुत खुश हुई. थोड़ी देर बाद, जब बुढ़िया की आँख लग गई, तो राजू के पापा ने बुढ़िया की टूटी चप्पल ठीक करवाकर रख दी. जैसे ही बुढ़िया उठी, चप्पलों को देख उसकी आंखे भर आई और वो कहने लगी – भगवान उस फरिश्ते को खुश रखना, जिसने मेरे लिए इतना किया.
शाम होते – होते तक राजू के पापा ने छिपकर बुढ़िया की बहुत मदद की. राजू को भी छिप- छिपकर ये सब करने मे बहुत मजा आ रहा था. पर वो यह नहीं जानता था, कि इस बार वो शरारत नहीं, बल्कि लोगो की मदद कर रहा हैं .
थोड़ी देर बाद, राजू के पिता ने बुढ़िया से जाकर कहा – माता जी, आप जानना नहीं चाहती, कि आज आपकी मदद कौन कर रहा हैं ? बुढ़िया ने कहा – हाँ, बिलकुल जानना चाहती हूँ. तब राजू के पिता ने राजू को आगे बुलाया और कहा – माता जी, ये सब राजू ने किया हैं. राजू को लगा, आज फिर बुढ़िया उसे झाड़ू से मारेगी और वो भागने लगा. तब बुढ़िया ने उसे पकड़ा और गले लगा लिया. साथ ही, राजू को एक चोकलेट भी दी.
राजू को कुछ समझ नहीं आ रहा था. वो अपने पापा के साथ वापस घर आ गया. पूरे टाइम बोलते रहने वाला राजू आज चुप था. राजू के पापा ने उससे कहा – राजू बेटा, आज जो तुमने किया, क्या तुमको उससे खुशी मिली ? राजू ने कहा – हाँ पापा, और एक चॉकलेट भी मिली. राजू के पापा ज़ोर- ज़ोर से हंसने लगे. राजू के पापा ने उसे समझाते हुये कहा – बेटा, तुम रोज – रोज सबको परेशान करते हो, फिर सब तुम्हें डांटते हैं. और फिर तुम मुझसे आकर, उनकी शिकायत करते हो. लेकिन आज तुमने सबकी मदद की, तो उन्होने तुम्हें बहुत प्यार किया…..
राजू को सारी बाते समझ आ जाती हैं और वो शरारते करना बंद कर देता हैं…
कहानी से सीख ( Moral Of The Story):
दोस्तों , आजकल के बच्चे इंटेलिजेंट तो होते हैं, पर संस्कारों से दूर होते जा रहे हैं. क्या आपने कभी सोचा हैं ऐसा क्यूँ हो रहा हैं ? ऐसा इसलिये हो रहा हैं, क्यूंकि आजकल के माता – पिता, अपने बच्चो के खिलाफ एक शब्द भी सुनना पसंद नहीं करते, ऐसे मैं वो अपने बच्चो को सही – गलत सीखा ही नहीं पाते.
बच्चो को सच्ची तालिम उनके माता – पिता ही दे सकते हैं. अगर राजू के पापा केवल उसी ही की बात सुनते और पड़ोसियों से लड़ते, तो वो राजू को कभी सही – गलत का अहसास नहीं करवा पाते. अगर हर माँ बाप अपने बच्चे को बचपन से ही एक अच्छी तालिम दे, तो एक अच्छे समाज का निर्माण होगा.
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