चैती व कार्तिक छठ पूजा 2022 महत्व व्रत कथा इतिहास (Kartik Chaiti Chhath Puja Mahatva, Katha, Vrat Vidhi History In Hindi)
छठ पूजा के दिन माता छठी की पूजा की जाती हैं, जिन्हें वेदों के अनुसार उषा (छठी मैया) कहा जाता है, जिन्हें शास्त्रों के अनुसार सूर्य देव की पत्नी कहा गया हैं इसलिए इस दिन सूर्य देवता की पूजा का महत्व पुराणों में निकलता हैं. इस पूजा के जरिये भगवान सूर्य का देव को धन्यवाद दिया जाता हैं. सूर्य देव के कारण ही धरती पर जीवन संभव हो पाया हैं, एवम सूर्य देव की अर्चना करने से मनुष्य रोग मुक्त होता हैं. इन्ही सब कारणों से प्रेरित होकर यह पूजा की जाती हैं.
छठ पूजा दो बार मनाई जाती हैं :
- चैती छठ पूजा
- कार्तिक छठ पूजा

2022 में कब होती हैं छठ पूजा ? (Chaiti Kartik Chhath Puja Date)
छठ पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाई जाती हैं. यह चार दिवसीय त्यौहार होता हैं जो कि चौथ से सप्तमी तक मनाया जाता हैं. इसे कार्तिक छठ पूजा कहा जाता हैं. इसके आलावा चैत्र माह में भी यह पर्व मनाया जाता हैं जिसे चैती छठ पूजा कहा जाता हैं.
कार्तिक छठ खासतौर पर उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखण्ड एवम नेपाल में मनाया जाता हैं. यह दिन उत्सव की तरह हर्ष के साथ मनाया जाता हैं. यह छठ पूजा इस वर्ष 2022 में 28 अक्टूबर, दिन शनिवार को मनाई जाएगी.
कार्तिक छठ पूजा 2022 में कब है? (Kartik Chhath Puja Date)
तारीख | छठ पूजा का शुभ मुहूर्त | तिथि |
28 अक्टूबर | नहाय खाय | चतुर्थी |
29 अक्टूबर | लोहंडा और खरना | पंचमी |
30 अक्टूबर | संध्या अर्घ्य | षष्ठी |
31 अक्टूबर | उषा अर्घ्य, परना दिन | सप्तमी |
कार्तिक चैती छठ पूजा महत्व (Chhath Puja Mahatva):
इसका महत्व उत्तर भारत में सबसे अधिक हैं, कहा जाता हैं भगवान राम जब माता सीता से स्वयंबर करके घर लौटे थे और उनका राज्य अभिषेक किया गया था. उसके बाद उन्होंने पुरे विधान के साथ कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को पुरे परिवार के साथ पूजा की थी. तब ही से इस पूजा का महत्व हैं.
महाभारत काल में जब पांडव ने भी अपना सर्वस्व गँवा दिया था. तब द्रोपदी ने इस व्रत का पालन किया वर्षो तक इसे नियमित करने पर पांडवों को उनका सर्वस्व मिला था.इस प्रकार यह व्रत पारिवारिक खुशहाली के लिए किया जाता हैं.
छठ पूजा कथा व इतिहास (Chhath Puja Katha and History in hindi)
इसका बहुत अधिक महत्व होता हैं. इस दिन छठी माता की पूजा की जाती हैं और छठी माता बच्चो की रक्षा करती हैं. इसे संतान प्राप्ति की इच्छा से किया जाता हैं. इसके पीछे के पौराणिक कथा हैं :
बहुत समय पहले एक राजा रानी हुआ करते थे. उनकी कोई सन्तान नहीं थी. राजा इससे बहुत दुखी थे. महर्षि कश्यप उनके राज्य में आये. राजा ने उनकी सेवा की महर्षि ने आशीर्वाद दिया जिसके प्रभाव से रानी गर्भवती हो गई लेकिन उनकी संतान मृत पैदा हुई जिसके कारण राजा रानी अत्यंत दुखी थे जिस कारण दोनों ने आत्महत्या का निर्णय लिया. जैसे ही वे दोनों नदी में कूदने को हुए उन्हें छठी माता ने दर्शन दिये और कहा कि आप मेरी पूजा करे जिससे आपको अवश्य संतान प्राप्ति होगी. दोनों राजा रानी ने विधि के साथ छठी की पूजा की और उन्हें स्वस्थ संतान की प्राप्ति हुई.तब ही से कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को यह पूजा की जाती हैं.
छठ पूजा व्रत विधि (Chhath Puja Vrat Vidhi):
यह पर्व चार दिन का होता हैं. बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता हैं. इसे उत्तर भारत में सबसे बड़ा त्यौहार मानते हैं. इसमे गंगा स्नान का महत्व सबसे अधिक होता हैं. यह व्रत स्त्री एवम पुरुष दोनों करते हैं. यह चार दिवसीय त्यौहार हैं जिसका माहत्यम कुछ इस प्रकार हैं :
1 | नहाय खाय | यह पहला दिन होता हैं. यह कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से शुरू होता हैं. इस दिन सूर्य उदय के पूर्व पवित्र नदियों का स्नान किया जाता हैं इसके बाद ही भोजन लिया जाता हैं जिसमे कद्दू खाने का महत्व पुराणों में निकलता हैं.
|
2 | लोहंडा और खरना | यह दूसरा दिन होता हैं जो कार्तिक शुक्ल की पंचमी कहलाती हैं. इस दिन, दिन भर निराहार रहते हैं. रात्रि में खिरनी खाई जाती हैं और प्रशाद के रूप में सभी को दी जाती हैं. इस दिन आस पड़ौसी एवम रिश्तेदारों को न्यौता दिया जाता हैं. |
3 | संध्या अर्घ्य | यह तीसरा दिन होता हैं जिसे कार्तिक शुक्ल की षष्ठी कहते हैं. इस दिन संध्या में सूर्य पूजा कर ढलते सूर्य को जल चढ़ाया जाता हैं जिसके लिए किसी नदी अथवा तालाब के किनारे जाकर टोकरी एवम सुपड़े में देने की सामग्री ली जाती हैं एवम समूह में भगवान सूर्य देव को अर्ध्य दिया जाता हैं. इस समय दान का भी महत्व होता हैं. इस दिन घरों में प्रसाद बनाया जाता हैं जिसमे लड्डू का अहम् स्थान होता हैं. |
4 | उषा अर्घ्य | यह अंतिम चौथा दिन होता हैं. यह सप्तमी का दिन होता हैं. इस दिन उगते सूर्य को अर्ध्य दिया जाता हैं एवम प्रसाद वितरित किया जाता हैं. पूरी विधि स्वच्छता के साथ पूरी की जाती हैं. |
यह चार दिवसीय व्रत बहुत कठिन साधना से किया जाता हैं. इसे हिन्दू धर्म में सबसे बड़ा व्रत कहा जाता हैं जो चार दिन तक किया जाता हैं. इसके कई नियम होते हैं :
छठ व्रत के नियम (Chhath Puja Vrat Rules):
- इसे घर की महिलायें एवम पुरुष दोनों करते हैं.
- इसमें स्वच्छ एवम नए कपड़े पहने जाते हैं जिसमे सिलाई ना हो जैसे महिलायें साड़ी एवम पुरुष धोती पहन सकते हैं.
- इन चार दिनों में व्रत करने वाला धरती पर सोता हैं जिसके लिए कम्बल अथवा चटाई का प्रयोग कर सकता हैं.
- इन दिनों घर में प्याज लहसन एवम माँस का प्रयोग निषेध माना जाता हैं.
इस त्यौहार पर नदी एवम तालाब के तट पर मैला लगता हैं. इसमें छठ पूजा के गीत गाये जाते हैं. जहाँ प्रसाद वितरित किया जाता हैं. इस त्यौहार में सूर्य देव को पूजा जाता हैं. इसके आलावा सूर्य पूजा का महत्व इतना अधिक किसी पूजा में नहीं मिलता. इसके पीछे एक वैज्ञानिक कारण भी हैं , कहते हैं छठी के समय पर धरती पर सूर्य की हानिकारक विकिरण आती हैं. इससे मनुष्य जाति को कोई प्रभाव न पड़े इसलिए नियमो में बाँधकर इस व्रत को संपन्न किया जाता हैं. इससे मनुष्य स्वस्थ रहता हैं.
कार्तिक छठ की तरह ही चैती अथवा चैत्री छठ मनाया जाता हैं. बस तिथी में अन्तर होता हैं. दोनों ही पूजा में सूर्य देव की पूजा की जाती हैं.
अन्य पढ़े :
- हल छठ पूजा विधि बलराम जयंती कथा महत्व
- छठ पूजा पर कविता बधाइयाँ
- भानु सप्तमी सूर्य पूजा महत्व पूजा विधि
- जीवित्पुत्रिका व्रत कथा महत्व एवम पूजा विधि