क्यों होती है बच्चों में असुरक्षा की भावना, जानिए इसके उपाय | Insecurity in Kids in hindi

क्या है बच्चों में असुरक्षा की भावना और कैसे उत्पन्न होती है जानिए इसके उपाय [What are the Reasons Behind Insecurity in Kids and Solutions in Hindi, Symptoms, Types, Root Cause, Effects, How to Overcome]

बच्चों का दिल बहुत कोमल होता है उनको जो भी सिखाया और समझाया जाता है भी जल्द ही उस बात को दिल और दिमाग में बैठा लेते हैं। जैसे अच्छी बातें बच्चे अपने दिल में बैठा लेते हैं वैसे ही कुछ बुरी बातें और और सुरक्षा से जुड़ी बातें भी बच्चे जल्द ही अपने दिलो दिमाग में बैठा लेते हैं। आज हम बात करेंगे बच्चों के दिलों दिमाग में बैठ जाने वाली और सुरक्षा और नकारात्मक भावनाओं के बारे में जो उनके आने वाले भविष्य से लेकर वर्तमान की परिस्थितियों में काफी गहरा प्रभाव डालती हैं।

what are the reasons behind insecurity in kids and solutions In Hindi

क्या होती है असुरक्षा की भावना?

यदि विशेषज्ञों की दृष्टि से देखा जाए तो बच्चों में असुरक्षा की भावना उनमें आत्मविश्वास की कमी के कारण उत्पन्न होती है। यदि सामान्य अर्थ में समझा जाए तो और सुरक्षा बच्चों के दिलों दिमाग में किसी भी चीज को लेकर हो सकती है। जैसे किसी व्यक्ति के साथ जुड़ना, किसी व्यक्ति के साथ बातचीत करना, अपने आसपास के माहौल के अनुसार चलना, अपने भविष्य को लेकर और असुरक्षित महसूस करना, अपनी किसी खराब या बुरी आदत को लेकर और सुरक्षित और भयभीत महसूस करना आदि। विशेषज्ञों के अनुसार सभी प्रकार की और सुरक्षा की भावना बच्चों के दिलों में तब उत्पन्न होती है, जब उनके आसपास कुछ और सामाजिक परिस्थितियां चल रही हो या फिर कुछ ऐसी तनावपूर्ण परिस्थितियों हो जिनको देखकर उनके दिमाग पर गलत असर पड़ता हो या फिर वे असुरक्षित महसूस करने लगते हो।

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असुरक्षा के विभिन्न प्रकार और उन्हें दूर करने के उपाय

बच्चों के अंदर और सुरक्षा के कई विभिन्न प्रकार के असामाजिक तत्व सम्मिलित होते हैं जिनमें से कुछ मुख्य तत्वों के बारे में हम यहां पर आपको विस्तार से बताने वाले हैं:-

आत्मा विश्वास की वजह से होने वाली असुरक्षा:-

बच्चों में असुरक्षा की भावना का आरंभ आत्मविश्वास की कमी होने की वजह से भी होता है। बाल्यावस्था एक ऐसी अवस्था होती है जिस समय में उनका दिमाग और शरीर दोनों ही विकास की ओर अग्रसर हो रहे होते हैं। ऐसे समय में यदि उनके आत्मविश्वास में कमी हो जाती है तो उनके दिल और दिमाग में असुरक्षा की भावना उत्पन्न होने लगती है। 3 साल की उम्र के बाद जब बच्चा पहली बार स्कूल जाना आरंभ करता है तब उसके जीवन में बहुत सारी चीजें ऐसी होती हैं जो वह पहली बार करता है जिसको लेकर उसके दिल में डर भी होता है और और सुरक्षा की भावना भी जगने लगती है। ऐसे में जब उसका कुछ नई चीजें सीखने का समय होता है वह उस समय में सही दिशा निर्देश और एक सुरक्षित एहसास ना मिलने की वजह से असुरक्षा की ओर बढ़ने लगता है।

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आत्म विश्वास की कमी को दूर करने का उपाय:-

यदि आपके बच्चे में आत्मविश्वास की कमी है जिसकी वजह से उसके दिलो-दिमाग में एक असुरक्षा की भावना उत्पन्न हो रही है। तो आपको अपने बच्चे की अंदर की उस समस्या को समझ कर उसका सही समाधान जल्द ही ढूंढ लेना चाहिए। आपको यह पता लगाना चाहिए कि आपके बच्चे के अंदर आत्मविश्वास की कमी क्यों उत्पन्न हो रही है? इस बात को लेकर आपको अपने बच्चे के साथ बातचीत करनी चाहिए और उसे प्यार से समझाना चाहिए ताकि वह अपने दिल की बात आपको बता सके और आप समय रहते उसकी उस परेशानी का हल ढूंढ कर उसके दिल में मौजूद सुरक्षा के डर को हमेशा के लिए खत्म कर सके।

अजनबियों को लेकर और सुरक्षा:-

हमारे समाज में बच्चों को यही सिखाया जाता है कि किसी भी अजनबी से मिलना जुलना नहीं चाहिए या फिर उनसे किसी भी चीज को नहीं लेना चाहिए। ऐसे में जब वे धीरे-धीरे घर से बाहर निकलने लगते हैं अपना स्कूल आरंभ करते हैं उस समय में उनका सामना कई अजनबी लोगों से होता है जैसे अध्यापक स्कूल में काम करने वाले कर्मचारी आदि। उनसे बातचीत करना तालमेल बिठाना कुछ बच्चे तो आराम से कर लेते हैं लेकिन कुछ बच्चों के अंदर ऐसे लोगों से बातचीत करने में एक हिचक होती है। जिसके चलते वे अपने आसपास के माहौल को देखकर और सुरक्षित महसूस करने लगते हैं। अजनबीयों को लेकर बच्चों के दिलों में कई प्रकार के सवाल होते हैं यदि उन सवालों का सही जवाब और उचित मार्गदर्शन उन्हें नहीं दिया जाता तो उनके दिल और दिमाग में अजनबी इंसान को लेकर एक और सुरक्षा की भावना उत्पन्न हो जाती है जो लंबे समय तक बनी रहती है।

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इसको सुरक्षा को दूर करने के सही उपाय:-

यह बात सही है कि जब बच्चा कुछ नए लोगों से मिलता है तो उनके साथ जल्दी से घुल मिल नहीं पाता है ऐसे में बच्चों का सही मार्गदर्शन केवल वही व्यक्ति कर सकते हैं जिन पर बच्चा पूरी तरह से विश्वास करता हो। उनके विश्वासपात्र में सबसे पहले उनके माता-पिता ही शामिल होते हैं। ऐसे में माता-पिता का सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्य यह बनता है कि वे यदि उनको किसी नई चीज के लिए लेकर जाते हैं जैसे नया स्कूल नया माहौल तो उसके लिए उनको पहले से ही तैयार करें। स्कूल या किसी भी नई जगह पर मौजूद व्यक्तियों के बारे में उनको पहले से ही बताया जाए उनको सही मार्गदर्शन प्रदान किया जाए उन्हें सबसे जान पहचान करा कर उनके बीच तालमेल बिठाने का सबसे पहला कर्तव्य माता-पिता को निभाना चाहिए। ताकि बच्चा अपने अंदर से असुरक्षा की भावना को निकाल कर एक सुरक्षित माहौल महसूस कर सकें।

आसपास का माहौल भी असुरक्षा की भावना को करता है उत्पन्न:-

एक छोटे बच्चे पर सामाजिक तत्वों से पहले उसके घर के माहौल का सबसे ज्यादा असर पड़ता है जिसके चलते उसका दिमाग विकसित होने लगता है और घर में होने वाली सभी बातों को धारण भी करता है। बच्चों में असुरक्षा की भावना पैदा होना सबसे पहले उसके घर के माहौल पर निर्भर करता है कि उसका घर का माहौल कितना अच्छा है या बुरा है। यदि घर में माता-पिता या घर के अन्य सदस्य घर में कलह-क्लेश या गाली गलौज का माहौल बनाकर रखते हैं तो बच्चे के दिलों दिमाग पर वह बातें बहुत ज्यादा गहरा असर छोड़ती हैं। ऐसे में बच्चा जब घर से बाहर निकलना शुरु करता है और कहीं भी अपने घर जैसा माहौल देखता है तो वह असुरक्षित महसूस करने लगता है। कहीं ना कहीं उसके दिलो-दिमाग में असुरक्षा की भावना जन्म लेने लगती है जो आगे चलकर डिप्रेशन को भी जन्म दे सकती है। घर का ऐसा बिगड़ा हुआ माहौल देखकर बच्चा कई बार अपने जीवन में गलत कदम भी उठा लेता है और गलत रास्ते पर भी निकल पड़ता है। वह भले ही कितना भी बड़ा और समझदार हो जाए परंतु एक असुरक्षा की भावना उसके दिलो-दिमाग पर सदैव बनी रहती है।

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घर के माहौल को बनाए सुरक्षित:-

यदि आपके बच्चे के दिलो-दिमाग में किसी भी प्रकार का डर और सुरक्षा की भावना उत्पन्न हो रही है तो सबसे पहले उसके कारण का अवश्य पता लगाएं यदि उसकी और सुरक्षा का कारण आपके घर का माहौल है तो सबसे पहले आपको आवश्यक है कि सबसे पहले आपको अपने घर के माहौल को सुधारना होगा यदि आप ऐसा करने में सक्षम नहीं हो पाते हैं तो बच्चे को एक ऐसा माहौल प्रदान अवश्य करें जहां पर वह ऐसे माहौल से दूर रह सके और एक नए माहौल में खुद को सुरक्षित महसूस करें। क्योंकि यदि एक बालक अपने घर के माहौल में ही खुद को सुरक्षित महसूस नहीं कर पाएगा तो वह किसी भी नए माहौल में घुलने- मिलने के लिए तैयार नहीं हो पाएगा।

फेलियर बनने की असुरक्षा:-

कभी-कभी हम बच्चों को दूसरे बच्चों से बेहतर और सक्षम बनाने की होड़ में उसके आत्मविश्वास को ललकारते हैं जिसके चलते उसके दिलो-दिमाग में फैलियर होने से बचने की और सुरक्षा पैदा होने लगती है। बच्चे के अंदर कैसा डर बैठ जाता है जिसकी वजह से वह हमेशा यही सोचता है कि कहीं वह फेल ना हो जाए और बेहतर बनने के चक्कर में वह कुछ गलत कदम उठाने लगता है। जिसकी वजह से उसके दिलो-दिमाग में सदैव यह डर बैठा रहता है कि वह यदि अच्छा नहीं करेगा तो वह फेल हो जाएगा। बच्चे के अंदर कुछ नकारात्मक भावनाएं पैदा हो जाती हैं जिनकी वजह से यदि वे किसी काम को अच्छा और बेहतर करना चाहता भी हो तो उसे गलत कर जाता है। यह भावना किसी भी बच्चे के भविष्य के लिए एक बहुत ज्यादा भयावह सिद्ध हो सकती है क्योंकि वह हमेशा ही परफेक्ट बनने के चक्कर में खुद के आत्मविश्वास को ठेस पहुंचाता है और कभी-कभी इसका एक नकारात्मक प्रभाव भी हो जाता है जिसके चलते वह ओवरकॉन्फिडेंट भी हो जाता है।

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ओवर कॉन्फिडेंट बनने से बचाएं:-

बच्चों के दिलों दिमाग में कुछ डर ऐसे होते हैं जिनकी वजह से वे धीरे-धीरे ओवरकॉन्फिडेंट बन जाते हैं। इसका परिणाम यह निकलता है कि वह जीवन में कुछ भी हासिल नहीं कर पाते हैं बल्कि अपने द्वारा किए जाने वाले प्रत्येक काम को पूरी तरह से बिगाड़ कर रख देते। ऐसे में माता-पिता का सबसे पहला कर्तव्य यह बनता है कि उसे कभी भी किसी दूसरे सहपाठी या दोस्त से आगे बढ़ने के लिए ना कहे। बल्कि उनके द्वारा किए गए प्रत्येक कार्य को माता-पिता और अध्यापक द्वारा सराह जाना चाहिए ताकि वे अपने द्वारा किए गए प्रत्येक काम को उससे बेहतर करने का प्रयास करता रहे। बच्चे को कभी भी यह महसूस नहीं कराना चाहिए कि वह किसी से भी कमजोर है या फिर किसी भी काम को करने में सक्षम नहीं है। किसी भी बात को समझाने के लिए सदैव उसको प्यार से बातचीत करके उसके दिमाग में यह बात बढ़ानी चाहिए कि वह जो भी करता है बहुत अच्छा कर रहा है और उसे उससे अच्छा करने का प्रयास सदैव करते रहना चाहिए। उसे किसी भी चीज के लिए प्रतियोगी के रूप में तैयार करना चाहिए लेकिन उसे यह समझाना चाहिए कि उसे अपने आधार पर अच्छा करना है ना कि दूसरों से आगे निकलने के लिए प्रतियोगिता में भाग लेना है।

अकेलापन:-

अकेलापन भी एक सबसे भिन्न प्रकार असुरक्षा का कहलाया जाता है। माता पिता अपने बच्चे के जीवन को बेहतर बनाने के चक्कर में दिन रात कमाई में लगे रहते हैं जिसके चलते यदि कोई बच्चा एकल परिवार में रहता है तो माता-पिता के घर पर ना होने की वजह से वह अकेला हो जाता है। समाज में कुछ ऐसे असामाजिक तत्व होते हैं जिनकी वजह से वह बच्चा अकेला होकर असुरक्षित महसूस करने लगता है। एक बच्चा अपने दिलो-दिमाग में चलने वाली परिस्थितियों का पूरा बखान अपने माता-पिता के आगे ही कर सकता है। परंतु जब उसके माता-पिता ही उसके साथ घर पर मौजूद ना हो तो ऐसे में वह बच्चा किसी से भी खुलकर बात नहीं कर पाता है। जिसके चलते उसके दिलो-दिमाग में असुरक्षा की भावना उत्पन्न होने लगती है जो धीरे-धीरे दीर्घकालिक रूप ले लेती है, जो उसके भविष्य को पूरी तरह से खराब भी कर सकती है। घर पर अकेले होने की वजह से वह बच्चा अक्सर अपना अधिकतम समय टीवी या अन्य असामाजिक तत्वों के साथ बिताने लगता है जिसकी वजह से धीरे-धीरे कहीं ना कहीं उसके दिल के अंदर और सुरक्षा की भावना बैठ जाती है।वह बच्चा जो भी सोचता है देखता है या समझता है, वही अपने दिमाग में बैठा लेता है क्योंकि उसे एक सही मार्गदर्शन नहीं मिल पाता है जिसकी वजह से वह अपनी सोच को ही सर्वप्रथम रखता है और उसके अनुसार ही कार्य करता है।

इस समस्या को दूर करने के लिए हल:-

यदि आप बच्चे के विकास के समय उसको अकेला छोड़ देते हैं तो यह लाजमी है कि वह धीरे-धीरे आपसे दूर चला जाता है और एक और सुरक्षा की गहरी खाई में गिरने लगता है। ऐसे में माता-पिता में से किसी भी एक का यह कर्तव्य बनता है कि अपनी व्यस्त दिनचर्या को छोड़कर आधे से ज्यादा समय अपने बच्चों के साथ बिताए ताकि वे अपने दिल की बात को आप तक पहुंचाने में सुखद महसूस कर सकें। आपका थोड़ा सा समय उनके भविष्य को और सुरक्षा के गहरे गड्ढे से निकालकर उन्हें एक सुनहरा भविष्य देने में सहायक हो सकता है।

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जीवन की कोई दर्दनाक घटना:-

जीवन में बहुत सारे उतार चढ़ाव होते हैं जिसका सामना एक व्यस्क व्यक्ति तो आराम से कर लेता है परंतु उस घटना का सबसे ज्यादा प्रभाव बच्चों पर पड़ता है। अबे घटनाएं कई प्रकार की हो सकती हैं जैसे माता-पिता का तलाक, परिवार के किसी सदस्य का दिवालिया हो जाना, परिवार के किसी सदस्य के साथ दुर्व्यवहार होना, परिवार में हिंसा का माहौल देखना, अपने आसपास तनाव का माहौल महसूस करना आदि। ऐसे कई सारे कारण होते हैं जिनके चलते बच्चों पर गलत प्रभाव पड़ता है, और उनका पूरा जीवन नष्ट हो जाता है क्योंकि वे अपने अंदर एक और सुरक्षा की भावना उत्पन्न कर लेते हैं, जो उनके भविष्य में तब तक चलती है जब तक उन्हें सही मार्गदर्शन ना प्रदान किया जाए।

दुर्घटना से जूझने का सही तरीका बताएं:-

यदि आपके जीवन में कोई ऐसी दुखद दुर्घटना हुई है जिसकी वजह से आपकी संतान पर भी उसका गहरा असर पड़ा है। उसके दिलो-दिमाग पर वह एक छोटी सी बात बहुत गलत प्रभाव डालती है जिसकी वजह से वह और सुरक्षित महसूस करने लगता है यदि ऐसा आपके बच्चे के साथ होता है तो उसके लिए आपको उसे उस परिस्थिति से जूझने के लिए तैयार करना अति आवश्यक है। उसके साथ बैठकर समय बिताएं और प्यार से उसे वह सारी बातें समझाएं। इसके अलावा आप यह भी कर सकते हैं कि आप अपने बच्चे को उस माहौल से निकाल कर एक ऐसे माहौल में ले जाएं जो उसके लिए खुशनुमा भी हो और जिसमें वह जल्दी ही घुल मिल जाए और अपनी सारी पुरानी बातें भूल एक नए जीवन की शुरुआत कर सके। इस कदम से आप अपने बच्चे को जीवन पर्यंत के लिए असुरक्षा की भावना से दूर ले जा सकते हैं।

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बच्चे का बेहतर विकास सिर्फ उसके माता-पिता के हाथों में ही होता है। यदि वह एक संयुक्त परिवार में रहते हैं तो उनके विकास में महत्वपूर्ण योगदान घर के बाकी सदस्यों का भी होता है परंतु महत्वपूर्ण कर्तव्य माता पिता को ही निभाना पड़ता है। ऐसे में माता-पिता को यह ध्यान रखना अति आवश्यक है कि उनके जीवन को कोई भी असुरक्षित असामाजिक तत्व आहत ना कर सके। क्योंकि बच्चों के विकास के दिनों में एक छोटी सी गलती उन बच्चों का आने वाला पूरा भविष्य खराब कर सकती है। यदि एक बार किसी बच्चे के दिलों दिमाग में असुरक्षा की भावना बैठ जाती है तो जीवन पर्यंत उसे उसके दिलो-दिमाग से दूर करना नामुमकिन हो जाता है।

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Ankita
अंकिता दीपावली की डिजाईन, डेवलपमेंट और आर्टिकल के सर्च इंजन की विशेषग्य है| ये इस साईट की एडमिन है| इनको वेबसाइट ऑप्टिमाइज़ और कभी कभी आर्टिकल लिखना पसंद है|

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