किम्बरली प्रक्रिया, ब्लड डायमंड, रफ़ डायमंड क्या है ? (What is Kimberley Process, Blood Diamond, Conflict and Rough Diamond in Hindi)
डायमंड यानि हीरा एक ऐसा रत्न है, जोकि काफी कीमती होता है. आज इसकी डिमांड भी बहुत अधिक है. किन्तु क्या आपको पता है कुछ डायमंड ऐसे होते हैं जिनकी सप्लाई कुछ लोग अंतर्राष्ट्रीय बाजार में गलत कामों के लिए करते हैं. ऐसे ही डायमंड की सप्लाई को रोकने के लिए कुछ साल पहले अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक योजना की शुरुआत की गई. इसमें दुनिया भर के कई सारे देश शामिल है. हालही में दिसंबर 2018 में भारत को इस योजना के सर्टिफिकेशन के लिए अध्यक्षता मिली है. इसके बारे में आप पूरी जानकारी यहाँ देख सकते हैं.
क्या है किंबरले प्रक्रिया ? (What is Kimberley Process ?)
किंबरले प्रक्रिया एक अंतर्राष्ट्रीय, मल्टी स्टेकहोल्डर सर्टिफिकेशन योजना है, जोकि डायमंड उद्योग में पारदर्शिता और निरीक्षण को बढ़ाने के लिए बनाई गई है, ताकि कनफ्लिक्ट / रफ डायमंड का व्यापार डायमंड की ग्लोबल सप्लाई चैन से हटाया जा सके. इस प्रक्रिया का मुख्य काम है कनफ्लिक्ट डायमंड का आयात – निर्यात ख़त्म करना, ताकि इसे गैर – कानूनी रूप से बेचा न जाये. यह साल 2003 में एक संयुक्त राष्ट्र रीजोलूशन के द्वारा स्थापित की गई योजना है. यह योजना घरेलू रूप से लागू करने के माध्यम से भाग लेने वाले देशों के बीच रफ़ डायमंड के व्यापार को नियंत्रित करती है.
रफ़ डायमंड क्या है ? (What is Rough Diamond ?)
कनफ्लिक्ट डायमंड यानि रफ़ डायमंड वे पत्थर होते हैं, जो विद्रोही बलों या लोकल माफिया द्वारा नियंत्रित क्षेत्रों में खुदाई करके निकला जाता हैं. यह वह क्षेत्र होते है जोकि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गैरकानूनी कहे जाते हैं. ये आमतौर पर मोटे यानि रफ रूप में होते हैं, इसका मतलब है कि उन्हें तराशा नहीं गया है. कमर्शियल डायमंड व्यापार का प्रतिनिधित्व करने वाले वर्ल्ड डायमंड काउंसिल के अनुसार, युद्ध वाले क्षेत्रों में विशेष रूप से मध्य एवं पश्चिमी अफ्रीका में ऐसे कनफ्लिक्ट या रफ डायमंड का गैरकानूनी रूप से व्यापार किया जा रहा है. इसे बेचकर जो पैसा मिलता है उसका उपयोग वे लोग हथियार खरीदने या मिलिट्री एक्शन या उस जगह के तानाशाह को फण्ड प्रदान करने में करते हैं.
ब्लड डायमंड क्या है ? (What is Blood Diamond and Conflict Diamond ?)
आमतौर पर कनफ्लिक्ट या रफ डायमंड को ही ब्लड डायमंड कहा जाता है. अक्सर ऐसे डायमंड पुरुषों, महिलाओं और बच्चों के श्रम के माध्यम से उत्पादित होते है, जिसके लिए उन्हें मजबूर किया जाता है. वे उन लोगों को रिश्वत, धमकियाँ, यातना, और हत्या जैसे अत्याचार कर उनसे जबरदस्ती डायमंड की माइनिंग कराते हैं. और इसे अपने हिसाब से बेचकर भारी मात्रा में धनराशि कमाते हैं. इस तरह से यह डायमंड लोगों के खून पसीने से उत्पादित होते है. यही कारण है कि इस तरह के डायमंड के व्यापार के चलते इन डायमंड के लिए ब्लड डायमंड शब्द का उपयोग किया गया है.
इसके अलावा उत्पादकों के माइनिंग ऑपरेशन पर हमला करके शिपमेंट या जब्त के दौरान भी चुराए जाते है. ये हमले एक बड़े सैन्य ऑपरेशन के पैमाने पर हो सकते है. फिर इन पत्थरों की अंतर्राष्ट्रीय डायमंड व्यापार में तस्करी कर दी जाती है, और वैध रत्न के रूप में उसे बेचा जाता है. ऐसे डायमंड को अधिकतर हथियारों के व्यापारियों, तस्करों और बेईमान डायमंड के व्यापारी जैसे विद्रोहियों के लिए धन का मुख्य स्त्रोत कहा जाता है.
इतिहास (History)
संयुक्त राष्ट्र ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद संकल्प 1173 के माध्यम से 1998 में यूएनआईटीए के खिलाफ प्रतिबन्ध लगाये. और रोबर्ट फाउलर के नेतृत्व में जांचकर्ताओं ने मार्च 2000 में संयुक्त राष्ट्र को फाउलर रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें बताया गया कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार पर डायमंड की बिक्री के माध्यम से युद्ध के प्रयासों को वित्त पोषित किया जा रहा है. संयुक्त राष्ट्र ने ऐसे डायमंड की बिक्री में प्रतिबंध लगाने की कामना की, लेकिन उनके पास इतना पॉवर नहीं था, कि वे इसे अकेले रोक सके. इसलिए फाउलर रिपोर्ट ने देश, कंपनियों, सरकार और व्यक्तियों को शामिल करने के लिए तैयार किया. इसने मई 2000 में उत्तरी केप के किंबरले में दक्षिणी अफ्रीकी डायमंड उत्पादक राज्यों की एक बैठक की शुरुआत की, जोकि कनफ्लिक्ट डायमंड के व्यापार को रोकने के तरीकों पर चर्चा करने के लिए आयोजित की गई थी. जिसमे यह सुनिश्चित किया गया कि डायमंड की खरीद न केवल विद्रोहियों और उनके सहयोगियों को वित्त पोषित कर रही हैं, बल्कि वैध सरकारों को कमजोर कर रही है, अतः इसे रोकना बहुत आवश्यक है. और इसके चलते यही से किंबरले प्रक्रिया को शुरू करने की योजना की उत्पत्ति हुई.
दिसंबर 2000 में, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने रिजोल्यूशन ए / आरईएस / 55 / 56 को अपनाया, जोकि रफ डायमंड के लिए अंतर्राष्ट्रीय सर्टिफिकेशन योजना के निर्माण का समर्थन करता था. फिर नवंबर 2002 तक सरकारों, अंतर्राष्ट्रीय डायमंड उद्योग और नागरिक समाज संगठनों के बीच बातचीत के परिणामस्वरुप किम्बरले प्रोसेस सर्टिफिकेशन स्कीम का निर्माण हुआ. इसके बाद जनवरी 2003 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से समर्थन प्राप्त होने के बाद जब इसमें भाग लेने वाले देशों ने अपने नियमों को लागू करना शुरू किया, तो यह योजना पूरी तरह से लागू हो गई. तब से प्रत्येक वर्ष, आम सभा द्वारा केपी के लिए अपना समर्थन रिन्यू किया जाता है.
किम्बरले प्रक्रिया कैसे काम करती है ? (Kimberley Process Works)
किंबरले प्रोसेस सर्टिफिकेशन स्कीम में इससे जुड़े सदस्यों पर व्यापक आवश्यकताएं लागू की जाती हैं, ताकि वे रफ़ डायमंड के शिपमेंट को कनफ्लिक्ट – मुक्त के रूप में प्रमाणित कर सके. और कनफ्लिक्ट डायमंड को वैध व्यापार में प्रवेश करने से रोक सकें. इस प्रोसेस की शर्तों के मुताबिक, इसमें शामिल होने वाले देशों को ‘न्यूनतम आवश्यकताओं’ को पूरा करना होता है, जैसे राष्ट्रीय कानून और संस्थाओं को स्थापित करना, आयात – निर्यात और आंतरिक नियंत्रण करना, साथ ही स्टैटिस्टिकल डेटा के आदान – प्रदान और पारदर्शिता के लिए वचनबद्ध होना आदि.
इसके अलावा वे राष्ट्र जो किंबरले प्रक्रिया में भाग लेने के लिए सहमत हैं, यानि इस प्रक्रिया के सदस्य हैं उन्हें केवल इस प्रक्रिया के अन्य सदस्यों से साथ व्यापार करने की अनुमति दी जाती है, किन्तु यह सबसे जरूरी है कि सभी सदस्य योजना की न्यूनतम आवश्यकताओं को पूरा करें. इन सभी चीजों को प्रमाणित करने के लिए किम्बरले प्रोसेस सर्टिफिकेट भी बनाया गया है, जोकि सभी सदस्यों के पास होना अनिवार्य है. जब भी डायमंड की माइनिंग कर उसे तराशने के लिए डायमंड का निर्यात किया जायेगा, तो उनके लिए यह सर्टिफिकेट दिखाना जरूरी होगा. जोकि यह दर्शायेगा कि वह डायमंड पूर्ण रूप से कनफ्लिक्ट – मुक्त है और इसे वैध चैनलों के माध्यम से उत्पादित, बेचा एवं निर्यात किया जा रहा है.
इस तरह से यह प्रक्रिया काम करती है और इसमें जुड़ने वाले सदस्य ही इसमें को – ओर्डिनेट करते हैं. अन्य कोई भी इसमें शामिल नहीं हो सकता है.
इसमें शामिल होने वाले देश (Kimberley Process Countries Involved)
किंबरले प्रोसेस सर्टिफिकेशन स्कीम उन सभी देशों के लिए है, जो इसकी अवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम हैं. 24 यूरोपीय यूनियन के साथ किम्बरले प्रक्रिया में 54 ऐसे सदस्य है, जो 81 देशों का प्रतिनिधित्व करते है, और इसके सदस्य एक प्रतिभागी के रूप में गिने जाते है. इस प्रक्रिया के सदस्यों का रफ़ डायमंड के ग्लोबल उत्पादन का लगभग 99.8 % हिस्सा है. इसके अलावा, अंतर्राष्ट्रीय डायमंड इंडस्ट्री का प्रतिनिधित्व करने वाली विश्व डायमंड काउंसिल और अफ्रीका – कनाडा पार्टनरशिप जैसे नागरिक समाज संगठन इस प्रक्रिया में भाग लेते हैं, और शुरुआत से ही ये एक प्रमुख भूमिका निभा चुके हैं. इस प्रक्रिया में अमेरिका के साथ – साथ चीन और भारत को सन 2003 में ही सदस्य बनाया गया था, लेकिन इस प्रक्रिया में पाकिस्तान का नाम शामिल नहीं है.
किंबरले प्रोसेस की अध्यक्षता (Kimberley Process Chair)
इस प्रक्रिया की अध्यक्षता इसमें भाग लेने वाले देशों द्वारा रोटेटिंग आधार पर की जाती है. अब तक, दक्षिण अफ्रीका, कनाडा, रूस, बोत्सवाना, यूरोपीय यूनियन, भारत, नामीबिया, इजराइल, कांगो का लोकतांत्रिक गणराज्य, संयुक्त राज्य अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, चीन गणराज्य आदि ने इस प्रक्रिया की अध्यक्षता की है. अगले साल यानि सन 2019 में भारत को इसकी दोबारा अध्यक्षता करने का मौका मिला है. अब तक इस प्रक्रिया की 16 बार अध्यक्षता की जा चुकी है, भारत अब 17 वीं किंबरले प्रक्रिया में अध्यक्षता करेगा. इसमें भाग लेने वाले देश, उद्योग और नागरिक समाज पारस्परिक और पूर्ण बैठक में साल में 2 बार इकट्ठा होते हैं, और साथ ही साथ इसमें काम करने वाले समूह और समितियों से नियमित आधार पर मिलते हैं. इसके क्रियान्वयन की निगरानी ‘रिव्यू विजिट्स’ और वार्षिक रिपोर्ट के साथ – साथ स्टैटिस्टिकल डेटा के नियमित आदान – प्रदान और विश्लेषण के माध्यम से की जाती है.
भारत में किम्बरले प्रक्रिया की सभी जिम्मेदारी जैसे कि यह कैसे काम करती है, यहाँ सर्टिफिकेट को कैसे वेरीफाई किया जायेगा, रफ़ डायमंड के आयात की क्या प्रक्रिया है, अंतर्राष्ट्रीय बाजार में डायमंड बेचते समय सर्टिफिकेट कहाँ दिखाया जायेगा, आदि कॉमर्स विभाग की होती है, जोकि यूनियन कॉमर्स एंड इंडस्ट्री मिनिस्ट्री के तहत आता है. भारत के लिए इस प्रक्रिया की अध्यक्षता मिलना गर्व की बात है.
किम्बरले प्रोसेस की मेम्बरशिप (Kimberley Process Membership)
यूएई केपी कार्यालय के साथ रजिस्टर करने के लिए रफ़ डायमंड व्यापार समुदाय के प्रत्येक सदस्य को अनिवार्य आवश्यक दस्तावेज की कॉपी सख्त रूप से जमा करना होता है. सभी व्यापारियों को अपनी वैध व्यापार लाइसेंस की कॉपी, उनके आयात – निर्यात व्यापार गतिविधि की रिपोर्ट और प्रत्येक कैलेंडर वर्ष के पहले से आखिरी दिन से सम्बंधित स्थानीय व्यापार गतिविधि रिपोर्ट जमा करनी होती है. वे अपने स्टाफ प्रतिनिधि की पुष्टि करने वाले अधिकार पत्र के लिए अनुरोध कर सकते हैं, ताकि रफ डायमंड के शिपमेंट को स्पष्ट किया जा सके. इसके साथ ही प्रतिनिधि की पासपोर्ट की कॉपी, क्लीयरिंग एजेंट की ओर से एक अधिकार पत्र और यहाँ तक कि यूएई केपी कार्यालय की पॉलिसी और प्रोसीजर की स्वीकृति के लिए भी अनुरोध कर सकते हैं.
इसके अलावा उनके लिए स्टॉक जमा करना भी अनिवार्य है, भले ही वह शून्य हो. स्टॉक जमा करने पर या किम्बरले प्रोसेस सर्टिफिकेशन स्कीम के साथ अलग – अलग एक्शन के लिए, यूएई केपी कर्यालय केपी प्रमाण पत्र को जारी करना एवं उसका समर्थन करना जारी रखेगा. और यह ऐसा तब तक करेगा, जब तक व्यक्तिगत या कंपनी द्वारा सबमिशन किया जाता है. इस तरह से इसकी मेम्बरशिप की प्रक्रिया काम करती है.
किंबरले प्रक्रिया का प्रभाव (Kimberley Process Effectiveness)
ऐसा माना जाता है कि किम्बरले प्रक्रिया ने अंतर्राष्ट्रीय रत्न के बाजारों तक पहुँचने वाले कनफ्लिक्ट डायमंड की संख्या में काफी कमी लाई है. आज 81 देश की सरकारें और कई गैर – सरकारी संगठन इस किंबरले प्रक्रिया में शामिल हुए हैं और इसका पालन कर रहे हैं. दिसंबर, 2006 तक किंबरले प्रक्रिया प्रतिबधों के तहत रहने वाले केवल 2 राष्ट्र लाइबेरिया और आइवरी कोस्ट थे. और अब विश्व डायमंड कांउसिल का अनुमान है कि 99 % सभी डायमंड कनफ्लिक्ट मुक्त है. हालाँकि ग्लोबल विटनेस के एमी बैरी के अनुसार, किंबरले प्रक्रिया शुरुआत में इसके सदस्य देशों के बीच राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण व्यापार को रोकने में सक्षम नहीं हुई थी.
रोचक जानकारी (Interesting Facts)
- सिएरा लियोन ने सिविल वार की ऊँचाइयों पर, यह अनुमान लगाया है कि कनफ्लिक्ट डायमंड दुनिया के डायमंड के उत्पादन के लगभग 4 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करते है.
- यह प्रक्रिया में भारत को जो अध्यक्षता मिली है उससे भारत के अफ्रीकन देशों के साथ अच्छे संबंध बनाने के लिए कुछ हद तक खास कर के मंत्रालय क्षेत्र में मदद मिल सकती है.
- किंबरले प्रक्रिया का दावा है कि 1990 के दशक से अब तक विश्व व्यापार में कनफ्लिक्ट डायमंड की संख्या में 15% तक की कमी आई है. यह साल 2006 में प्रकाशित 3 साल के समीक्षा दस्तावेज द्वारा बताया गया था, हालाँकि यह स्पष्ट नहीं है कि यह समीक्षा स्वतंत्र रूप से की गई थी या नहीं.
- भारत में भारतीय डायमंड माइन आंध्रप्रदेश राज्य में स्थित गोलकोंडा क्षेत्र में है, जिसका नाम कोलूर माइन है. यह दक्षिण की पवित्र कृष्णा नदी के पास स्थित है.
- भारत को दूसरी बार सन 2019 में अध्यक्षता मिलने जा रही है, इसके पहले भारत ने सन 2008 में इस प्रक्रिया की अध्यक्षता की थी. दरअसल साल 2016 में दुबई द्वारा इस प्रक्रिया की अध्यक्षता की गई थी, जिसमें यह घोषणा की गई कि सन 2018 में भारत इस प्रक्रिया का उपाध्यक्ष होगा, और उसके अगले साल इसे अध्यक्षता मिलेगी.
- इस प्रक्रिया में शामिल होने के लिए 7 और देशों ने अपनी इच्छा जताई है, जिसमें बुर्किना फासो, चिली, केन्या, माली, मॉरिटानिया, मोजाम्बिक, ज़ाम्बिया आदि नाम सामने आये हैं.
- पिछले कुछ वर्षों में यह योजना कनफ्लिक्ट डायमंड और अन्य खनिजों के गैरकानूनी व्यापार को रोकने के लिए एक जाना माना स्त्रोत रही है.
इस तरह दुनिया में ब्लड डायमंड के व्यापार जिससे उन लोगों को फायदा पहुँचता था, जोकि इसका गलत इस्तेमाल करते थे, उसे रोकने में यह प्रक्रिया काफी अच्छा प्रभाव डाल रही है. इससे कनफ्लिक्ट मुक्त डायमंड का व्यापार अच्छी तरीके से एवं सुरक्षित हो रहा है, और उम्मीद है कि आगे भी होता रहेगा.
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