कित्तूर रानी चेन्नम्मा का जीवन परिचय Kittur Rani Chennamma History In Hindi
आपको एक नायिका की कहानी सुनाई जाए, जिसने अंग्रेजों के साथ लोहा लिया. जिसकी लगाई क्रांति की आग ने भारत में आजादी की लड़ाई की अलख जगाई. जिसने अपने राज्य की रक्षा के लिए बेटा गोद लिया क्योंकि शादी के थोड़े समय के बाद ही पति की मृत्यु हो गई थी. जो अंग्रेजों की गोद निषेध नीति के विरोध में सेना लेकर मैदान ए जंग में उतर आई. अगर आप कहीं इन सब तथ्यों को पढ़ने के बाद झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के बारे में सोच रहे हैं तो आप गलत हैं. हम दरसअल कित्तूर की रानी चेन्नम्मा के बारे में बात कर रहे हैं जिनका रानी लक्ष्मीबाई से लगभग 56 साल पहले महान भारतीय परिदृश्य पर अवतरण हुआ था. रानी लक्ष्मी बाई जीवन परिचय को यहाँ पढ़ें.

कित्तूर रानी चेन्नम्मा का जीवन परिचय ( Kittur Rani Chennamma History In Hindi )
बचपन और युद्धकौशल (Rani Chennamma life history) –
रानी चेन्नम्मा का जन्म कर्नाटक के बेलगाम में 23 अक्टूबर, 1778 को हुआ. बचपन से ही चेन्नम्मा को तलवारबाजी, घुड़सवारी और युद्ध कलाओं का शौक था. राजपरिवार में जन्म होने के कारण चेन्नम्मा को अपने इन शौकों को पूरा करने का मौका भी मिला. उन्होंने इतनी शिद्दत से इन कलाओं को सिखा की, युवा होते—होते अपने युद्धकौशल की वजह से वह प्रसिद्ध हो गई.
रानी चेन्नम्मा शादी और वैधव्य –
रानी चेन्नम्मा के युद्ध कौशल और योग्यता की वजह से कर्नाटक के कित्तुर राज्य के देसाई परिवार के राजा मल्लासर्ज से विवाह हुआ. कुछ समय सुख से बीता लेकिन इसके बाद चेन्नम्मा पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. राजा मल्लासर्ज मृत्यु को प्राप्त हो गए. कुछ सयम बाद रानी चेन्नम्मा के पुत्र का भी देहांत हो गया. ऐसे में राज्य के सामने राजा के पद का संकट खड़ा हो गया. कित्तुर की राजगद्दी रिक्त हो गई थी. जिसे भरने के लिए रानी चेन्नम्मा ने एक पुत्र गोद लिया.
रानी चेन्नम्मा गोद निषेध नीति और संघर्ष –
बेटा गोद लेकर राजसिंहासन के उत्तराधिकारी के तौर पर घोषणा करने पर एक समस्या पैदा हुई, जिसने रान चेन्नम्मा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की नायिका बनने का गौरव दिया. उन दिनों कर्नाटक सहित पूरे भारत पर अंग्रेजों का राज था. ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के गर्वनर लॉर्ड डलहौजी ने गोद निषेध नीति की घोषणा कर दी थी. इस नीति के अनुसार भारत के जिन राजवंशों में गद्दी पर बैठने के लिए वारिस नहीं होता था, उन्हें ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी अपने नियंत्रण में ले लेती थी. दरअसल अंग्रेजों ने भारतीय राजाओं को अपदस्थ कर राज्य हड़पने के लिए इस नीति का निर्माण किया था.
इस नीति की वजह से रानी चेन्नम्मा को कित्तूर की गद्दी पर गोद लिए पुत्र का बैठाना ब्रिटिशर्स को नागवार गुजरा. उन्होंने इसे नियमों के विरूद्ध बताया और रानी चेन्नम्मा को इसके लिए मना किया. पहले बातचीत द्वारा इस मुद्दे को हल करने की कोशिश की गई लेकिन बात नहीं बनी. रानी चेन्नम्मा ने कित्तूर में हो रही ब्रिटिश अधिकारियों से बातचीत असफल होते देख बॉम्बे प्रेसीडेंसी के गवर्नर से बात करने की कोशिश की. इसका कोई परिणाम नहीं निकाला क्योंकि अंग्रेज कित्तूर पर किसी भी तरह कब्जा जमाना चाहते थे. ब्रिटिशराज कित्तूर के बहुमूल्य खजाने को लूटने का पूरा मन बना चुके थे. कित्तूर के खजाने में बहुमुल्य आभूषणों जेवरात और सोना था, जिसे अंग्रेज हथियाना चाहते थे. एक अनुमानक के अनुसार उस दौर में कित्तूर के खजाने की कीमत 15 लाख रूपए थी. अंग्रेजों ने गोद लिए बालक को गद्दी का वारिस मानने से साफ इंकार कर दिया. इस इंकार ने कित्तूर और अंग्रेजों के बीच संघर्ष को अवश्यमभावी बना दिया.
रानी चेन्नम्मा का अंग्रेजों के साथ कड़ा संघर्ष –
जब यह तय हो गया कि अंग्रेज नहीं मानने वाले तो रानी चेन्नम्मा ने संघर्ष करने का फैसला लिया. वे पहली रानी थी जिन्होंने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी से लड़ने के लिए सेना के गठन की तैयारी शुरू की. अंग्रेजों को इसका पता चला और 1924 में दोनों की सेनाएं आमने—सामने आ डटी. एक ऐसा संघर्ष जिसका परिणाम पहले से ही सबको पता था कित्तूर जैसे छोटे राज्य ने ब्रिटिश साम्राज्य को चुनौती दी थी, लेकिन यह मसला नतीजे का नहीं आजादी से जीने और मरने का था. रानी चेन्नम्मा ने फैसला किया या तो वे आजाद जिंएगी नहीं तो लड़कर मरेंगी. इस लड़ाई में अंग्रेजों ने भारतीय महिला के युद्ध कौशल को देखा. पहले पहल तो उनके होश उड़ गए लेकिन बाद में पीछे से आने वाली मदद ने उनको संभाल लिया. आखिर में यह लड़ाई अंग्रेजों ने अपनी बड़ी सेना और आधुनिक हथियारों से जीत ली.
रानी चेन्नम्मा को अंग्रेजों से भारी नुकसान –
अंग्रेजों ने लड़ाई तो जीत ली लेकिन रानी चेन्नम्मा ने उनका इतना नुकसान किया कि वे लंबे समय तक कित्तूर के युद्ध से उबर नहीं पाए. इस लड़ाई में अंग्रेजों ने 20 हजार सिपाहियों और 400 बंदूकों की सेना का सहारा लिया. युद्ध के पहले दौर में ब्रिटिश सेना का भारी नुकसान हुआ और ब्रिटिश एजेंट और उस खीते के कलेक्टर जॉन थावकेराय को मौत के घाट उतार दिया गया. चेन्नम्मा के मुख्य सेनापति बलप्पा ने ब्रिटिश सेना को एक बार तो पीछे हटने पर मजबूर कर दिया. ब्रिटिश सेना के दो प्रमुख अधिकारियों सर वॉल्टर इलियट और मी.स्टीवेंसन को गिरफ्तार कर लिया गया. इस दौर की लड़ाई के बाद ब्रिटिश अधिकारियों ने समझौते की मांग की और समझौते के तहत इन दोनों अंग्रेज अधिकारियों को रिहा कर दिया गया. युद्ध को टाल दिया गया. इसी बीच दूसरे अंग्रेज अधिकारी चैपलिन ने दूसरे मोर्चों पर लड़ाई जारी रखी. दूसरे दौर में भी कित्तूर की सेना ने बहादूरी दिखाई और सोलापूर के सबकलेक्टर मुनरो लड़ते हुए मारे गए. लड़ाई लंबी खिंच जाने की वजह से और सीमीत संसाधनों के धीरे—धीरे खत्म हो जाने की वजह से आखिर में रानी चेन्नम्मा को हार का मूंह देखना पड़ा और अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार करके बेल्होंगल के किले में कैद कर दिया. जहां 21 फरवरी, 1829 में उन्होंने आखिरी सांस ली. इस महान युद्ध में रानी चेन्नम्मा को स्थानीय सहायता भरपूर मिली. अपनी बहादुरी के लिए कर्नाटक के लोगों ने उन्हें नायिका की तरह पूजा जाता है. उनकी याद में 22 से 24 अक्टूबर को हर साल कित्तूर उत्सव मनाया जाता है. उनके सम्मान में नयी दिल्ली के पार्लियामेंट हाउस में उनकी मूर्ति भी स्थापित की गई है. इसके अलावा कर्नाटक में भी रानी चेनम्मा को सम्मान देने के लिए उनकी मूर्तियां बेंगलुरू और कित्तूर में बनवाया गया है. आज भी कित्तूर का राजमहल और दूसरी ऐतिहासिक इमारतों में इस महान महिला की वीरता के साक्ष्यों को देखा और महसूस किया जा सकता है. उन्होंने जो आजादी की अलख जगाई, उससे ढेरों अन्य लोगों ने प्रेरणा ली. रानी चेन्नम्मा को योगदान को कभी भूलाया नहीं जा सकता. वे न सिर्फ महिला शक्ति की प्रतीक हैं बल्कि वे प्रेरणा स्रोत भी हैं कि अपनी शर्तों पर जीवन जीने के लिए कोई भी मूल्य कम ही होता है.
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