Top 5 This Week

spot_img

Related Posts

महाराणा प्रताप व चेतक का इतिहास व 2024 जयंती | Maharana Pratap History and 2024 Jayanti In Hindi

महाराणा प्रताप का जीवन परिचय, इतिहास, 2024 जयंती, पूरा नाम, जन्म कब हुआ, युद्ध, मृत्यु कैसे हुई, पत्नी का नाम, किसने मारा (Maharana Pratap Biography, History, 2024 Jayanti in Hindi)

महाराणा प्रताप के नाम से भारतीय इतिहास गुंजायमान हैं. यह एक ऐसे योद्धा थे, जिन्होंने मुगुलों को छटी का दूध याद दिला दिया था. इनकी वीरता की कथा से भारत की भूमि गोरवान्वित हैं. महाराणा प्रताप मेवाड़ की प्रजा के राणा थे. वर्तमान में यह स्थान राजिस्थान में आता हैं. प्रताप राजपूतों में सिसोदिया वंश के वंशज थे. यह एक बहादुर राजपूत थे, जिन्होंने हर परिस्थिती में अपनी आखरी सांस तक अपनी प्रजा की रक्षा की. इन्होने सदैव अपने एवम अपने परिवार से उपर प्रजा को मान दिया. एक ऐसे राजपूत थे, जिसकी वीरता को अकबर भी सलाम करता था. महाराणा प्रताप युद्ध कौशल में तो निपूर्ण थे ही, लेकिन वे एक भावुक एवम धर्म परायण भी थे. उनकी सबसे पहली गुरु उनकी माता जयवंता बाई जी थी.

Table of Contents

महाराणा प्रताप का जीवन परिचय (Maharana Pratap Biography)

नाममहाराणा प्रताप
अन्य नामराणा प्रताप, हिंदू हृदय सम्राट
जन्म 9 मई, 1540
जन्म स्थानकुंभलगढ़ किला, राजस्थान
धर्महिंदू
जातिसिसोदिया, राजपूत
मृत्यु19 जनवरी, 1597
मृत्यु स्थानचावंड, उदयपुर जिला, राजस्थान
Maharana Pratap History In Hindi

महाराणा प्रताप का जन्म (Maharana Pratap Birth) 

महाराणा प्रताप का जन्म दिन आज के कैलेंडर के अनुसार 9 मई 1540 में उत्तर दक्षिण भारत के मेवाड़ में हुआ था. हिंदी पंचाग के अनुसार यह दिन ज्येष्ठ माह शुक्ल पक्ष की तीज को आता हैं. आज भी इस दिन राजस्थान में प्रताप का जन्मदिन मनाया जाता हैं. बताना चाहेंगे कि, राणा प्रताप सनातन हिंदू धर्म से तालुकात रखते थे और यह जाति से सिसोदिया राजपूत थे।

महाराणा प्रताप का पारिवार (Maharana Pratap Family)

पिताराणा उदय सिंह
माताजयवंता बाई जी
पत्नीमहारानी अजबदे
पुत्रअमर सिंह, भगवान दास
घोड़ाचेतक

प्रताप उदयपुर के राणा उदय सिंह एवम महारानी जयवंता बाई के पुत्र थे. महाराणा प्रताप की पहली रानी का नाम अजबदे पुनवार था. अमर सिंह और भगवान दास इनके दो पुत्र थे. अमर सिंह ने बाद में राजगद्दी संभाली थी.

महाराणा प्रताप की पत्नी का नाम (Maharana Pratap Wife and Son)

महारानी जयवंता के अलावा राणा उदय सिंह की और भी पत्नियाँ थी, जिनमे रानी धीर बाई उदय सिंह की प्रिय पत्नी थी. रानी धीर बाई की मंशा थी, कि उनका पुत्र जगमाल राणा उदय सिंह का उत्तराधिकारी बने. इसके अलावा राणा उदय सिंह के दो पुत्र शक्ति सिंह और सागर सिंह भी थे.

महाराणा प्रताप की पत्नी अजब्देह की कहानी  (Pratap and Ajabade Love Story)

अजब्दे सामंत नामदे राव राम रख पनवार की बेटी थी. स्वभाव से बहुत ही शांत एवं सुशील थी. यह बिजोली की राजकुमारी थी. बिजोली चित्तोड़ के आधीन था. प्रताप की माँ जयवंता एवम अजबदे की माँ अपने बच्चो के विवाह के पक्ष में थी. उस वक्त बाल विवाह की प्रथा थी. अजबदे ने प्रताप को कई परिस्थितियों में उचित निर्णय लेने में साथ दिया था. वो हर तरह से महारानी जयवंता बाई जी की छवि थी. उन्होंने युद्ध के दौरान भी प्रजा के बीच रहकर उनके मनोबल को बनाये रखा था.

अजबदे प्रताप की पहली पत्नी थी. इसके आलावा इनकी 11 पत्नियाँ और भी थी. प्रताप के कुल 17 पुत्र एवम 5 पुत्रियाँ थी.जिनमे अमर सिंह सबसे बड़े थे. वे अजबदे के पुत्र थे. महाराणा प्रताप के साथ अमर सिंह ने शासन संभाला था.

महाराणा प्रताप के जीवन का इतिहास (Maharana Pratap History)

राजगद्दी को लेकर भाइयों में मतभेद एवं घृणा

राणा उदय सिंह के बाद उनके दोनों पुत्रों की राजगद्दी सँभालने की मंशा थी, लेकिन प्रजा और राणा जी दोनों ही प्रताप को ही उत्तराधिकारी के तौर पर मानते थे. इसी कारण यह तीनो भाई प्रताप से घृणा करते थे. इसी घृणा का लाभ उठाकर मुग़लों ने चित्तोड़ पर अपना विजय पताका फैलाया था. इसके आलावा भी कई राजपूत राजाओं ने मुग़ल शाशक अकबर के आगे घुटने टेक दिए थे और आधीनता स्वीकार की जिसके कारण राजपुताना की शक्ति भी मुगलों को मिल गई जिसका प्रताप ने अंतिम सांस तक डटकर मुकाबला किया, लेकिन राणा उदय सिंह और प्रताप ने मुगलों की आधीनता स्वीकार नहीं की. आपसी फुट एवम परवारिक मतभेद के कारण राणा उदय सिंह एवम प्रताप चित्तोड़ का किला हार गए थे, लेकिन अपनी प्रजा की भलाई के लिए वे दोनों किले से बाहर निकल जाते हैं. और प्रजा को बाहर से संरक्षण प्रदान करते हैं. पूरा परिवार एवम प्रजा अरावली की तरफ उदयपुर चला जाता हैं. अपनी मेहनत और लगन से प्रताप उदयपुर को वापस समृद्ध बनाते हैं और प्रजा को संरक्षण प्रदान करते हैं.

प्रताप के खिलाफ थे राजपुताना

अकबर से डर के कारण अथवा राजा बनने की लालसा के कारण कई राजपूतों ने स्वयं ही अकबर से हाथ मिला लिया था. और इसी तरह अकबर राणा उदय सिंह को भी अपने आधीन करना चाहते थे. अकबर ने राजा मान सिंह को अपने ध्वज तले सेना का सेनापति बनाया, इसके आलावा तोडरमल, राजा भगवान दास सभी को अपने साथ मिलाकर 1576 में प्रताप और राणा उदय सिंह के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया.

हल्दीघाटी का युद्द (Haldi Ghati War)

यह इतिहास का सबसे बड़ा युद्ध था, इसमें मुगलों और राजपूतों के बीच घमासान हुआ था, जिसमे कई राजपूतों ने प्रताप का साथ छोड़ दिया था और अकबर की आधीनता स्वीकार की थी.

1576 में राजा मान सिंह ने अकबर की तरफ से 5000 सैनिकों का नेतृत्व किया और हल्दीघाटी पर पहले से 3000 सैनिको को तैनात कर युद्ध का बिगुल बजाया. दूसरी तरफ अफ़गानी राजाओं ने प्रताप का साथ निभाया, इनमे हाकिम खान सुर ने प्रताप का आखरी सांस तक साथ दिया. हल्दीघाटी का यह युद्ध कई दिनों तक चला. मेवाड़ की प्रजा को किले के अंदर पनाह दी गई. प्रजा एवम राजकीय लोग एक साथ मिलकर रहने लगे.लंबे युद्ध के कारण अन्न जल तक की कमी होने लगी. महिलाओं ने बच्चो और सैनिको के लिए स्वयम का भोजन कम कर दिया. सभी ने एकता के साथ प्रताप का इस युद्ध में साथ दिया.उनके हौसलों को देख अकबर भी इस राजपूत के हौसलों की प्रसंशा करने से खुद को रोक नहीं पाया.लेकिन अन्न के आभाव में प्रताप यह युद्ध हार गये. युद्ध के आखरी दिन जोहर प्रथा को अपना कर सभी राजपूत महिलाओं ने अपने आपको अग्नि को समर्पित कर दिया. और अन्य ने सेना के साथ लड़कर वीरगति को प्राप्त किया. इस सबसे वरिष्ठ अधिकारीयों ने राणा उदय सिंह, महारानी धीर बाई जी और जगमाल के साथ प्रताप के पुत्र को पहले ही चित्तोड़ से दूर भेज दिया था. युद्ध के एक दिन पूर्व उन्होंने प्रताप और अजब्दे को नीन्द की दवा देकर किले से गुप्त रूप से बाहर कर दिया था. इसके पीछे उनका सोचना था कि राजपुताना को वापस खड़ा करने के लिए भावी संरक्षण के लिए प्रताप का जिन्दा रहना जरुरी हैं.

मुगुलो ने जब किले पर हक़ जमाया तो उन्हें प्रताप कहीं नहीं मिला और अकबर का प्रताप को पकड़ने का सपना पूरा नही हो पाया.

युद्ध के बाद कई दिनों तक जंगल में जीवन जीने के बाद मेहनत के साथ प्रताप ने नया नगर बसाया जिसे चावंड नाम दिया गया. अकबर ने बहुत प्रयास किया लेकिन वो प्रताप को अपने अधीन ना कर सका.

महाराणा प्रताप और चेतक का अनूठा संबंध (Maharana Pratap horse chetak story) :

चेतक, महाराणा प्रताप का सबसे प्रिय घोड़ा था. चेतक में संवेदनशीलता, वफ़ादारी और बहादुरी कूट कूट कर भारी हुई थी. यह नील रंग का अफ़गानी अश्व था.

एक बार, राणा उदय सिंह ने बचपन में प्रताप को राजमहल में बुलाकर दो घोड़ो में से एक का चयन करने कहा. एक घोडा सफ़ेद था और दूसरा नीला. जैसे ही प्रताप ने कुछ कहा उसके पहले ही उनके भाई शक्ति सिंह ने उदय सिंह से कहा उसे भी घोड़ा चाहिये शक्ति सिंह शुरू से अपने भाई से घृणा करते थे.

प्रताप को नील अफ़गानी घोड़ा पसंद था लेकिन वो सफ़ेद घोड़े की तरफ बढ़ते हैं और उसकी तारीफों के पूल बाँधते जाते हैं उन्हें बढ़ता देख शक्ति सिंह तेजी से सफ़ेद घोड़े की तरफ जा कर उसकी सवारी कर लेते हैं उनकी शीघ्रता देख राणा उदय सिंह शक्ति सिंह को सफ़ेद घोड़ा दे देते हैं और नीला घोड़ा प्रताप को मिल जाता हैं. इसी नीले घोड़े का नाम चेतक था, जिसे पाकर प्रताप बहुत खुश थे.

प्रताप की कई वीरता की कहानियों में चेतक का अपना स्थान हैं. चेतक की फुर्ती के कारण ही प्रताप ने कई युद्धों को सहजता से जीता. प्रताप अपने चेतक से पुत्र की भांति प्रेम करते थे.

हल्दी घाटी के युद्ध में चेतक घायल हो जाता हैं. उसी समय बीच में एक बड़ी नदी आ जाती हैं जिसके लिए चेतक को लगभग 21 फिट की चौड़ाई को फलांगना पड़ता हैं. चेतक प्रताप की रक्षा के लिए उस दुरी को फलांग कर तय करता हैं लेकिन घायल होने के कारण कुछ दुरी के बाद अपने प्राण त्याग देता हैं. 21 जून 1576 को चेतक प्रताप से विदा ले लेता हैं. इसके बाद आजीवन प्रताप के मन में चेतक के लिए एक टीस सी रह जाती हैं.

आज भी हल्दीघाटी में राजसमंद में चेतक की समाधी हैं जिसे दर्शनार्थी उसी श्र्द्धा से देखते हैं जैसे प्रताप की मूरत को.

महाराणा प्रताप और दानवीर भामाशाह

अकबर के द्वारा जहां-जहां भी आक्रमण किया गया, वहां वहां पर मुगलों की सेना ने काफी ज्यादा कोहराम मचाया, जिसकी वजह से अकबर का नाम सुनते ही बहुत से राजपरिवार आत्मसमर्पण कर देते थे, परंतु जब अकबर का सामना राणा प्रताप से हुआ तब अकबर को वास्तव में पता चला कि एक सच्चा हिंदू हृदय राजपूत सम्राट राजा क्या होता है।

राणा प्रताप ने अपने वंश को कायम रखने के लिए संघर्ष करने का रास्ता चुना और उन्होंने अकबर के सामने कभी भी आत्मसमर्पण नहीं किया। राणा प्रताप काफी दिनों तक जंगल जंगल भटकते रहे और घास की रोटियां खा करके अपनी पत्नी और अपने बच्चों को विकराल स्थिति में धैर्य के साथ रखा।

संपत्ति के अभाव में सेना के टूटते हुए मनोबल को पुनर्जीवित करने के लिए राणा प्रताप के राज्य के दानवीर भामाशाह के द्वारा राणा प्रताप को अपना पूरा खजाना समर्पित कर दिया गया। हालांकि इसके बावजूद राणा प्रताप ने कहा कि सैनिक आवश्यकताओं के अलावा मुझे आपके खजाने का एक पैसा भी नहीं चाहिए।

बावजूद इसके भामाशाह ने राणा प्रताप को आर्थिक तौर पर सहयोग देने का वचन दिया और अपने वचन को निभाया भी। राणा प्रताप के बारे में अकबर ने भी कहा कि राणा प्रताप के पास सीमित साधन थे परंतु इसके वह झुका नहीं और ना ही वह डरा।

मेवाड़ के सिसोदिया राजवंश के शासक

राजा का नामवर्ष
राणा हम्मीर सिंह(1326–1364)
राणा क्षेत्र सिंह(1364–1382)
राणा लखा(1382–1421)
राणा मोकल(1421–1433)
राणा कुम्भ(1433–1468)
उदयसिंह प्रथम(1468–1473)
राणा रायमल(1473–1508)
राणा सांगा(1508–1527)
रतन सिंह द्वितीय(1528–1531)
राणा विक्रमादित्य सिंह(1531–1536)
बनवीर सिंह(1536–1540)
उदयसिंह द्वितीय(1540–1572)
महाराणा प्रताप(1572–1597)
अमर सिंह प्रथम(1597–1620)
करण सिंह द्वितीय(1620–1628)
जगत सिंह प्रथम(1628–1652)
राज सिंह प्रथम(1652–1680)
जय सिंह(1680–1698)
अमर सिंह द्वितीय(1698–1710)
संग्राम सिंह द्वितीय(1710–1734)
जगत सिंह द्वितीय(1734–1751)
प्रताप सिंह द्वितीय(1751–1754)
राज सिंह द्वितीय(1754–1762)
अरी सिंह द्वितीय(1762–1772)
हम्मीर सिंह द्वितीय(1772–1778)
भीम सिंह(1778–1828)
जवान सिंह(1828–1838)
सरदार सिंह(1838–1842)
स्वरूप सिंह(1842–1861)
शम्भू सिंह(1861–1874)
उदयपुर के सज्जन सिंह(1874–1884)
फतेह सिंह(1884–1930)
भूपाल सिंह(1930–1948)
भूपाल सिंह(1948–1955)
भागवत सिंह(1955–1984)
महेन्द्र सिंह(1984–वर्तमान)

महाराणा प्रताप की मृत्यु, किसने मारा (Maharana Pratap Death Date) :

प्रताप एक जंगली दुर्घटना के कारण घायल हो जाते हैं. 29 जनवरी 1597 में प्रताप अपने प्राण त्याग देते हैं. इस वक्त तक इनकी उम्र केवल 57 वर्ष थी. आज भी उनकी स्मृति में राजस्थान में महोत्सव होते हैं.उनकी समाधी पर लोग श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं.

प्रताप के शौर्यता से अकबर भी प्रभावित था. प्रताप और उनकी प्रजा को अकबर सम्मान की दृष्टि से देखते थे. इसलिये हल्दीघाटी के युद्ध के दौरान उनकी सेना में वीरगति को प्राप्त होने वाले सैनिकों एवम सामंतों को हिन्दू रीती अनुसार श्रद्धा के साथ अंतिम विदा दी जाती थी.

प्रताप की मृत्यु के बाद मेवाड़ और मुग़ल का समझौता (After Pratap’s Death):

प्रताप की मृत्यु के बाद उनके बड़े पुत्र अमर सिंह ने राजगद्दी संभाली. शक्ति की कमी होने के कारण अमर सिंह ने अकबर के बेटे जहाँगीर के साथ समझौता किया, जिसमे उन्होंने मुगलों की आधीनता स्वीकार की, लेकिन शर्ते रखी गई. इस आधीनता के बदले मेवाड़ और मुगलों के बीच वैवाहिक संबंध नहीं बनेंगे. यह भी निश्चित किया गया कि मेवाड़ के राणा मुग़ल दरबार में नहीं बैठेंगे, उनके स्थान पर राणा के छोटे भाई एवम पुत्र मुग़ल दरबार में शामिल होंगे. इसके साथ ही चितौड़ के किले को मुगुलों के आधीन दुरुस्त करवाने की मुगलों की इच्छा को भी राजपूतों ने मानने से इनकार किया, क्यूंकि भविष्य में मुगल इस बात का फायदा उठा सकते थे.

इस तरह महाराणा प्रताप की मृत्यु के बाद मेवाड़ और मुगलों के बीच समझौता स्वीकार किया गया, लेकिन महाराणा प्रताप में जीते जी इस आधीनता को स्वीकार नहीं किया, विकट स्थिती में भी धेर्यता के साथ आगे बढ़ते रहे.

महाराणा प्रताप की जयंती 2024 में कब है (Maharana Pratap Jayanti 2024 Date) :

हिंदी पंचाग के अनुसार महाराणा प्रताप का जन्म ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की तीज को आता हैं, इसलिए प्रतिवर्ष महाराणा प्रताप की जयंती इस दिन मनाई जाती है. इस वर्ष 2024 में 9 जून, रविवार को मनाई जाएगी.

महाराणा प्रताप पर फिल्म और साहित्य (Maharana Pratap Serial and Film)

महाराणा प्रताप को केंद्रित करते हुए साल 2012 से लेकर के 2015 तक एक टीवी सीरियल का निर्माण हुआ जिसका नाम जोधा अकबर था। यह ज़ी टीवी पर प्रसारित होने वाला कार्यक्रम था, जिसमें अनुराग शर्मा ने राणा प्रताप का किरदार अदा किया था।

वही साल 2013 से लेकर साल 2015 तक भारत का वीर पुत्र महाराणा प्रताप नाम से एक कार्यक्रम सोनी एंटरटेनमेंट टेलीविजन पर आता था जिसमें फैसल खान के द्वारा राणा प्रताप का रोल किया गया था और जवान राणा प्रताप का रोल शरद मल्होत्रा के द्वारा किया गया था। वही साल 2016 में एबीपी न्यूज ने भारतवर्ष प्रस्तुत किया था जिसमें राणा प्रताप की कहानी 8 एपिसोड में दिखाई गई थी।

होम पेजयहाँ क्लिक करें

FAQ

Q- महाराणा प्रताप के घोड़े का नाम क्या था?

Ans- महाराणा प्रताप के घोड़े का नाम चेतक था।

Q- महाराणा प्रताप के घोड़े की छलांग कितनी थी?

Ans- महाराणा प्रताप के घोड़े की छलांग 26 फीट के करीबन थी।

Q- चेतक पर सवार महाराणा प्रताप की प्रतिमा कहां स्थित है?

Ans- ये स्मारक मोती मगरी के पास की चोटी पर फतेह सागर झील के किनारे स्थित है।

Q- महाराणा प्रताप की रानी कौन थी?

Ans- महाराणा प्रताप की रानी मीराबाई थी।

Q- चेतक कैसे घायल हुआ था?

Ans- चेतक हाथी के दांत पैर में लगने के कारण घायल हुआ था।

अन्य पढ़े :

Karnika
कर्णिका दीपावली की एडिटर हैं इनकी रूचि हिंदी भाषा में हैं| यह दीपावली के लिए बहुत से विषयों पर लिखती हैं | यह दीपावली की SEO एक्सपर्ट हैं,इनके प्रयासों के कारण दीपावली एक सफल हिंदी वेबसाइट बनी हैं

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Popular Articles