कौन था मेघनाथ जिसे भगवान राम भी नहीं मार सकते थे [Meghnath lakshman yudh, vadh, story In Hindi]
हिंदू ग्रंथों में सबसे प्रसिद्ध गाथा रामायण की है जिसमें इतने विभिन्न प्रकार के चरित्रों का वर्णन किया गया है जिसमें सिर्फ प्रत्येक चरित्र अपने जीवन से कुछ महत्वपूर्ण सीख देता है। यदि कोई व्यक्ति अपने जीवन में रामायण में बताए गए किसी एक भी चरित्र के जीवन का अनुसरण करें तो यह निश्चित है कि वह अपने जीवन में ना तो कभी हार सकता है और ना ही कभी निराश हो सकता है। ऐसे ही अद्भुत चरित्र के बारे में आज हम आपको विस्तार पूर्वक बताने जा रहे हैं जिसका नाम आप प्रत्येक वर्ष सबकी जुबान पर सुनते ही होंगे। वह नाम है मेघनाथ जिसे इंद्रजीत के नाम से भी संबोधित किया जाता है। आज हम इंद्रजीत के जीवन से ही जुड़े कुछ रोचक तथ्यों के बारे में विस्तार पूर्वक उल्लेख करने वाले हैं ताकि आप राक्षस कहे जाने वाले इंद्रजीत के जीवन से कुछ प्रेरणा ले सकें।

कौन था इंद्रजीत/ मेघनाथ?
एक महान योद्धा के रूप में देखा जाने वाला मेघनाथ लंकापति रावण का सबसे बड़ा पुत्र था। रावण की पहली पत्नी मंदोदरी मेघनाथ की माता थी जिन्होंने इतने शूरवीर पुत्र को अपनी कोख से ही जन्म दिया था। उनको मेघनाथ नाम क्यों दिया गया इसके पीछे भी एक रोचक तथ्य छिपा हुआ है ऐसा बताया जाता है कि हमारे ग्रंथों में इस बात का वर्णन है कि जब मेघनाथ का प्राकट्य हुआ था तब उसके रोने की आवाज एक साधारण बालक की तरह नहीं बल्कि बादल के गड़गड़ाहट की तरह सुनाई पड़ती थी जिसके वजह से उस बालक का नाम मेघनाथ रखा गया।
रावण का प्रिय पुत्र
मेघनाथ रावण का बड़ा पुत्र होने के साथ-साथ लंका का युवराज भी था जिसे रावण बेहद प्यार करता था। जितना बड़ा महान विद्वान ज्योतिष रावण था उससे भी कहीं ज्यादा गुणवान, महान योद्धा और सबसे बड़ा ज्ञानी वह अपने बेटे मेघनाथ को बनाना चाहता था। अपने पुत्र को अजर अमर बनाने की कामना को लेकर त्रिलोक विजेता रावण ने सभी देवताओं को अपने पुत्र के जन्म के समय एक ही स्थान अर्थात ग्यारहवें घर में विराजमान रहने के लिए कहा। मेघनाथ के पैदा होने से पहले ही रावण को इतना ज्यादा मोह अपने पुत्र से हो गया था कि उसने ग्रहों की चाल को ही बदलने की कोशिश कर डाली। परंतु भगवान तो अपनी माया अपने अनुसार ही रखते हैं इसलिए शनिदेव ने रावण की आज्ञा का उल्लंघन किया और सारे ग्रहों से अलग बारहवें घर में जाकर बैठ गए। ताकि मेघनाथ अजर अमर की उपाधि ना प्राप्त कर सके।
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मेघनाथ को मिला ब्रह्मा का वरदान
पौराणिक कथाओं के कथन के अनुसार स्वर्ग पर अपना आधिपत्य जमाने के लिए जब रावण ने स्वर्ग के देवताओं पर आक्रमण कर दिया तब उस समय मेघनाथ भी उस युद्ध में रावण के साथ सम्मिलित था। तब एक जगह जब रावण पर इंद्र ने प्रहार करना चाहा तो मेघनाथ अपने पिता को बचाने के लिए आगे आया और उसने एक ही बार में इंद्र और इंद्र के वाहन एरावत पर हमला कर दिया। उसे वहां पर सभी देवताओं के साथ-साथ इंद्र को भी इस युद्ध में हरा दिया जिसके बाद मेघनाथ को इंद्रजीत की उपाधि से संबोधित किया जाने लगा।
मेघनाथ जब स्वर्ग से निकलने लगा तो उसने इंद्र को भी अपने साथ ले लिया और अपने रथ पर बैठा कर लंका में ले आया। रावण स्वर्ग पर अपना अधिकार जमाना चाहता था क्योंकि विजय तो उसने प्राप्त कर ही ली थी परंतु स्वर्ग और रावण के बीच एकमात्र कांटा सिर्फ इंद्र ही था जिसे मिटाने के लिए रावण और मेघनाथ दोनों ही तैयार हो गए। परंतु जब ब्रह्मा जी को रावण के इस फैसले का ज्ञान हुआ तब वे तुरंत लंका की ओर निकल पड़े। वहां जाकर उन्होंने मेघनाथ से निवेदन किया कि वह इंद्र को मुक्त कर दें। परंतु इंद्रजीत इस बात को मानने के लिए राजी नहीं था। ब्रह्मा जी ने कहा कि तुम यदि इंद्र को छोड़ देते हो तो मैं उसके बदले तुम्हें एक वरदान देने का वचन देता हूं।
मेघनाथ ने ब्रह्माजी के उस वचन का फायदा उठाते हुए उनसे अमरता का वरदान प्रदान करने के लिए कहा। तब ब्रह्मा जी ने मेघनाथ को समझाया और कहा कि अमर होना इस प्रकृति में किसी भी जीव के लिए संभव नहीं है क्योंकि यह तो प्रकृति के ही खिलाफ है तब उन्होंने इंद्रजीत से कहा कि वह कोई दूसरा वरदान मांग ले। इंद्रजीत अपनी बात पर अड़ा रहा तब ब्रह्मा जी ने अपने इंद्रजीत को कहा कि यदि वह अपनी मूल देवी निकुंभला देवी का यज्ञ करेगा और वह यज्ञ जब संपूर्ण हो जाएगा तब उसे एक ऐसा रथ प्राप्त होगा जिस पर बैठकर वह किसी भी शत्रु के सामने युद्ध में पराजित नहीं हो पाएगा और ना ही उसकी मृत्यु होगी।
परंतु ब्रह्मा जी ने इंद्रजीत को यह कहते हुए भी सावधान किया कि केवल एक ही व्यक्ति इस पृथ्वी पर ऐसा होगा जो मेघनाथ का अंत कर पाएगा। वह केवल वही व्यक्ति होगा जो 12 वर्ष तक सोया ना हो। इसी वरदान के कारण केवल लक्ष्मण ही ऐसा मानव था जो इंद्रजीत को मृत्यु के घाट उतार सकता था क्योंकि वह वनवास के दौरान लगातार 14 वर्षों तक सोया नहीं था। इसी कारण राम रावण युद्ध के दौरान युद्ध क्षेत्र में लक्ष्मण के हाथों ही मेघनाथ का अंत हुआ।
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मेघनाथ था बहुत शक्तिशाली
ऐसा कहा जाता है कि मेघनाथ ही केवल एक ऐसा व्यक्ति आज तक हुआ है जो तीनों देवों से प्राप्त शक्ति अर्जित कर पाया है। जी हां तीनों देवताओं में आने वाले ब्रह्मा-विष्णु-महेश तीनों के द्वारा प्रदान की गई तीन प्रकार की अलग-अलग शक्तियां इंद्रजीत के पास मौजूद थे इसी वजह से वह ब्रह्मांड का सबसे महान योद्धा कहलाया गया था। इंद्रजीत ने अपनी युक्त शास्त्र शिक्षा गुरु शुक्र से प्राप्त की थी और उन्हीं से उन्हें तीनों देवताओं के शस्त्र प्राप्त हुए थे जिनके नाम ब्रह्मास्त्र, वेष्णवस्त्र और पशुपतिस्त्र। इन सबके अलावा उन्होंने कई अलग-अलग प्रकार की जादुई और सम्मोहन शक्तियों को प्राप्त किया था जिसकी वजह से ही युद्ध क्षेत्र में उन्होंने राम व लक्ष्मण दोनों को ही एक साथ नापाक में फंसा कर मूर्छित कर दिया था।
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इंद्रजीत के बल का व्याख्यान जितना किया जाए उतना कम है क्योंकि वह एक अकेला ही ऐसा योद्धा था जिसने एक ही दिन के युद्ध में 67 मिलियन वानरों को मौत के घाट उतार दिया था। लंका में वह अकेला ही एक ऐसा योद्धा था जो पूरी वानर सेना को अपनी एक ही गर्जना से पूरी तरह बिखेर कर रख सकता था परंतु उसमें आए शक्ति के घमंड की वजह से वह अपनी बुद्धि का सही उपयोग ना कर सका इसलिए मौत के घाट उतार दिया गया। मेघनाथ के जीवन से हमें यही शिक्षा मिलती है कि इंसान भले ही कितना शक्तिशाली हो जाए परंतु घमंड की वजह से अपनी बुद्धिमता को नहीं गंवाना चाहिए।
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