गैर प्रदर्शन संपत्ति (नॉन परफोर्मिंग एसेट या एनपीए) क्या है | What is NPA (Non Performing Asset) in Hindi
एनपीए का मतलब गैर प्रदर्शन संपत्ति (नॉन परफोर्मिंग एसेट्स) है. यह बैंकिंग टर्म है. यदि किसी ग्राहक को दिए गये ऋण में बैंक को किसी तरह का लाभ प्राप्त नहीं होता है, तो इस तरह का ऋण एनपीए कहलाता है. भारतीय रिज़र्व बैंक के अनुसार किसी बैंक द्वारा दिए गये टर्म लोन पर पिछले 90 दिनों के लिए यदि ब्याज आदि नहीं दिया जाए, तो ऋण एनपीए हो जाता है. हालाँकि फार्म लोन के अंतर्गत इसे इस तरह से परिभाषित किया जाता है: अल्प सामयिक कृषि जैसे धान, ज्वार, बाजरा आदि के लिए लिये गये लोन पर यदि 2 क्रॉप सीजन तक किसी तरह का ब्याज नहीं दिया जाता है, तो लोन नॉन परफोर्मिंग एसेट के तहत आ जाता है. लम्बे समय वाले फसल का लोन इस स्थिति में 1 क्रॉप सीजन से अधिक होने पर वह नॉन परफोर्मिंग एसेट्स के अंतर्गत आ जाता है.

नॉन परफोर्मिंग एसेट्स (एनपीए) का वर्गीकरण (NPA – Non Performing Asset Classification in hindi)
बैंक इस एनपीए को चार तरह से वर्गीकृत करता है. ये चार मुख्य वर्ग हैं. स्टैण्डर्ड, सब स्टैण्डर्ड, डाउटफुल और लॉस. यह चारों का वर्गीकरण इस आधार पर होता है कि कोई संपत्ति कितने समय तक नॉन परफोर्मिंग एसेट के रूप में रही है. इसका संक्षिप्त वर्णन नीचे किया जा रहा है.
- स्टैण्डर्ड एसेट : संपत्ति, जो बैंक को नियमित आय पैदा कर रही है.
- सब स्टैण्डर्ड एसेट : यदि कोई लोन लिया हुआ व्यक्ति 90 दिनों तक किसी भी रूप में बकाया भुगतान नहीं करता है, तो इसे ‘स्पेशल मेन अकाउंट’ कहा जाता है. यदि कोई स्पेशल मेन अकाउंट 12 महीने अथवा इससे अधिक समय के लिए ज्यों का त्यों रह जाता है, तो इसे सब स्टैण्डर्ड एसेट कहा जाता है. किसी बैंक में इसका वर्णन निम्न रूप से होता है.
- किसी सुरक्षित लोन के अंतर्गत बकाया राशि का 15% चुकाना होगा.
- किसी असुरक्षित लोन के अंतर्गत बकाया राशि का 25% चुकाना होगा.
- डाउटफुल एसेट : यदि कोई सब स्टैण्डर्ड एसेट 12 महीने या इससे अधिक समय के लिए ज्यों का त्यों रह जाता है, अर्थात ग्राहक की इस पर किसी तरह की कोई प्रतिक्रिया नहीं होती है, तो बैंक इसको ‘डाउटफुल एसेट’ एनपीए करार देता है. इसके बाद यह 3 वर्ष के लिए ऐसे ही रहता है. इस समय बैंक का प्रावधान निम्नलिखित तरह से होता है.
- पहले वर्ष में सुरक्षित ऋण के अंतर्गत बकाया राशि का 25% और असुरक्षित ऋण के अंतर्गत बकाया राशि का कुल 100% चुकाना होगा.
- 1 से 3 वर्ष के मध्य सुरक्षित ऋण के अंतर्गत बकाया राशि का 40% अथवा असुरक्षित ऋण के अंतर्गत बकाया राशि का 100% चुकाना होगा.
- 3 वर्ष से अधिक हो जाने पर सुरक्षित ऋण के अंतर्गत बकाया राशि का 100% और असुरक्षित ऋण के अंतर्गत भी बकाया राशि का 100% चुकाना होगा.
- लॉस एसेट : यदि सब स्टैण्डर्ड के बाद भी 3 वर्ष से अधिक समय के लिए ऋण बैंक को नहीं चुकाया गया, तो इसे बैंक द्वारा आन्तरिक अथवा बाह्य ऑडिट के अंतर्गत ‘अनरिकवरेबल’ करार दे दिया जाता है. इसे लॉस एसेट भी कहा जा सकता है. हालाँकि इसे लॉस एसेट तभी कहा जायेगा, जब आतंरिक अथवा बाह्य ऑडिटर इसे लॉस एसेट के रूप में प्रमाणित कर दें.
एनपीए होने के विशेष कारण और उपाय (NPA Causes and Remedies)
किसी लोन के एनपीए होने के विशेष कारणों का वर्णन नीचे किया जा रहा है.
- ग्राहकों की चूक : किसी लोन के नॉन परफोर्मिंग एसेट के अंतर्गत आने का एक मुख्य करण है, ग्राहकों के द्वारा समय पर ऋण के क़िस्त न चुकाना. अतः ऋण लेने के बाद बकाया राशि को समय समय चुकाना अनिवार्य है.
- आर्थिक स्थिति : किसी स्थान की प्राकृतिक स्थिति भी एनपीए की एक वजह हो सकती है.
- बैंक के व्यवस्थित मैनेजमेंट न होने पर : किसी बैंक की मैनेजमेंट व्यवस्था भी उसके ग्राहकों को दिए गये ऋण को नॉन परफोर्मिंग एसेट में बदलने की जिम्मेवार होती है. दरअसल कभी कभी कई बैंक वैसे लोगो को भी आसानी से ऋण दे देती है, जिनकी क्रेडिट हिस्ट्री बुरी होती है. ऐसे लोगो को ऋण देने की वजह से भी कई बार ऋण नॉन परफोर्मिंग एसेट में बदल जाती है.
- फण्ड डायवर्सन : कई बार ऋण लेने वाला व्यक्ति लोन डॉक्यूमेंट में दिए गये लोन लेने के कारण से मुकर जाते हैं. ऐसे में लोन की बकाया राशि मिलनी मुश्किल हो जाती है. इसे फण्ड डायवर्सन कहा जाता है. ऐसी स्थिति में फण्ड वापस पाना बैंक के लिए मुश्किल हो जाता है.
- डिफ़ॉल्ट : एनपीए के पीछे मुख्य कारण में से एक उधारकर्ताओं द्वारा डिफ़ॉल्ट भी है.
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