Ravi Shankar Vyas “Maharaj” Biography in hindi रवि शंकर व्यास जी को रवि शंकर महाराज के नाम से भी जाना जाता है, ये भारत की स्वतंत्रता के कार्यकर्ता, सामाजिक कार्यकर्ता और गाँधीवादी विचारधारा को अपनाने वाले व्यक्ति थे. इन्हें भारत का स्वतंत्रता सैनानी भी कहा जाता है. ये भारत को स्वतंत्र कराने के लिए महात्मा गाँधी जी के साथ खड़े रहे, और उनके आंदोलनों में उनका साथ दिया. रवि शंकर महाराज गांधीजी और सरदार वल्लभभाई पटेल जी के पहले और करीबी सहयोगियों में से एक थे. इन्होंने अपना सारा जीवन देश की सेवा में व्यतीत किया. इसके जीवन के बारे में इस आर्टिकल में पूरी जानकारी दी गई है. सरदार वल्लभभाई पटेल जीवन परिचय यहाँ पढ़ें.

रवि शंकर व्यास “महाराज” जीवन परिचय ( Ravi Shankar Vyas “Maharaj” Biography in hindi )
रवि शंकर महाराज के जीवन के बारे में निम्न तालिका में दर्शाया गया है.
क्र.म. | जीवन परिचय बिंदु | जीवन परिचय |
1. | नाम | रवि शंकर व्यास “महाराज” |
2. | जन्म | 25 फरवरी सन 1884 |
3. | जन्म स्थान | खेड़ा जिला, गुजरात, भारत |
4. | पिता | पीताम्बर शिवराम व्यास |
5. | माता | नाथीबा व्यास |
6. | भाई | अंबालाल व्यास |
7. | पत्नी | सूरजबा |
8. | बेटे | मेधावृत (पंडितजी), विष्णुभाई |
9. | बेटी | महालक्ष्मी बेन |
10. | पेशा | सोशल वर्कर |
11. | मृत्यु | 1 जुलाई सन 1984 |
12. | मृत्यु स्थान | बोरसद, भारत |
13. | अन्य नाम | बोरवेल महाराज और मुकसेवक |
इनके जीवन परिचय निम्न आधार पर भी दर्शाया गया है-
रविशंकर महाराज का जन्म और शुरूआती जीवन (Ravi Shankar Vyas biography) –
रविशंकर व्यास महाराज जी का जन्म महाशिवरात्रि के दिन कैरा जिला, गुजरात के राधू गाँव के एक किसान ब्राम्हण परिवार में हुआ. रविशंकर जी ने छठी कक्षा तक बस पढ़ाई की, इसके बाद इन्होंने अपना स्कूल छोड़ दिया और अपने माता – पिता के साथ कृषि के कार्य में जुट गए. इनके बचपन में गरीबी इनके कुशल समाजीकरण से अच्छी तरह प्रबंधित थी. प्रेम, आधत्मिकता, बचत, अनुशासन और अपने कार्यों में स्वयं की सहायता यह सब उनके माता – पिता की देन थी. इनका परिवार महेम्दावाद के पास स्थित सर्सवानी गाँव का रहने वाला था. इन्होंने सुरज्बा से शादी की. जिससे इनके 2 बेटे और 1 बेटी हुई. जब ये महज 19 साल के थे, तब इनके पिता का देहांत हो गया और जब से 22 साल के हुए तब इनकी माता का देहांत हुआ. इस तरह इनका शुरूआती जीवन बीता.
रविशंकर महाराज जी की गांधीजी से मुलाकात –
रविशंकर व्यास जी आर्य समाज की विचारधारा से बहुत प्रभावित थे. सन 1915 में इनकी मुलाकात गाँधी जी से हुई, ये उनके विचारों से सहमत थे और ये गांधीजी के साथ स्वतंत्रता और समाजिक सक्रियता में शामिल हो गए. जब ये गाँधीजी के साथ उनके आंदोलनों में शामिल हुए तो, उनके जीवन में एक बहुत बड़ा बदलाव आया. ये महात्मा गाँधी और सरदार वल्लभभाई पटैल के पहले और करीबी सहयोगियों में से एक थे, और दरबार गोपाल देसाई, नरसिह पारिख और मोहनलाल पंड्या के साथ, ये भी सन 1920 और सन 1930 के दशक में गुजरात में राष्ट्रवादी विद्रोहों के मुख्य आयोजक में से एक थे. रविशंकर जी गाँधी जी के सभी आंदोलनों में उनका साथ देते थे, और अपने रचनात्मक काम के जरीये उन्होंने गाँधीजी के आंदोलनों में प्रमुख भूमिका निभाई. उन्होंने तटीय मध्य गुजरात की बरैया और पतंवादिया जातियों के पुनर्निवास के लिए काम किया.
रविशंकर व्यास जी ने सन 1920 में राष्ट्रीय शाला की स्थापना की. उन्होंने अपनी पत्नी की इच्छा के खिलाफ पैतृक सम्पत्ति पर अपना अधिकार छोड़ दिया और सन 1921 में भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में शामिल हो गए. इन्होंने सन 1923 में बोरसद सत्याग्रह में हिस्सा लिया और हैदिया टैक्स के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया. इसके बाद सन 1926 में इन्होंने बारडोली सत्याग्रह में हिस्सा लिया, और वे 6 महीने के लिए ब्रिटिश प्राधिकारी द्वारा कैद में भी रहे. सन 1927 में बाढ़ के राहत कार्य में भाग लिया, जिसमे इन्होंने मान्यता अर्जित की. इसके बाद सन 1930 में ये गाँधी जी के साथ नमक कानून में शामिल हुए, और 2 साल की कैद में रहे. महात्मा गाँधी जीवन परिचय यहाँ पढ़ें.
सन 1941 में जब अहमदाबाद में साम्प्रदायिक दंगे हुए, तब वे निडर होकर अशांत क्षेत्रों में गए और वहाँ के माहौल को शांत और साम्प्रदायिक करने में इन्होंने अहम भूमिका निभाई. सन 1942 के एतिहासिक “भारत छोड़ो आन्दोलन” के मद्देनजर ये ब्रिटिश सरकार द्वारा फिर से जेल में बंद कर दिए गए.
इस तरह ये भारत को आजाद कराने में गाँधीजी के साथ कई आंदोलनों के हिस्सा बने और इसके लिए इन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा.
रविशंकर महाराज आजादी के बाद (Ravi Shankar Maharaj) –
सन 1947 में भारत की आजादी के बाद रविशंकर व्यास जी ने अपने आप को गुजरात के लोगों के कल्याण के लिए रचनात्मक काम में व्यस्त कर लिया, और उस ओर अपना सारा ध्यान केन्द्रित रखा. उन्होंने गुजरात के पिछड़े वर्ग के लोगों और दलितों के उज्ज्वल जीवन के लिए कई काम किये. रविशंकर महाराज, आचार्य विनोबा भावे के भूदान आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल हुए, और सन 1955 से सन 1958 के बीच 6000 किलोमीटर की यात्रा की. सन 1960 के दशक में उन्होंने संगठित और सर्वोदय आन्दोलन का समर्थन किया. रविशंकर व्यास जी ने सन 1960 में गुजरात राज्य का उद्घाटन किया, जिसे 1 मई सन 1960 में बनाया गया. इसके बाद इन्होंने गुजरात के मूक सेवक और महान सपूत के रूप में सार्वजनिक जीवन से सन्यास लेने की घोषणा की. उन्होंने लोगों से अपील की कि कोई भी व्यक्ति इसके नाम पर धन जुटाने की कोशिश ना करें और न ही उनके नाम पर कोई स्मारक बनाया जाये. सन 1975 में इन्होंने आपातकाल का भी विरोध किया था.
इस तरह इन्होंने आजादी के बाद भी देश की सेवा में अपना सारा जीवन व्यतीत किया.
रविशंकर महाराज की मृत्यु (Ravi Shankar Vyas death) –
1 जुलाई सन 1984 की सुबह व्यापक रूप से गुजरात के सबसे ऊँचे गाँधीवादी और एक “मुठी उचेरो मानवी” रविशंकर महाराज जी ने अस्पताल में अपनी अंतिम सांसे ली. वे 100 साल की उम्र में स्वर्गवासी हुए. उनकी मृत्यु तक यह परम्परा चली कि गुजरात के जो भी मुख्यमंत्री नियुक्त होते थे, वे शपथ लेने के बाद रविशंकर महाराज जी के पास आशीर्वाद लेने जाते थे. रविशंकर महाराज जी को समर्पित करने के लिए बोचासन में अध्यापन मंदिर और वल्लभ विद्यालय स्थित है. रविशंकर जी ने अपने शिक्षा, ग्रामीण पुनर्निर्माण और कोलकाता के बारे में लिखा है. इस तरह रविशंकर महाराज जी ने अपनी मृत्यु से पहले लोगों के दिलों में जगह बना ली.
रविशंकर महाराज की उपलब्धी –
रवि शंकर महाराज जी ने अपने जीवन में निम्न उपलब्धी हासिल की.
- भारत सरकार ने सन 1984 में उनके सम्मान में डाक टिकिट जारी की.
- सामाजिक कार्य के लिए रविशंकर महाराज अवार्ड, योग्य 1 लाख, गुजरात सरकार के सामाजिक न्याय विभाग द्वारा उनके सम्मान में स्थापित किया गया.
रविशंकर महाराज लोकप्रिय संस्कृति में –
झवेरचंद मेघाणी ने “मानसी ना दिवा” लिखा है जोकि आदिवासियों के बीच उनके सामाजिक कार्यों के दौरान उनके साथ जो अनुभव था, उस पर आधारित है. सन 1984 में पन्नालाल पटैल ने भी उनके ऊपर आत्मकथात्मक उपन्यास “जेने जीवी जनयु” लिखा है.
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Ankita
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