रावल रतन सिंह का इतिहास | Rawal Ratan Singh (Ratnasimha) history and story in hindi
महारानी पद्मिनी या पद्मावती के गौरव और साहस की कहानी के बारे में आप लोगों ने काफी कुछ सुना होगा. उन्होंने जिस बहादुरी के साथ अपने स्वाभिमान की रक्षा की उसको शायद ही शब्दों में बयान किया जा सके. लेकिन शायद ही आप लोगों को महारानी पद्मावती के पति रावल रतन सिंह की बहादुरी के बारे में पता होगा. आज हम आपको रावल रतन सिंह के जीवन का परिचय देने जा रहे है और ये बताने जा रहे हैं कि किस तरह उन्होंने अपनी आखिरी सांस तक दुश्मनों का डट कर सामना किया.
रावल रतन सिंह कौन थे (who was Rawal Ratan Singh)
गुहिल वंश के वंशज रतन सिंह इस वंश की शाखा रावल से सम्बंधित थे. उन्होंने चित्रकूट के किले पर जो की अब चित्तौड़गढ़ है, वहां पर अपना शासन किया था. रतन सिंह को उनकी राजपूताना बहादुरी के लिए आज भी जाना जाता है. महाराज रतन सिंह के शासनकाल के बारे में ज्यादा जानकारी मलिक मोहम्मद जायसी द्वारा लिखी गई कविता ‘पद्मावती’ में मिलती है. मोहम्मद जायसी ने ये कविता सन् 1540 में रचित की थी.
महाराजा रतन सिंह का परिवार (Rawal Ratan Singh family)
अपने पिता समर सिंह (समरसिम्हा) की मुत्यु के बाद रतन सिंह ने राजगद्दी पर 1302 सीई. में हुकूमत की. जिस पर उन्होंने 1303 सीई तक शासन किया था. 1303 सीई में दिल्ली सल्तनत के सुलतान अलाउद्दीन खिलजी ने उन्हें पराजित कर उनकी गद्दी पर कब्जा कर लिया था.
रतन सिंह का महारानी पद्मावती से विवाह (Rawal Ratan Singh married with Padmavati)
राजा गंधार्व्सेना ने पद्मावती का विवाह संपन्न करने के लिए एक स्वयंवर कराने का निर्णय लिया, जो की पद्मावती के पिता थे. स्वयंवर में हिस्सा लेने के लिए कई पराक्रमी हिन्दू राजाओं को निमंत्रण भेजा था. वहीं राजा रतन सिंह की 13 रानियां रहते हुए उन्होंने इस स्वयंवर में जाने का निश्चय किया था, और अपने पराक्रम से महाराजा मलखान सिंह को हराकर पद्मिनी के साथ 7 फेरे लिए. महारानी पद्मावती से विवाह करने के बाद उन्होंने फिर दोबारा किसी और से विवाह नहीं किया.
रावल रतन सिंह की मृत्यु कैसे हुयी (How was Rawal Ratan Singh killed in hindi)
जायसी द्वारा लिखी गई ‘पद्मावती’ के अनुसार रतन सिंह को वीरगति अलाउद्दीन खिलजी के हाथों मिली थी. जो उस समय दिल्ली की राजगद्दी का सुल्तान था. किताब के मुताबिक राजा रतन सिंह के राज्य दरवारियों में राघव चेतन नाम का संगीतिज्ञ था. एक दिन रतन सिंह को राघव चेतन के काला जादू करने की सच्चाई पता चली तो उन्होंने राघव को गधे पर बैठाकर पूरे राज्य में घुमाया. अपनी इस बेइज्जती से गुस्साए राघव ने दिल्ली के सुलतान के जरिये बदला लेने की साजिश रची. राघव ने अपने गलत मंसूबों को कामयाब करने के पद्मावती के सौन्दर्य के बारे में खिलजी को बताया. पद्मावती की सुंदरता का गुणगान सुन खिलजी ने उन्हें हासिल करने की ठान ली. रानी पद्मावती को पाने के लिए खिलजी ने सबसे पहले दोस्ती करने का तरीका रतन सिंह पर आजमाया. और रतन सिंह के सामने उनकी पत्नी पद्मावती को देखने की अपनी ख्वाहिश भी बताई.
रतन सिंह ने भी खिलजी की इस ख्वाहिश को मान लिया और रानी पद्मावती के चेहरे की छवि को आईने के जरिए खिलजी को दिखा दिया. हालांकि रानी पद्मावती रतन सिंह के इस फैसले से नाखुश थी, मगर एक पत्नी का धर्म निभाते हुए उन्होंने रतन सिंह की ये बात अपनी कुछ शर्तों के साथ मान ली थी. वहीं रानी की खूबसूरती की झलक देखकर खिलजी ने उनको पाने के लिए अपने सैनिकों की मदद से राजा रावल को उन्हीं के महल से तुरंत अगवा कर लिया. जिसके बाद राजा रतन सिंह को किसी तरह उनके सिपाहियों ने खिलजी की कैद से छुड़ाकर मुक्त करवाया था. खिलजी ने रतन सिंह के उनकी कैद से आजाद होने के बाद रतन सिंह के किले पर हमलाकर किले को चारों ओर से घेर लिया. कहा जाता है कि किले को बाहर से कब्जा करने के कारण कोई भी चीज ना तो किले से बाहर जा सकती थी ना ही किले के अंदर आ सकती थी. वहीं धीरे-धीरे किले में रखा हुआ खाने का सामान भी खत्म होने लगा. अपने किले में बिगड़ते हुए हालातों को देखते हुए रतन सिंह ने किले से बाहर निकल बहादुरी के साथ खिलजी से लड़ाई करने का फैसला किया और राजा रतन सिंह की अंतिम लड़ाई थी. वहीं जब खिलजी ने युद्ध में राजा को हरा दिया तो उनकी पत्नी रानी पद्मावती ने अपने राज्यों की कई औरतों समेत जौहर (आत्मदाह) किया.
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