निजता का अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला | Supreme Court Decision on Right to Privacy in hindi
21 सदी में एक वक्तव्य आया है कि जो सरकार अपने नागरिकों की निजता की रक्षा नहीं कर सकती है, वह किसी भी तरह से इक्वल ट्रीटमेंट के अंतर्गत एक लोकतंत्र को चलाने में सक्षम नहीं हो सकती है. ध्यान रखें कि यहाँ पर नागरिकों की शारीरिक रक्षा की नहीं बल्कि उनकी निजी जानकारियों की रक्षा की बात हो रही है. किसी लोकतंत्र में इक्वल ट्रीटमेंट के तहत हर एक व्यक्ति किसी दुसरे व्यक्ति से भिन्न है, अतः किसी एक नागरिक की वजह से दुसरे से समझौता नहीं होना चाहिए.
भारतीय संविधान देश भर के नागरिकों के सभी अधिकारों की रक्षा करता है. इसके अंतर्गत किसी आम नागरिक के लिए कई तरह के मौलिक अधिकार तय किये गये हैं, जो कि किसी नागरिक को उसका पूरा हक़ दिलाती है. हमारे देश के नागरिकों के लिए बराबरी का अधिकार, शैक्षणिक और सांस्कृतिक अधिकार आदि सर्वमान्य हैं. इसी तरह से नागरिकों को एक और अधिकार प्राप्त हैं, जिसे निजता का अधिकार कहा जाता है. इसके अंतर्गत किसी व्यक्ति के जीवन में किसी अन्य की ज़बरदस्ती के हस्तक्षेप पर रोक लगाया जाता है. इसमें व्यक्ति की निजी, पारिवारिक, हॉनर, रेपुटेशन आदि भी सम्मिलित होती है. यहाँ पर इससे सम्बंधित सभी विशेष बातें और तात्कालिक समय में भारत सरकार पर सुप्रीमकोर्ट द्वारा इसके अंतर्गत उठाये गये सवालों का वर्णन किया जा रहा है.
निजता का अधिकार क्या है (What is Right to Privacy)
राईट टू प्राइवेसी का वर्णन संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत आता है, जो कि यहाँ के नागरिक को व्यक्तिगत स्वतंत्रता देती है. इसके अंतर्गत किसी व्यक्ति को निम्नलिखित अधिकार प्राप्त होते हैं,
- इसके अंतर्गत कोई व्यक्ति अपनी निजी जानकारी किसी भी समय प्राप्त कर सकता है.
- यदि किसी व्यक्ति की निजी जानकारियों में किसी भी तरह की त्रुटी अथवा अधूरी हो तो वह उसे संशोधित करने के आवेदन दे सकता है.
- बिना किसी समन के अपनी जानकारी किसी के सामने न रखने की स्वतंत्रता भी इसके अंतर्गत किसी नागरिक को प्राप्त होती है.
- इसके अंतर्गत किसी नागरिक को यह स्वतंत्रता भी प्राप्त होती है कि वह यदि चाहे तो ही उसकी निजी डिटेल किसी के पास जाएगी अन्यथा नहीं जायेगी.
- यह इस बात की भी स्वतंत्रता देता है कि व्यक्ति यह तय करे कि क्या स्टेट उसकी निजी ज़िन्दगी के विषय में जान सकता है.
- व्यक्ति जो इनफार्मेशन केवल अपने ही तक सीमित रखना चाहता है, वह केवल उसके ही पास रहेगी, किसी और को जानने का कोई हक नहीं होगा.
निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है या नहीं (Right to Privacy is a Fundamental Right or Not)
भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों में निजता का अधिकार शामिल नहीं है. नागरिकों के अहम् अधिकारों में एक अधिकार होने के बावजूद यह प्रश्न उठता रहता है कि क्या निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है या नहीं. यदि यह मौलिक अधिकार है तो इस बात की जिम्मेवारी सरकार पर बनती है कि वह आम नागरिकों के इस हक़ की रक्षा करे और इस बात का ध्यान रखे कि किसी एक भी व्यक्ति की निजी डेटा किसी दुसरे से साझा न होने पाए. दरअसल आधार का प्रयोग सरकार अपने हर क्रियाकलापों में कर रही है, अर्थात सरकार सारी योजनाओं में आधार कार्ड को लिंक करवा रही है, इससे लोगों से उनके आधार सम्बंधित सारी जानकारियाँ जमा हो रही है. किन्तु यदि भविष्य में ये डेटा लीक होते हैं, तो यह यहाँ के नागरिकों के निजता का अधिकार का हनन होगा. इसी बात को लेकर कई पिटीशनर्स द्वारा कोर्ट में सरकार के ख़िलाफ़ केस किये गये हैं,
सरकार और पिटीशनर के बीच बहस (Debate Between Government and Pitchers)
- इस मुद्दे पर सरकार यह कहती है कि भारतीय संविधान में कहीं भी निजता का अधिकार की परिभाषा नहीं दी गयी है और संविधान निर्माताओं ने इस अधिकार को मौलिक अधिकारों में शामिल नहीं किया था.
- दूसरी तरफ़ सरकार के इस तर्क के विपरीत पिटिशनर्स ये कहते हैं कि मौलिक अधिकार माना जाए, क्योंकि यह किसी के व्यक्तिगत क्षेत्र और सरकार के बीच के स्पेस के काम करती है और निजता की रक्षा का एक महत्वपूर्ण माध्यम है.
- इसे संविधान के 21 वें आर्टिकल (राईट टू लाइफ) के अंतर्गत लाने का प्रयत्न किया जा रहा है, अतः यह सवाल कोर्ट में उठाया जाता है कि यह राईट टू लाइफ है या नहीं.
- हालाँकि एक लम्बी अवधि से यह केस कोर्ट में चल रहा है और अंततः सुप्रीम कोर्ट में नौ जजों के बेंच के सामने इसे रखा गया.
आधार और निजता का अधिकार (Aadhar and Right to Privacy)
यह बहस तब से शुरू है जब से भारत सरकार ने अपने विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत लोगों से आधार कार्ड सम्बंधित इनफार्मेशन मांगनी शुरू की. सरकार द्वारा जमा की गयी आधार सम्बंधित इनफार्मेशन यदि भविष्य में लीक होती है, तो इससे लोगों के निजता के अधिकार का हनन होगा. ध्यान दें
- आधार की आलोचना इस वजह से शुरू हुई कि वह किसी व्यक्ति की निजता का उल्लंघन करता है, क्यों कि आधार में किसी व्यक्ति के समस्त निजी डेटा दिए हुए होते हैं.
- भारतीय संविधान में कोई भी ऐसा क़ानून नहीं है, जो कि नागरिकों की प्राइवेसी को सिक्योर रख सके.
- आधार का कांसेप्ट लाते हुए श्री नंदन निलेकनी ने यह भी कहा था कि आधार के साथ साथ नागरिक के डेटा सुरक्षा के लिये भी कोई क़ानून आना चाहिए.
सुप्रीमकोर्ट का नजरिया (Supreme Court’s View on Right to Privacy)
इस समय भारत के सर्वोच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस जस्टिस खेहर हैं और इन्ही के सामने यह केस चल रहा है. सबसे पहले इस पर सुप्रीमकोर्ट के नज़रिए को जानना आवश्यक है. सुप्रीम कोर्ट के जज की चयन प्रक्रिया यहाँ पढ़ें.
- सुप्रीमकोर्ट ने कहा कि सरकार द्वारा आम नागरिकों का प्रयोग की जा रही आधार सम्बंधित जानकारियों के लीक होने का भय है और यदि यह किसी सर्विस प्रोवाइडर अथवा प्राइवेट कंपनियों के हाथ लग जाए तो उनकी तरफ़ से कई अनैच्छिक सन्देश आने लगेंगे.
- जस्टिस चन्द्रचुड ने कहा कि वे नहीं चाहेंगे कि स्टेट को अपना निजी मोबाइल नंबर 2000 सर्विस प्रोवाइडर को दे और उन्हें व्हाट्सऐप के ज़रिये बिना मतलब के मेसेज प्राप्त हो.
- सरकार और विभिन्न सर्विस प्रोवाइडर के हाथों के नागरिक के व्यक्तिगत डाटा होने की वजह से इसके लीक होने की संभावना बहुत अधिक रहेगी.
- सुप्रीमकोर्ट नरेन्द्र मोदी की सरकार से लगातार यह प्रश्न करती रही है कि क्या सरकार कोई ‘डेटा प्रोटेक्शन मैकेनिज्म’ के लिए काम कर रही है, या तैयार करा रही है.
निजता का अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला (Supreme Court Decision on Right to Privacy in hindi)
सुप्रीमकोर्ट ने राईट टू प्राइवेसी के अंतर्गत अपना फ़ैसला सुना दिया है. सुप्रीमकोर्ट में 9 जजों के बेंच ने अपना फैसला देते हुए कहा कि निजता के अधिकार यानि राईट टू प्राइवेसी अब से किसी भी भारतीय नागरिकों के मौलिक अधिकारों में से एक है. 9 जजों के इस बेंच ने सन 1954 और 1962 के फैसले को बदलते हुए कहा कि संविधान के 21 वे आर्टिकल के अंतर्गत यह अधिकार भी किसी नागरिक का मौलिक अधिकार होगा. हालाँकि कोर्ट ने अभी आधार लिंकिंग पर अपना कोई फैसला नहीं सुनाया है. ग़ौरतलब है कि सरकार हर तरह की योजनाओं और लेनदेन आदि के लिए दिन प्रतिदिन आधार अनिवार्य करती जा रही है.
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Ankita
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