लालच बुरी बला हैं इस मुहावरे को इंग्लिश में No Vice Like Avarice कहा जाता हैं | जिसका अर्थ हैं जो लालच करता हैं उसे नुकसान भुगतना पड़ता हैं | किसी भी वस्तु की चाह होने और उसकी लालच होने में बहुत फर्क होता हैं | चाह में व्यक्ति उस वस्तु के लिए मेहनत करता हैं लेकिन जिसे लालच होता हैं वो उस वस्तु को पाने के लिए प्रपंच करता हैं जिसमे वो दूसरा का अहित करने से भी नहीं चुकता |
बटुये का रहस्य इस कहानी ने लालच बुरी बला हैं | इस मुहावरे को एक घटना के रुप में परिणाम के साथ आपके सामने रखा हैं |
बटुये का रहस्य : लालच बुरी बला हैं
एक राज्य का राजा न्याय प्रियता के लिए प्रसिद्द था | एक बार उसके सामने एक अजीब मामला आया | जिसमे तय कर पाना मुश्किल था कि कौन अपराधी हैं ?
मामला कुछ इस तरह था – एक भिखारी रास्ते से गुजर रहा था तभी उसकी नजर पैसे से भरे एक बटुये पर पड़ी | उसने उसे उठाकर देखा तो उसमे सों मोहरे थी | उसने सोचा इसे राजकीय विभाग में दे देना चाहिये | उसके ऐसा सोचते वो वहाँ से निकल पड़ा | तभी उसे एक व्यक्ति मिला जिसने बटुआ देख भिखारी को बोला – यह मेरा बटुआ हैं | तुम मुझे लौटा दो | परितोषित के रूप में मैं बटुये में रखे धन का आधा तुम्हे दे दूंगा | यह सुन भिखारी ने उस राहगीर को बटुआ दे दिया | राहगीर कुछ चालाक प्रतीत हो रहा था | उसने जैसे ही बटुये को देखा तो कहने लगा इसमें दो सो मुहरे थी | इसका मतलब सो तुमने पहले ही ले ली | अब मुझे तुम मेरी सो मुहरे लौटा दो |
भिखारी को बहुत गुस्सा आया | भिखारी की नियत में खोट ना था इसलिए उसने राजा के पास न्याय के लिए जाना स्वीकार किया | दोनों राजा के दरबार गये और पूरा किस्सा राजा को विस्तार से सुनाया गया |
राजा ने कुछ देर सोचा और विचार कर तय किया कि राहगीर ही गलत हैं क्यूंकि भिखारी को तो आधे धन की भी लालसा नहीं थी वो तो राजकीय विभाग में मुहरे देने जा रहा था | जिस तरह से रास्ते में राहगीर ने यह सौदेबाजी की हैं | मतलब वो इस बटुये में रखी धन राशि के बारे में जानता था | यह बटुआ उसी का हैं लेकिन उसके मन में लालच आ गया और उसने परिस्थिती का फायदा उठाने और अधिक धन पाने की लालच में यह सब बवंडर रचा | राजा ने उसे सबक सिखाने के लिए न्याय के रूप में बटुये का आधा धन भिखारी को दिया और आधा राजकोष में दे दिया | और उस राहगीर से कह दिया गया कि यह बटुआ उसका नहीं हैं | जब उसका बटुआ मिलेगा उसे दे दिया जायेगा | इस तरह राहगीर को लालच के फलस्वरूप खुद का धन भी वापस ना मिला |
इसलिए बड़े बुजुर्ग कहते हैं लालच बुरी बला (Lalach Buri Bala Hain) हैं |किसी भी चीज को पाने की मंशा में अच्छे बुरे का ध्यान न रखना ही लालच का भाव हैं | जिस वस्तु पर आपका कोई अधिकार ना हो उसे पाने की चाह भी लालच का स्वरूप हैं | इस भाव से सदैव दूर रहे क्यूंकि यह विनाश का रास्ता हैं | जिस प्रकार कोरवो को सत्ता का लालच था और उन्होंने उसे पाने के लिए कई षड्यंत्र रचे लेकिन अंत में उन्हें जीवन से भी हाथ धोना पड़ा |
लालच का भाव ही मनुष्य को अहित के मार्ग पर ले जाता हैं | लालच में उसे सही गलत का भान नहीं रहता | उसे बस पाने की चाह होती हैं | ऐसे में वो एक अंधे रास्ते पर इतना अन्दर तक चला जाता हैं कि जब उसे गलती का पता चलता हैं तब वो वापस भी नहीं लौट पाता |
इसलिए कहते हैं लालच बुरी बला हैं कहावते अपने छोटे स्वरूप में भी अथाह ज्ञान को लिए होती हैं | इस तरह कहावतो पर बनी कहानी पढ़कर या सुनाकर आप अपने बच्चो को सही गलत का ज्ञान दे सकते हैं | ऐसी कहानियाँ सदैव यादों में जगह बना लेती हैं और मनुष्य को मार्गदर्शन देती हैं |
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Karnika
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Is tarah ki chhoti chhoti prernaspad kahania jeevan ko uchaiyon ki oar le jati hain. Aisi sankshipt aur sargarbhit kahani likhne wali DEVI G ko mera Namaskar hain.