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मीरा के पद (दोहे),भावार्थ, हिंदी अर्थ सहित जयंती 2024 एवं जीवन परिचय, Meera ke pad

मीराबाई के पद या मीरा के दोहे हिंदी अर्थ सहित, जयंती 2024, एवं जीवन परिचय ( Meera Bai Ke Pad or Dohe Meaning Jeevani, Jayanti In Hindi)

कृष्ण भक्ति में लीन रहने वाली मीरा बाई के जीवन में भक्ति के अलावा किसी को स्थान प्राप्त नहीं था. मीरा के जीवन का एक मात्र लक्ष्य था, अपने कृष्ण को याद करना, उन्हें प्रेम करना, उन्ही से सुख दुःख कहना. अपना सर्वस्व उन्होंने श्री कृष्ण को ही मान लिया था.

मीरा बाई जयंती कब मनाई जाती हैं ? (Meera Bai Jayanti 2024)

आश्विन की पूर्णिमा के दिन मीरा बाई का जन्म माना जाता हैं, इसे मीरा जयंती कहते हैं. यह प्रचंड कृष्ण भक्त थी, जिनकी स्वयम कृष्ण रक्षा करते थे. यह पर्व शरद पूर्णिमा को मनाया जाता हैं. शरद पूर्णिमा को महा रास दिवस भी कहा जाता हैं. इस दिन संसार श्री कृष्ण की लीलाओं का गुणगान करता हैं. कृष्ण भक्ति में मीरा का नाम न हो यह मुमकिन नहीं. मीरा बाई की रचनायें श्री कृष्ण के चरित्र का जो वर्णन करती हैं श्रोता का दिल भावुक हो उठता हैं.

2024 में मीरा बाई जयंती 17 अक्टूबर दिन गुरुवार को मनाई जाएगी.

मीरा बाई जीवन परिचय  (Meera Bai Jeevan Parichay):

क्र.बिंदुमीरा बाई जीवन परिचय
1जन्म1504 जोधपुर कुरकी नामक गाँव
2मृत्यु1557
3पतिभोजराज
4गुरुसंत रविदास
5रचनामीरांबाई की पदावली, राग सोरठ के पद, राग गोविंद, गीत गोविंद टीका, नरसी का मायरा

मीरा के जीवन काल से जुड़ी कई कहानियाँ हैं जो आपने सुनी अथवा पढ़ी होंगी. ऐसी ही एक कहानी यहाँ लिखी गई हैं.

मीरा बाई की कहानी  (Meera Bai Story )

मीरा बाई सदैव कृष्ण भक्ति में तल्लीन रहती थी. उनका विवाह महाराणा भोजराज के साथ हुआ था. विवाह के बाद भी मीरा के जीवन में कृष्ण भक्ति सर्वोपरि थी. उनका यह व्यवहार उनके ससुराल के लोगो को कतई पसंद नहीं था. वे ना ना प्रकार से मीरा को प्रताड़ित करते कि वे कृष्ण भक्ति छोड़ दे. लेकिन मीरा ने कभी ना सुनी.

मीरा को घर के सभी कार्य करने पड़ते थे. एक बार मीरा को सत्संग में जाना था, पर घर छोड़ वो जा नहीं सकती थी. तब ही भगवान् कृष्ण मीरा का रूप रख कर आये और उसके घर के सभी कार्य करने लगे और मीरा कृष्ण भक्ति के लिए चली गई और इस तरह भक्ति में लीन हो गई कि उसके प्राण ही भगवान में समा गये. उनके मृत शरीर का अन्य लोगो ने दहा संस्कार कर दिया. और दूसरी तरफ भगवान् कृष्ण मीरा बन उनके घर के कार्य में लगे रहे. यह देखा माता रुक्मणि को चिंता हुई और वे कृष्ण के सामने विनती करने लगी कि हे प्रभु ! मुझसे क्या भूल हुई हैं जो आप मुझे छोड़ यहाँ आ गये. तब कृष्ण ने माता रुक्मणि से कहा कि शमशान जाओं और मीरा की सभी अस्थियाँ लाकर उन्हें पुन : जीवित करो. तब ही मैं यहाँ से निकल सकता हूँ. माता ने कहा – मुझे कैसे समझ आएगा कि कौनसी अस्थि मीरा की हैं. श्री कृष्ण ने उत्तर दिया – जिस अस्थि में से तुम्हे मेरा नाम सुनाई देगा, वो सभी अस्थियाँ तुम एकत्र कर लेना. माता रुक्मणि ने वही किया. मीरा के अंतःकरण में समाहित भगवान् का नाम उसकी एक-एक अस्थि में सुनाई पड़ रहा था. उन अस्थियों को एकत्र कर माता ने उनका अमृत से स्नान कराया और उन्हें जीवन दान दिया. इसके बाद भगवान् कृष्ण अपने धाम वापस लौट सके.

मीरा की भक्ति में इतनी शक्ति थी, कि उनके लिए स्वयम भगवान ने घर के छोटे- छोटे कार्य किये.

मीरा के पद

मीरा के पद/ दोहे हिंदी अर्थ सहित (Meera Bai Ke Pad or Dohe Meaning In Hindi)

भक्ति का ही रूप हैं वो हैं प्रेम. बस इस प्रेम को दर्शाने का तरीका भिन्न हैं. कई लोग इसे पूजा पाठ, सत्संग एवम दान दक्षिणा से करते हैं और कई इसे भजन, दोहे के रूप में भगवान् के जीवन की लीलाओं का वर्णन करते हुए करते हैं. मीरा की भक्ति उनके भजनों में समाई हुई हैं.

मनमोहन कान्हा विनती करूं दिन रैन
राह तके मेरे नैन
अब तो दरस देदो कुञ्ज बिहारी
मनवा हैं बैचेन
नेह की डोरी तुम संग जोरी
हमसे तो नहीं जावेगी तोड़ी
हे मुरली धर कृष्ण मुरारी
तनिक ना आवे चैन
राह तके मेरे नैन ……..

मै म्हारों सुपनमा
लिसतें तो मै म्हारों सुपनमा

 अर्थ:
मीरा अपने भजन में भगवान् कृष्ण से विनती कर रही हैं कि हे कृष्ण ! मैं दिन रात तुम्हारी राह देख रही हूँ. मेरी आँखे तुम्हे देखने के लिए बैचेन हैं मेरे मन को भी तुम्हारे दर्शन की ही ललक हैं.मैंने अपने नैन केवल तुम से मिलाये हैं अब ये मिलन टूट नहीं पायेगा. तुम आकर दर्शन दे जाओं तब ही मिलेगा मुझे चैन.

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  1. मीरा के पद दोहे

मतवारो बादल आयें रे
हरी को संदेसों कछु न लायें रे
दादुर मोर पापीहा बोले
कोएल सबद सुनावे रे
काली अंधियारी बिजली चमके
बिरहिना अती दर्पाये रे
मन रे परसी हरी के चरण
लिसतें तो मन रे परसी हरी के चरण

अर्थ

बादल गरज गरज कर आ रहे हैं लेकिन हरी का कोई संदेशा नहीं लाये. वर्षा ऋतू में मौर ने भी पंख फैला लिए हैं और कोयल भी मधुर आवाज में गा रही हैं.और काले बदलो की अंधियारी में बिजली की आवाज से कलेजा रोने को हैं. विरह की आग को बढ़ा रहा हैं. मन बस हरी के दर्शन का प्यासा हैं.

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  1. मीरा के पद दोहे

मै म्हारो सुपनमा पर्नारे दीनानाथ
छप्पन कोटा जाना पधराया दूल्हो श्री बृजनाथ
सुपनमा तोरण बंध्या री सुपनमा गया हाथ
सुपनमा म्हारे परण गया पाया अचल सुहाग
मीरा रो गिरीधर नी प्यारी पूरब जनम रो हाड
मतवारो बादल आयो रे
लिसतें तो मतवारो बादल आयो रे

  • मीरा के पद दोहे हिंदी अर्थ
    मीरा कहती हैं कि उनके सपने में श्री कृष्ण दुल्हे राजा बनकर पधारे. सपने में तोरण बंधा था जिसे हाथो से तोड़ा दीनानाथ ने.सपने में मीरा ने कृष्ण के पैर छुये और सुहागन बनी.

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  1. मीरा के पद दोहे

मन रे परसी हरी के चरण
सुभाग शीतल कमल कोमल
त्रिविध ज्वालाहरण
जिन चरण ध्रुव अटल किन्ही रख अपनी शरण
जिन चरण ब्रह्माण भेद्यो नख शिखा सिर धरण
जिन चरण प्रभु परसी लीन्हे करी गौतम करण
जिन चरण फनी नाग नाथ्यो गोप लीला करण
जिन चरण गोबर्धन धर्यो गर्व माधव हरण
दासी मीरा लाल गिरीधर आगम तारण तारण
मीरा मगन भाई
लिसतें तो मीरा मगनभाई

  • मीरा के पद दोहे हिंदी अर्थ
    मीरा का मन सदैव कृष्ण के चरणों में लीन हैं.ऐसे कृष्ण जिनका मन शीतल हैं. जिनके चरणों में ध्रुव हैं. जिनके चरणों में पूरा ब्रह्माण हैं पृथ्वी हैं. जिनके चरणों में शेष नाग हैं. जिन्होंने गोबर धन को उठ लिया था. ये दासी मीरा का मन उसी हरी के चरणों, उनकी लीलाओं में लगा हुआ हैं.

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  1. मीरा के पद दोहे

पायो जी मैंने राम रतन धन पायो ..

वस्तु अमोलिक दी मेरे सतगुरु किरपा करि अपनायो. पायो जी मैंने…
जनम जनम की पूंजी पाई जग में सभी खोवायो. पायो जी मैंने…
खरचै न खूटै चोर न लूटै दिन दिन बढ़त सवायो. पायो जी मैंने…
सत की नाव खेवटिया सतगुरु भवसागर तर आयो. पायो जी मैंने…
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर हरष हरष जस गायो. पायो जी मैंने…

  • मीरा के पद दोहे हिंदी अर्थ

मीरा ने रान नाम का एक अलोकिक धन प्राप्त कर लिया हैं. जिसे उसके गुरु रविदास जी ने दिया हैं.इस एक नाम को पाकर उसने कई जन्मो का धन एवम सभी का प्रेम पा लिया हैं.यह धन ना खर्चे से कम होता हैं और ना ही चोरी होता हैं यह धन तो दिन रात बढ़ता ही जा रहा हैं. यह ऐसा धन हैं जो मोक्ष का मार्ग दिखता हैं. इस नाम को अर्थात श्री कृष्ण को पाकर मीरा ने ख़ुशी – ख़ुशी से उनका गुणगान गाया.

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  1. मीरा के पद दोहे

मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरों न कोई|

जाके सिर मोर मुकट मेरो पति सोई||

  • मीरा के पद दोहे हिंदी अर्थ

मीरा कहती हैं – मेरे तो बस श्री कृष्ण हैं जिसने पर्वत को ऊँगली पर उठाकर गिरधर नाम पाया. उसके अलावा मैं किसी को अपना नहीं मानती. जिसके सिर पर मौर का पंख का मुकुट हैं वही हैं मेरे पति.

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  1. मीरा के पद दोहे

तात मात भ्रात बंधु आपनो न कोई|

छाड़ि दई कुलकि कानि कहा करिहै कोई||

  • मीरा के पद दोहे हिंदी अर्थ

मेरे ना पिता हैं, ना माता, ना ही कोई भाई पर मेरे हैं गिरधर गोपाल.

मीरा बाई का शुरूआती जीवन

मीरा बाई का जन्म 1498 ई. में राजस्थान में मेड़ता के पास कुकड़ी गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम रतन सिंह था। उनकी माता का देहांत बहुत पहले ही हो गया था। जिसके कारण उन्होंने अपना पूरी बचपन अकेले ही बिताया। क्योंकि मां के जाने के बाद पिता के पास बिल्कुल समय नहीं था। ऐसे में वो अपने दादा के पास मेड़ता जाकर रहने लगी थ। मेड़ता में अपने दादा के साथ रहते-रहते ही उन्हें स्न्हे और धर्म-कर्म का ज्ञान मिला। जिसके बाद वो गिरधर की भक्ति में लीन हो गई। वह गिरधर की मूर्ति को उठाना, स्नान कराना, भोजन कराना, पूजन कराना, सुलाना आदि सारा काम किया करती थी। ऐसा करते-करते वो धार्मिकता के काफी करीब आ गई थी। कुछ समय बाद उनके दादा की मृत्यृ हो गई और वो अपने ताऊजी के यहां रहने लगी।

मीरा बाई का विवाह

मीरा बाई का विवाह मेड़ता के प्रसिद्ध माराणा सांगा के बड़े बेटे भोजराज के साथ मीरा बाई का विवाह हुआ। लेकिन ये खुशी ज्यादा समय तक नहीं टीक पाई उनके पति का निधन हो गया। जिसके बाद उन्होंने अपनी मां द्वारा बोली हुई बात को सच माना, वो बात थी, गिरधर तुम्हारा दूल्हा है इसको मानकर वो उनकी भक्ति में लीन हो गई।

मीरा बाई का अंतिम समय

नाना प्रकार के अत्याचारों से तंग आकर मीरा अपने चाचा वीरमदेवजी के पास गई। जिसके बाद उन्होंने तीर्थ यात्रा करनी शुरू की। उन्होंने उस तीर्थयात्रा में गिरधर के कई मंदिर घूमें। इसके बाद वो वृंदावन घूमने के बाद द्वारिका पहुंची और भक्ती में लीन होकर सारा समय गिरधर के बिताने लगी। सन् 1546 में द्वारिका में रणछोड़ मूर्ति में समा गई और दुनिया से चली गई।

FAQ

Q- मीरा बाईका जन्म कब हुआ?

Ans- ऐसा कहा जाता है कि, मीरा बाई का जन्म 1498 ई. में हुआ।

Q- मीरा बाई की मां का निधन कब हुआ?

Ans- मीरा बाई की मां का निधन बहुत समय पहले ही हो गया था।

Q- मीरा बाई किसकी भक्ति में लीन रहती थी?

Ans- मीरा बाई गिरधर की भक्ति में लीन रहती थी।

Q- क्या मीरा बाई का हुआ था विवाह?

Ans- जी हां, मीरा बाई का हुआ था विवाह।

Q- मीरा बाई ने कहां छोड़े अपने प्राण?

Ans- मीरा बाई ने द्वारिका में छोड़े प्राण।

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Karnika
कर्णिका दीपावली की एडिटर हैं इनकी रूचि हिंदी भाषा में हैं| यह दीपावली के लिए बहुत से विषयों पर लिखती हैं | यह दीपावली की SEO एक्सपर्ट हैं,इनके प्रयासों के कारण दीपावली एक सफल हिंदी वेबसाइट बनी हैं

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