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नवरात्री 2024, नव दुर्गा पर्व महत्व, कथा पूजन | Nav Durga Festival in hindi

नवरात्री 2024, नव दुर्गा पर्व महत्व कथा पूजन एवम शायरी, कब है कब से शुरू है, (Navratri, Nav Durga Festival 2024 date, Ghatasthapana, Pooja Vidhi, significance, Kavita in hindi)

दुर्गा पूजा या नवरात्री हिन्दुओ के द्वारा मनाया जाने वाला एक बहुत ही महत्वपूर्ण त्योहार है. नवरात्री में हिन्दू देवी माँ दुर्गा की पूजा की जाती है. नवरात्री का मतलब नौ रातें, इस दौरान दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है. यह भारत के अलावा नेपाल में भी मनाया जाता है. दुर्गा पूजा को लेकर अलग अलग लोगो की अलग अलग मान्यताये है.

Navratri Nav Durga Roop Poojan Vidhi Mahatv in hindi

नवरात्री 2024

हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, वर्ष मे 4 नवरात्री होती है. 2 मुख्य नवरात्रि तथा 2 गुप्त नवरात्रि. 2 मुख्य नवरात्रि में से एक तो जो पित्र पक्ष के समाप्त होने पर आश्विन मास मे प्रारंभ होती है तथा दूसरी जो की हिंदू नववर्ष चैत्र मे प्रारंभ होती है. मान्यता है कि गुप्त नवरात्रि का महत्व शारदीय नवरात्रि और चैत्र नवरात्रि के बराबर ही होता है। खासकर तंत्र मंत्र की साधना करने वाले लोगों के लिए गुप्त नवरात्र बेहद खास होती हैं।चरों नवरात्री की जानकारी कुछ इस प्रकार है:

  • शारदीय नवरात्री – यह मुख्य नवरात्री है, जिसे महा नवरात्री भी कहते है. यह नवरात्री आश्विन शुक्ल पक्ष की पड़वा से शुरू होती हैं. एवम नौ दिवस तक मनाया जाती हैं. नवरात्री के 10 वें दिन दशहरा होता है, उसके 20 दिन बाद दिवाली का त्यौहार मनाया जाता है. शरद माह में आती है, इसलिए इसे शारदीय नवरात्री भी कहते है. 2024 में 3 अक्टूबर से आरंभ होगी और 11 अक्टूबर तक चलेगी।
  • चैत्र नवरात्री – इसे बसंत नवरात्री भी कहते है. चैत्र माह के शुक्ल पक्ष में आती है. इस नवरात्री के साथ हिन्दू कैलेंडर के अनुसार नए साल की शुरुवात होती है. यह मार्च अप्रैल के समय आती है. इस नवरात्री के नौवें दिन, रामनवमी का त्यौहार मनाया जाता है. इस लिए इसे राम नवरात्री नाम से भी जाना जाता है. जो रीती, पूजा शरद नवरात्री में होती है, वो इस नवरात्री में भी होती है. यह नवरात्री उत्तरी भारत में बहुत प्रसिद्ध है. महाराष्ट्र में गुडी पड़वा एवं आंध्रप्रदेश में उगडी के साथ शुरू होती है. इस साल 2024 में चैत्र नवरात्री 9 अप्रैल से शुरू होकर 17 अप्रैल को समाप्त होगी।
  • माघ नवरात्री – यह गुप्त नवरात्री माघ महीने मतलब जनवरी-फ़रवरी महीने के समय आती है. यह नवरात्री बहुत कम स्थानों में जानी जाती है, उत्तरी भारत के कुछ इलाके जैसे पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड में इसे मनाते है. इस साल 2024 में यह गुप्त नवरात्री 10 फरवरी से 18 फरवरी तक चलेगी.  
  • अषाढ़ नवरात्री – यह असाढ़ महीने में आती है, यह भी गुप्त नवरात्री है, जो जून-जुलाई में आती है. इसे गायत्री या शाकम्भरी नवरात्री भी कहते है. इस साल 2024 06 जुलाई से शुरू होगी ओर 15 जुलाई को समाप्त होगी।
  • पौष नवरात्री – यह पौष महीने में आने वाली नवरात्री है, जो दिसम्बर-जनवरी के महीने में आती है.

वैसे इन सभी नवरात्रि मे जो आश्विन मास की नवरात्रि आती है, केवल उसी समय माँ दुर्गा की मूर्ति पूजा का महत्व ज्यादा है. इसी नवरात्रि मे विभिन्न स्थानो पर माँ दुर्गा की सुंदर सुंदर प्रतिमा बनाकर विराजित की जाती है तथा उनका विधि पूर्वक पूजन किया जाता है. 

नवरात्री नवदुर्गा पूजा महत्व (Navratri Nav Durga Puja Significance)

दुर्गा पूजा को मनाए जाने के कारण भी अलग-अलग है. कई लोगो की मान्यता है, कि देवी दुर्गा ने इस समय महिशासुर नामक राक्षस का वध किया था. इसलिए बुराई पर अच्छाई के प्रतीक के रूप मे दुर्गा पूजा मनाई जाती है. कुछ लोगो की मान्यता है, कि वर्ष मे यही वह 9 दिन होते है, जब माता अपने मायके (पिता के घर) आती है, इसलिए साल के यह 9 दिन उत्सव के होते है.

नवदुर्गा की यह पूजा भारत के कई राज्यो जैसे बंगाल मे बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है. बंगाल की मूर्तिया तथा दुर्गा पूजा को लेकर सारे इंतजाम तो भारत के साथ साथ अन्य देशो मे भी बहुत ही प्रसिद्ध है.

वैसे दुर्गा पूजा किसी भी राज्य मे हो तथा इसके मनाए जाने का कारण कुछ भी हो, परंतु एक चीज सभी जगह समान होती है. इन 9 दिनो मे देवी के 9 रूपो की पूजा की जाती है .

साल 2024 में नवरात्रि कब  हैं (Navratri Nav Durga Puja 2024 Date)

नवरात्री में नौ दिनों तक दुर्गा, लक्ष्मी एवम सरस्वती देवी का पूजन किया जाता हैं. इस साल यानि 2024 में नवरात्री 3 अक्टूबर से 11 अक्टूबर तक है.

दिनों के नाम नवरात्री दिन से देवी का महत्त्वरंग का महत्त्व (Colors)किन देवी की पूजा की जाती है?
प्रतिप्रदा (नवरात्री का पहला दिन)शैलपुत्री (Shailaputri Maa)Red (लाल)माता शैलपुत्री का पूजन
द्वितीया (नवरात्री का दूसरा दिन)ब्रांहमचारिणी (Bharmacharini)Royal Blue (नीला)माता ब्रांहमचारिणी का पूजन
तृतीया (नवरात्री का तीसरा दिन )चंद्रघंटा (Chandraghanta)पीला (Yellow)माता चंद्रघंटा का पूजन
चतुर्थी (नवरात्री का चौथा दिन )कृषमांडा (Kushmanda)हरा (Green)भौम पूजन
पंचमी (नवरात्री का पाचवां दिन )स्कंदमाता (Skandamata)ग्रे (Gray)स्कंदमाता का पूजन
षष्टि (नवरात्री का छटवां दिन )कात्यानि (Katyayani)नारंगी (Orange)सरस्वती आह्वान और माता कात्यायनी पूजन
सप्तमी (नवरात्री का सातवाँ दिन)कालरात्री (Kaalratri)सफ़ेद (White)सरस्वती पूजा, माता कालरात्रि पूजन, उत्सव पूजा
दुर्गा अष्टमी (नवरात्री का आठवां दिन)महागौरी  (Maha Gauri)गुलाबी (Pink)सरस्वती माता पूजन,महागौरी पूजन, संधि पूजा
नवमी (नवरात्री का नवां दिन)सिध्दीदात्री (Siddhidatri)आसमानी नीला (Sky Blue)आयुध पूजा, कन्या पूजा

नवदुर्गा का नाम नवरात्री के नौ अवतार (Navratri Nav Durga Roop Story)

  • माता शैलपुत्री – प्रथम दिन माता शैलपुत्री की पूजा का होता है. यह देवी दुर्गा का ही एक रूप है. माता ने अपने इस रूप मे शैलपुत्र हिमालय के घर जन्म लिया था. माता अपने इस रूप मे वृषभ पर विराजमान है. उनके एक हाथ मे त्रिशूल और दूसरे हाथ मे कमल का फूल है . मान्यता यह है की माता दुर्गा के इस रूप की पूजा अच्छी सेहत के लिए विशेष लाभदायी है.
  • माता ब्रांहमचारिणी – दूसरा दिन माता ब्रहमचारिणी की पूजा का होता है. माता ने अपने इस रूप मे भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तप किया था . देवी ने अपने इस रूप मे एक हाथ मे कमंडल और दूसरे हाथ मे जप की माला धारण किये हुये है. इस दिन माता को शक्कर का भोग लगाया जाता है तथा इसी का दान किया जाता है. माता के इस रूप का पूजन दीर्घ आयु प्राप्त करने के लिए किया जाता है.
  • माता चंद्रघंटा तीसरे दिन माता चंद्रघंटा की पूजा की जाती है. कहा जाता है की यह देवी का उग्र रूप है, परंतु फिर भी देवी के इस रूप से भक्तो को सभी कष्टो से मुक्ति मिलती है . माँ के इस रूप मे 10 हाथ है तथा सभी हाथो मे माँ ने शस्त्र धारण किए हुये है. इन्हे देखकर ऐसा लगता है कि माँ यूध्द के लिए तैयार है.
  • माता कृषमांडा चौथा दिन होता है देवी कृषमांडा के पूजन का . ऐसा कहा जाता है कि माता के इस रूप मे हसी से ब्रहमांड की शुरवात हुई थी. देवी के इस रूप मे 8 हाथ है और उन्होने अपने इन 8 हाथो मे कमंडल, धनुष बांड, कमल, अमृत कलश, चक्र तथा गदा लिए हुये है. माता के आठवे हाथ मे इच्छा अनुसार वर देने वाली जप की माला विद्यमान है अर्थात यह माला माता के भक्तो को उनकी इच्छा अनुसार वरदान प्रदान करती है.
  • माता स्कंदमाता नवदुर्गा मे पाचवे दिन देवी के इसी रूप की पूजा होती है. माता के इस रूप मे पूजन से उनके भक्तो को सारे पापो से मुक्ति मिलती है तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है . नवरात्रि के इस दिन माता स्कंदमता को अलसी नामक औषधि अर्पण करने से मौसम मे होने वाली बीमारी नहीं होती और इंसान स्वस्थ रहता है. माता के इस रूप मे माता कमल पर विराजमान है. माता अपने इस रूप मे 4 भुजाओ वाली है वे अपने 2 हाथो मे कमल लिए हुये है, एक हाथ मे माला लिए हुये है तथा एक हाथ से भक्तो को आशीर्वाद दे रही है.
  • माता कात्यानि छटे दिन देवी के इस रूप की पूजा की जाती है. देवी के इस रूप को कत्यान ऋषि ने अपनी घोर तपस्या से प्राप्त किया था तथा देवी ने अपने इसी रूप मे महिशासुर का वध किया था. कहा जाता है की कृष्ण भगवान को अपने पति के रूप मे पाने के लिए गोपियो ने देवी के इसी रूप का पूजन किया था. अगर कोई भी लड़की देवी के इसरूप की सच्चे मन से पूजा करे, तो उसके विवाह मे आने वाली सभी बधाये दूर होती है और उसे मनचाहा वर मिलता है.
  • माता कालरात्री सातवे दिन देवी के इस रूप की पूजा जाती है, परंतु कई लोग देवी कालरात्रि को कालिका देवी समझ लेते है पर ऐसा नहीं है दोनों ही देवी के अलग अलग रूप है . यह देवी का बहुत ही भयानक रूप है देवी अपने इस रूप मे एक हाथ मे त्रिशूल और एक हाथ मे खड़ग लिए हुये है. देवी ने अपने गले मे भी खडगो की माला पहनी हुई है . देवी के इस रूप मे पूजन से सभी विध्वंस शक्तियों का नाश होता है.
  • माता महागौरी आठवे दिन माता गौरी की पूजा का विधान है. यह माता की बहुत ही सौम्य, सरल तथा सुंदर रूप है. माता अपने इस रूप मे वृषभ पर विराजमान है. उन्होने हाथो मे त्रिशूल और डमरू लिया हुआ है तथा अन्य 2 हाथो से वह अपने भक्तो को वरदान और अभयदान दे रही हैं. मान्यता यह है की माता के इस रूप मे भगवान शंकर ने माता का गंगाजल से अभिषेक किया था, इसलिए माता को यह गौर वर्ण प्राप्त हुआ.
  • माता सिध्दीदात्री – नौवे दिन देवी सिध्दीदात्री की पूजा की जाती है. इन्ही के पूजन से नवदुर्गा की पूजा सम्पन्न होती है तथा भक्तो को समस्त सिद्धधी प्राप्त होती है . माता के इस रूप मे माता कमल पर विराजमान है. पर कहा जाता है कि माता का वाहन सिह है. इस रूप मे माता के 4 हाथ है इन 4 हाथो मे माता ने शंख, चक्र, गदा तथा कमल लिया हुआ है.

नवदुर्गा मे पूजन की विधी (Navratri Nav Durga Pooja Vidhi)

कहा जाता है की देवी का पूजन बहुत ही सावधानी पूर्वक करना चाहिए, अगर देवी के पूजन मे कोई भी गलती हुई तो देवी तुरंत नाराज हो जाती है.  इसीलिए जब भी किसी पंडाल मे देवी विराजमान की जाती है, तो पंडितो के समूह द्वारा देवी के पूजन का पूरा ध्यान रखा जाता है. ब्राह्मणो द्वारा 9 दिनो तक सारे विधिविधान तथा मंत्रोउच्चार बहुत ही सावधानी पूर्वक किए जाते है.  जो लोग घरो मे देवी को विराजमान करते है, वह भी पूजा मे सारी सावधानी करते है.

नवरात्री का पहला दिन – नवरात्री घट स्थापना तथा कलश पूजन (Navratri Ghatasthapana and Kalash sthapana vidhi):

नवरात्री का पहला दिन बहुत मुख्य होता है, इस दिन से नौ दिन तक देवी की विशेष पूजा की जाती है. नवरात्री के पहले दिन घट स्थापना होती है, ये दुर्गा के पंडाल या जो लोग चाहें उनके घर में भी स्थापित कर सकते है. घटस्थापना अमावस्या या रात के समय नहीं की जाती है. इसके सबसे अच्छा समय प्रतिप्रदा दिन का पहला पखवाड़ा होता है. लेकिन जब कुछ कारणों से ये समय घटस्थापना नहीं हो पाती है तब अभिजित मुहूर्त में उसे स्थापित किया जाता है. कहते है नक्षत्र चित्र एवं वैधृति योग में घटस्थापना नहीं करनी चाहिए, लेकिन ये पूरी तरह से मना भी नहीं है.

घटस्थापना के लिए जरुरी वस्तुएं (Navratri Ghatasthapana and Kalash sthapana vidhi):

  • एक चौड़ा, खुला हुआ मिट्टी का गमला या बर्तन
  • धान्य बोने के लिए साफ मिट्टी
  • कलश के लिए ताम्बे या पीतल का लौटा
  • गंगा जल या कोई भी साफ पानी
  • मोली
  • इत्र
  • सुपारी
  • सिक्के
  • 5 केले या अशोक के पत्ते
  • कलश को ढकने के लिए एक ढक्कन
  • अक्षत (चावल)
  • नारियल
  • लाल कपड़ा, नारियल में लपेटने के लिए
  • फूल या माला
  • दूर्वा

कलश पूजा विधि (Kalash Puja vidhi):-

  • नवरात्रि के पहले दिन स्नान आदि से निवृत्त होकर पूजा का विधान किया जाता है.
  • पूजन के शुरवात मे गणेश जी का आह्वान किया जाता है. माता के नाम से अखंड जोत जलायी जाती है.
  • अब समय होता है कलश स्थापना का. कलश स्थापना के लिए एक बड़ा मिट्टी का बर्तन लें, जिसमें कलश भी आसानी से रखा जा सके.
  • अब इस बर्तन में मिट्टी की एक परत रखें, फिर इसमें बीज डालें.
  • अब फिर से मिट्टी की परत रखें, और फिर उपर से बीज डालें. अब इसके बाद आखिरी तीसरी परत रखें और उसके उपर बीज रखें. अगर जरूरत हो तो हल्का पानी डालने, ताकि मिट्टी सेट हो जाये.
  • फिर एक तांबे के लोटे के उपरी हिस्से में मोली का धागा बांधे, इसमें पानी भरकर उसमे कुछ बुँदे पवित्र जल (गंगाजल, नर्मदाजल) डालते है, फिर उसमे सवा रुपया, दूर्वा, सुपारी, इत्र, अक्षत डालें.
  • फिर इस कलश मे अशोक के 5 पत्ते या आम के 5 पत्ते लगाकर इस पर नारियल रखा जाता है. नारियल को लाल कपड़े से लपेट लें और उसे मौली से बाँध दें.
  • अब इस कलश को मिट्टी के उस बर्तन के बीचों बीच रखें.

कलश स्थापना के बाद बारी आती है घट स्थापना की. परंतु जो लोग घट स्थापना करते है उन्हे विशेष पूजन के साथ साथ विशेष सावधानी भी रखनी पड़ती है. इसलिए हर कोई अपने घर मे देवी के घट की स्थापना नहीं करता. घट स्थापना के लिए कुछ  टोकरीयों मे मिट्टी भरकर माता के ज्वारे बोये जाते है तथा 9 दिन तक इनकी विशेष देखभाल की जाती है.

अब 9 दिन तक हर जगह अपने विधान के अनुसार देवी के 9 रूपो की पूजा की जाती है. कई लोग इन 9 दिनो तक व्रत रखते है, तो कुछ लोग निराहार रहते है. कहा जाता है कि जो लोग अपने घर देवी की ज्योत प्रज्वलित करते है, उन्हे अपना घर बंद करके बाहर नहीं जाना चाहिए या अगर बाहर जाए तो किसी को घर मे छोड़कर जाये.

अब इन नवरात्री के 9 दिनो तक हर कोई अपनी मान्यता अनुसार  देवी की पूजा विधि विधान से करता है परंतु अष्टमी तथा नवमी के दिन पूजा का अलग ही महत्व होता है.

अष्टमी नवमी के पूजन विधि एवम महत्त्व (Ashtami Navami Puja Vidhi and Mahatv) :

अलग अलग क्षेत्रों मे अष्टमी नवमी की पूजा के अलग अलग विधान है. कई जगह अष्टमी या नवमी पर कन्या पूजन का विधान है. तो कई जगह अष्टमी के दिन हवन पूजा या कुल देवी की पूजा की जाती है. दुर्गा पंडालों में अष्टमी के दिन हवन होता है, जो नवरात्री की समापन की भी पूजा होती है. इसे महाअष्टमी भी कहते है. यह व्रत का आखिरी दिन भी माना जाता है, कुछ लोग नवरात्री के पहले दिन और आखिरी दिन के रूप में अष्टमी का व्रत रखते है. बंगाल में इस दिन विशेष पूजा होती है.

अष्टमी या नवमी के दिन लोग अपने घरों में कन्या भोज का आयोजन करते है. घरो मे छोटी छोटी लड़कियो को बुलाकर उन्हे खाना खिलाया जाता है. कुछ लोग पूड़ी छोले तथा खीर खिलाते है, तो कुछ लोग हलवा पूड़ी खिलाते है, तो कुछ लोग दही चावल खिलाते है.  कन्याओ को देवी का स्वरूप मानकर उनका पूजन किया जाता है. मुख्य रूप से 9 कन्याओं का खाना खिलाना बहुत जरुरी माना जाता है. इसके बाद उन कन्याओं को चावल, गेहूं और उपहार स्वरुप पैसे, फल मीठा या कोई अन्य वस्तु देते है.

नवमी एवं दशहरा के दिन पंडालों में कन्या भोजन के साथ, बड़े बड़े भंडारे होते है. जिसमें सभी को भर पेट खिलाया जाता है. 

नवमी के दिन दुर्गा मूर्ति के साथ साथ कलश का भी विसर्जन पवित्र नदी में किया जाता है.

देश के विभिन्न क्षेत्र में नवरात्री का महत्व –

बंगाल मे इन आठ दिनो मे बड़े बड़े पंडालो मे देवी का पूजन सभी लोग साथ मिलकर करते है. बंगाल में दुर्गा पूजा का आयोजन होता है, जो सप्तमी से नवमी तक होता है. ये तीन दिन पूरा बंगाल दुर्गा पूजा में डूबा हुआ होता है. नवमी के अंतिम दिन पुष्पांजलि देते है और  महिलाए कुमकुम की होली खेलती है.

पंजाब में इसे नवरात्रा कहते है, जहाँ पहले सात दिन व्रत रखा जाता है. अष्टमी के दिन व्रत तोड़ते है, और कन्याओं को भोजन कराते है. उत्तरभारत में नवरात्री के मौके पर रामलीला का भी आयोजन होता है.

गुजरात, मुंबई में नवरात्री का मतलब होता है गरबा रास. गरबा, डांडिया रास का विशेष आयोजन छोटे बड़े सभी रूपों में किया जाता है. गुजरात में अब सरकार द्वारा नवरात्री फेस्टिवल सेलिब्रेशन का आयोजन होता है. जहाँ देश विदेश से लोग पहुँचते है और इस कार्यक्रम में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते है.

महाराष्ट्र में भी घटस्थपाना का विशेष महत्व है, लोग नवरात्री के पहले दिन इसकी विशेष तैयारी करते है.

तमिलनाडु में देवी के पैरों के निशान और देवी की तरह तरह की प्रतिमा को घर में स्थापित करते है, जिसे गोलू या कोलू कहा जाता है. यह एक झांकी की तरह प्रस्तुत की जाती है. सभी अपने रिश्तेदारों एवं पड़ोसियों को अपने घर इसे देखने के लिए आमंत्रित करते है. यहाँ रंगोली भी बनाई जाती है, जिस पर कलश स्थापना की जाती है. इस दौरान स्पेशल प्रसाद बनाया जाता है, जो सभी को बांटा जाता है. तमिलनाडु के साथ साथ केरल मे भी अष्टमी के दिन सरस्वती पूजन का महत्व है. इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा करते है, साथ ही सभी पुस्तक, वाद्य यंत्र की भी पूजा की जाती है. इसे दिन सभी मशीनों, गाड़ी की भी पूजा करते है, जिसे अयुध्य पूजा कहते है. तमिलनाडु के सभी मंदिरों में विशेष पूजा होती है.

कर्नाटका में नवमी के दिन अयुध्य पूजा होती है. यहाँ मैसूर में दशहरा के दिन मैसूर दशहरा मनाया जाता है, जो पूरी दुनिया में अतिप्रसिद्ध है. इस त्यौहार की शुरुवात वहां राजा वोदेयार ने 1610 में की थी. सन 2010 में मैसूर दशहरा ने 400 साल पुरे कर लिए थे, जिसे मौके पर हर साल से ज्यादा भव्य आयोजन किया गया था. वहां इस दिन से किसी भी अच्छे काम की शुरुवात की जाती है.

तेलंगाना में नवरात्री को बठुकम्मा के रूप में नौ दिन मनाया जाता है. यहाँ पहले तीन दिन देवी दुर्गा की पूजा होती है, उसके अगले तीन दिन देवी लक्ष्मी की फिर उसके अगले तीन दिन देवी सरस्वती की पूजा होती है.

भारत के कुछ हिस्सों में नवरात्री के दौरान माता काली को पशु बलि भी चढ़ाई जाती है. राजस्थान में रहने वाले राजपूत नवरात्री के समय अपनी कुल देवी को भैंस या बकरे की बलि देकर चढाते है. वहां ये अनुष्ठान ब्राह्मण पंडित के द्वारा करवाया जाता है. देश के अन्य स्थानों में रहने वाले राजपुताना लोग भी ये अनुष्ठान अपने स्थल में करते है. असम, पश्चिम बंगाल, नेपाल में बकरा या मुर्गे की बलि दी जाती है.  

जैसे कि कहा जाता है भारत मे अनेकता मे एकता देखने के लिए मिलती है. उसी प्रकार देवी की पूजा जिस किसी भी रूप मे हो, चाहे किसी भी तरीके से हो, सबका उद्देश्य एक ही रहता है. सबकी कामना यही रहती है, कि  देवी को प्रसन्न करके मनवांछित वरदान कैसे पाया जाए या अपने कष्टो को किस तरह दूर किया जाए.

नवदुर्गा नव रात्रि शायरी कविता (Nav Ratri Nav Durga Shayari and Poem)

  • माँ अम्बे जग दम्बे पधारे म्हारे देश लेकर आई खुशियाँ धरकर सुंदर वेश हो म्हारे अँगना सत्कर्मो की बौछार हे मैया दे बस जीवन में यही उपहार
  • सिंह पर सवार आई मैया प्यार और दुलार लाई मैया करते माँ तेरा वंदन चढ़ाकर पुष्प सुगंधित चन्दन
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FAQ

Q : नवरात्रि में किसकी पूजा की जाती है ?

Ans : दुर्गा माता की

Q : चैत्र नवरात्रि 2024 में कब है ?

Ans : चैत्र नवरात्रि 9 अप्रैल से 17 अप्रैल तक है.

Q : अश्विन माह नवरात्रि 2024 में कब है ?

Ans : कुमार की नवरात्रि 3 अक्टूबर से 11 अक्टूबर तक है

Q : नवरात्रि कहां – कहां मनाई जाती है ?

Ans : यह मुख्य रूप से उत्तर भारत, पश्चिम बंगाल एवं गुजरात में मनाई जाती है.

Q : नवरात्रि के 9 दिनों का महत्त्व है ?

Ans : माता दुर्गा जी के 9 अवतार को 9 दिनों के रूप में पूजा की जाती है.

Q : नवरात्रि की पूजा कैसे की जाती है ?

Ans : इन दिनों में लोग उपवास रखते हैं और दुर्गा जी की आराधना करते हैं.

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