पर्युषण महापर्व, संवत्सरी प्रतिक्रमण महत्व एवम क्षमावाणी संदेश ( Paryushan Mahaparva Daslakshana or Samvatsari Pratikraman (Kshama Vani Parva) 2022 date in hindi)
पर्युषण पर्व वर्ष में तीन बार मनाया जाता है, लेकिन चौमासे में मनाये जाने वाले पर्युषण को अधिक श्रेष्ठ माना जाता हैं. जैन समाज में व्रत का महत्व सबसे अधिक होता हैं नियम, कायदों में यह धर्म सबसे उच्च स्थान पर आसीन हैं. मनुष्य जाति को संतुलित करने हेतु ही धार्मिक नियम बनाये जाते हैं. इन नियमो में जैन धर्म में बहुत अधिक कठोर नियमो का पालन किया जाता हैं. जैन पर्व में पर्युषण पर्व का बहुत अधिक महत्व होता हैं. पुरे समाज के साथ मिलकर नियमो के साथ इस पर्व को मनाया जाता हैं. जैन धर्म में सादगी पूर्ण , अहिंसावादी जीवन के लिए प्रेरित किया जाता हैं.यह जीवन के उपवास ही होते हैं जिन्हें जीवन में बनाये रखने के लिए तप की आवश्यक्ता होती हैं और तप का मार्ग सहज नहीं होता. तप के लिए मनुष्य के शरीर के साथ आत्मा का शुद्ध होना आवश्यक हैं आत्मा शुद्धि के लिए जीवन में नियमो का होना आवश्यक है. पर्युषण के दिन कई नियमो को अपने अंदर लिए हुए होते हैं जो मनुष्य को सद्मार्ग दिखाते हैं.

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पर्युषण पर्व और 2022 कब मनाया जाता हैं ? (Paryushan Mahaparva or Samvatsari Pratikraman Dates)
जैन धर्म में दो मुख्य उप जाति होती हैं, जिनमे श्वेताम्बर एवम दिगंबर जैन शामिल हैं. यह दोनों ही जैन पर्युषण पर्व को मानते हैं, लेकिन समय काल अलग- अलग होता हैं. पर्युषण पर्व 8 दिन का त्यौहार होता है, जो इस साल 2021 में 04 सितंबर से शुरू हो कर 11 सितम्बर 2021 तक मनाया जायेगा. इस पर्व के आखिरी दिन यानि 3 सितम्बर 2021, दिन मंगलवार को संवत्सरी प्रतिक्रमण के रूप में मनाया जायेगा.
पर्युशाना पर्व (Paryushana Parva) :
श्वेताम्बर जैन में यह पर्व पर्युशाना (Paryushana) के नाम से जाना जाता है एवं यह भी आठ दिन तक मनाया जाता हैं. इनमे यह पर्व भाद्रपद कृष्ण पक्ष बारस के दिन से शुरू होकर भाद्रपद की शुक्ल पक्ष पंचमी तक चलता हैं.
दसलक्षणा पर्व (Daslakshana Parv)
दिगम्बर जैन में यह दसलक्षणा पर्व के नाम से जाना जाता है, एवम 10 दिनों तक मनाया जाता हैं. दसलक्षणा पर्व भाद्रपद शुक्ल पक्ष पंचमी से शुरू होकर चौदस तक चलता हैं. चौदस के दिन हिन्दुओ की अन्नत चतुर्दशी होती है, जिसे जैन धर्म में इसे संवत्सरी कहा जाता हैं. अनंत चतुर्दशी व्रत कथा एवम पूजा विधि को जानने के लिए पढ़े.
जैन धर्म के अनुसार राखी का त्यौहार , दशहरा और विजयादशमी, दीपावली का त्यौहार आदि सभी हर्षोल्लास के हैं, जिसमे मनुष्य जश्न मनाता हैं. पकवान खाता हैं खिलाता हैं. यह पर्व आपसी प्रेम और भाईचारा बढ़ाने के लिए होते हैं, लेकिन पर्युषण पर्व आत्मा की शुद्धि का पर्व होता हैं. इसमें मन के अन्दर का मेल साफ़ होता हैं. मनुष्य त्याग के महत्त्व को समझता हैं.
मानव जीवन को संतुलित बनाने एवम शुद्ध करने के लिए पर्युषण महापर्व मनाया जाता हैं. भगवान् के भजन कीर्तन एवम पाठ के साथ इसे विधि विधान से उपवास के माध्यम से संपन्न किया जाता हैं.
यह पर्व जीवन के सत्य से मनुष्य की पहचान कराता हैं उसे अपने जीवन का दर्पण दिखाता हैं उसे सत्य स्वीकारने की शक्ति देता हैं उसे क्षमा करना एवम मांगना सिखाता हैं.
क्षमा दिवस क्षमा वाणी (Kshama Vani) :
पर्युषण के अंतिम दिन सभी व्यक्ति एक दुसरे से क्षमा माँगते हैं, यह दिन क्षमा दिवस के नाम से जाना जाता हैं. यह दिवस अहिंसा परमो धर्म के सिधांत पर चलता हैं. इसमें सभी जाने अनजाने होने वाली गलतियों के लिए सभी मनुष्य, जीव- जन्तुओ, पशु- पक्षियों से क्षमा मांगता हैं.क्षमा मांगना एवम करना यह दोनों ही धर्मो में श्रेष्ठ माने जाते हैं और इस तरह के पर्व ऐसे पावन कर्मो के लिए निम्मित बनते हैं.
क्षमावाणी सन्देश :
करबद्ध हैं नमन,
मित्र सखा सभी जीवंत
हो अगर भूल कोई मुझसे
तो क्षमाप्रार्थी हूँ मैं सबसे
यह अनमोल भेंट देकर मुझे
कृतज्ञ करे इस जीवन मैं
उत्तम क्षमा
पर्युषण के दिनों में सभी छात्र एवम पालक रोजाना मंदिर जाते हैं, सत्संग सुनते एवम धार्मिक पाठ करते हैं. अपनी शक्तिनुसार व्रत रखते हैं. जैन धर्म का पूरी तरह पालन करते हैं जैसे प्याज, लहसन, आलू जैसी धरती के नीचे लगने वाली सब्जियाँ नहीं खाते. सूर्यास्त के पहले रात्रि भोजन करते हैं. कई जैनी निर्जला वर्त रखते हैं. कई जैनी एकाश्ना व्रत का पालन करते हैं.
दान का भी बहुत महत्व होता हैं. जैन मंदिरों में दान करते हैं. अपनी श्रद्धानुसार सभी इस दान की परम्परा का निर्वाह करते हैं.
जैन धर्म में गुरु का बहुत अधिक महत्व होता हैं सभी जैन गुरु पर्युषण के समय सामाजिक लोगो को सत्संग देते हैं. सद्मार्ग का उपदेश देते हैं.
चौमासा सभी धर्मो में सर्व श्रेष्ठ होता हैं इन्ही चार महीनो में तप की तरफ प्रेरित करने वाले त्यौहार मनाये जाते हैं. यह ज्ञान हिन्दू , जैन यहाँ तक की मुस्लिम धर्म में भी दिया जाता हैं.
त्यौहारों की भाषा भले ही भिन्न हो पर परिभाषा सदैव समान होती हैं.सभी धर्म त्याग,प्रेम और आपसी भाई चारे का पथ सिखाते हैं. बस सिखाने का तरीका अलग होता हैं.
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