सैम मानेकशॉ की जीवनी (बायोग्राफी, युद्ध, परिवार) (Sam Manekshaw Biography in Hindi) (Biopic Movie, Age, Battles and War, Family, Caste, Awards, Death)
हमारे देश के लिए ही, न जाने कितने वीर पुरुषों ने अपनी बलिदानी दी हुई है. ऐसे वीर पुरुषों की बलिदानी की वजह से ही हम अपने भारत देश में स्वतंत्रता से जी रहे हैं. यदि वह सभी वीर पुरुषों ने अपने मातृभूमि के लिए बलिदानी नहीं दी होती, तो आज हमारे भारत का इतिहास कुछ और ही होता. आज हम आपको एक ऐसे ही महापुरुष के बारे में बताने वाले हैं, जिनके सहयोग से 1971 का युद्ध हमारा देश जीत सका था. भारत के इसी युद्ध के परिणाम स्वरूप एक नए राष्ट्र यानी, कि बांग्लादेश का भी उदय हुआ था.
हम बात करें भारत के पूर्व सेना अध्यक्ष सैम होर्मूसजी फ्रेमजी जमशेदजी मानेकशॉ के बारे में, जिनके बदौलत आज हमारा देश कई ऐतिहासिक युद्ध को जीत चुका है. यह वीर पुरुष कई सारी ऐतिहासिक युद्ध के चश्मदीद गवाह रहे हैं. इतना ही नहीं द्वितीय विश्व युद्ध में भारत के इस वीर पुरुष का भी सहयोग रहा था.
सैम बहुत ही खुले विचारों के व्यक्ति थे, वह अपनी बात को लोगों से खुलकर कहते थे. सैम जी ने एक बार ऐसा हुआ, कि उस समय की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री इंदिरा गांधी जी को मैडम कहने से मना कर दिया, उन्होंने कहा कि संबोधन का प्रयोग केवल खास वर्गों के लिए ही प्रयोग किया जाना चाहिए. तो चलिए जानते हैं, इस महापुरुष की रोमांचक भरी जीवनी के बारे में जिन्हें जानना आप भी पसंद करेंगे.
परिचय | परिचय बिंदु |
पूरा नाम | सैम होर्मूसजी फ़्रेमजी जमशेदजी मानेकशॉ |
अन्य नाम | सैम बहादुर |
जन्म | 3 अप्रैल, 1914 |
जन्म भूमि | अमृतसर, पंजाब |
मृत्यु | 27 जून, 2008 |
मृत्यु स्थान | वेलिंगटन, तमिलनाडु |
पति/पत्नी | सिल्लो बोडे |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | भारतीय सैन्य सेवा |
पुरस्कार-उपाधि | पद्म भूषण, पद्म विभूषण, भारत के पहले फ़ील्ड मार्शल |
विशेष योगदान | 1971 के युद्ध में पाकिस्तान की पराजय और बांग्लादेश जैसे नए राष्ट्र का उदय. |
नागरिकता | भारतीय |
जाति (Caste) | फारसी |
उम्र (Age) | 94 |
सैम जी का प्रारंभिक जीवन एवं प्रारंभिक शिक्षा परिचय ?
देश के इस बहादुर पुरुष का जन्म पंजाब के अमृतसर के एक फारसी परिवार में 13 अप्रैल 1914 को हुआ था. वीर सैम जी के पिता पेशे से डॉक्टर थे और वे गुजरात राज्य के वलसाड शहर में आकर अपने परिवार सहित बस गए थे. उन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा को पंजाब और नैनीताल में स्थित शेरवुड कॉलेज से हासिल किया और कैंब्रिज बोर्ड के स्कूल सर्टिफिकेट परीक्षा में उन्होंने डिक्टेशन हासिल किया.
जैसे कि सैम जी के पिता व्यवसायिक रूप से चिकित्सक थे, तो इसलिए वीर सैम भी अपने करियर में चिकित्सक बनने की चाह रखने लगे थे और चिकित्सक की पढ़ाई करने के लिए वे अपने पिता से लंदन जाने के लिए आग्रह करने लगे थे, परंतु उनके पिताजी ने कहा, कि अभी तुम उम्र में बहुत छोटे हो, तो इसके लिए तुमको अभी थोड़ा समय इंतजार करना पड़ेगा.
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यह कुल पांच भाई थे और इनका नंबर अपने पिता के बच्चों में पांचवें स्थान पर था और इनके भाई लंदन में ही पढ़ाई कर रहे थे, तो इस वजह से भी इनके अंदर और भी उत्सुकता जागृत हो रही थी बाहर देश में जाकर पढने के लिए. परंतु पिता के मना करने के बाद सैम ने देहरादून से इंडियन मिलिट्री एकेडमी में प्रवेश परीक्षा के अंदर बैठने का निर्णय लिया और वे इस परीक्षा में सफल भी हुए थे.
1 अक्टूबर 1932 देहरादून से इंडियन मिलिट्री एकेडमी में ज्वाइन हुए. 4 फरवरी 1934 को ब्रिटिश इंडियन आर्मी में वे सेकंड लेफ्टिनेंट के तौर पर चुने गए. इसी समय से इनके सैनी जीवन का शुभारंभ हुआ था.
सैम मानेकशा जी का सैन्य जीवन ?
ब्रिटिश आर्मी से जॉइनिंग के बाद उन्होंने लगभग चार दशक लंबा सैनिक जीवन व्यतीत किया, जिसमें वह पाकिस्तान से 3 बार युद्ध और चाइना से एक बार युद्ध के चश्मदीद गवाह बने. उन्होंने अपने पूरे सैनिक जीवन में लगभग कई सारे महत्वपूर्ण पदों का कार्यभार संभाला और आखरी में 1969 में उनको भारत का आठवां सेना अध्यक्ष नियुक्त किया गया.
इसी कार्यकाल में उन्होंने 1971 के पाकिस्तान युद्ध में भारतीय सेना की कमान संभाली थी और फिर इसके बाद इनको भारत का पहला फील्ड मार्शल घोषित कर दिया गया. उन्होंने अपनी सेना के कार्यकाल में लगभग कई सारे पदों को संभाला है, जिनमें पहले द्वितीय बटालियन फिर बाद में “द रॉयल एस्कॉट” और उसके बाद चौथे बटालियन और फिर 12वीं फ्रंटियर फोर्स में अपना सहयोग प्रदान करने के लिए उनको अवसर प्रदान किया गया.
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द्वितीय विश्व युद्ध मे सैम जी का योगदान ?
हम आपको बता दें कि 12 फ्रंटियर फोर्स रेजीमेंट का पूरा कार्यभार बर्मा में सैम जी ने संभाला था और उन्होंने युद्ध स्थल पर बहुत ही वीरता भरा परिचय दिया था, जिसके लिए उनको सम्मानित भी किया गया था. द्वितीय विश्वयुद्ध में सैम जिस सेना कंपनी का निर्वहन कर रहे थे, उसमें लगभग 50% सैनिक मारे जा चुके थे. परंतु सैम जी ने हार नहीं मानी और बहादुरी से जापानी सेना का मुकाबला किया और अपने इस युद्ध में उन्होंने अपनी कामयाबी भी हासिल की.
युद्ध की दृष्टि से “पगोडा हिल” नामक स्थान बहुत ही महत्वपूर्ण था और इसी पर अपना आधिपत्य जमाने के समय दुश्मन की तरफ से अंधाधुंध गोली फायरिंग करने की वजह से सैम जी को बुरी तरह जख्मी होना पड़ गया था. उनकी स्थिति बहुत ही गंभीर हो गई थी यहां तक, कि उनके बचने के चांस भी बहुत कम नजर आ रहे थे.
सैम को जख्मी हालत में रंगून के सेना के अस्पताल में भर्ती करना पड़ा था. डॉक्टरों ने उनकी स्थिति को देख साफ मना कर दिया था, कि इनको अब बचाया नहीं जा सकता है. तभी सैम जी को होश आया और एक डॉक्टर ने पूछा, कि आपको क्या हुआ है ? सैम जी ने हंसते हुए जवाब दिया, कि “लगता है शायद किसी गधे ने मुझे लात मार दिया है”.
डॉक्टर ने उनके जज्बे को देख इलाज करना शुरू कर दिया और उन्हें सफलतापूर्वक बचा भी लिया गया था. इस बहादुर योद्धा को बहुत से बड़े-बड़े जिम्मेदारी भरे कार्य सौपें गए, जिन्होंने सफलतापूर्वक उनको पूरा भी किया है.
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भारत के आजादी के बाद भी सैम जी की मातृभूमि के प्रति सेवा ?
- विभाजन से संबंधित सभी मुद्दों पर सैम जी ने कार्य करते हुए अपने बुद्धिमता और कुशलता का भली-भांति परिचय दिया है और इतना ही नहीं भारत देश के शासन निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान निभाया है.
- स्वतंत्रता के समय में 1947 – 1948 में जम्मू और कश्मीर पर चल रहे सभी अभियान पर उन्होंने अपने निपुणता का भली-भांति से प्रदर्शन किया है.
- सैम जी को आर्मी के कमांडर पर पदोन्नति दी गई, वह समय 1963 का था. इतना ही नहीं सैम जी को पश्चिमी कमांडर के रूप में उनके कंधे पर जिम्मेदारी को दे दिया गया.
- नागालैंड में 1964 को चल रहे सभी प्रकार की आतंकवादी गतिविधियों को रोकने के लिए इन को तैनात किया गया और उन्होंने इस कार्य में भी सफलता हासिल की परिणाम स्वरूप इनको 1968 में पद्म – भूषण के सम्मान से सम्मानित किया गया.
1971 के युद्ध में सेना प्रमुख के रूप में किए गए कार्य ?
1969 का समय है, जब सैम जी को भारतीय सेना का प्रमुख बना दिया गया था. उन्होंने अपने इस पद की जिम्मेदारी समझते हुए भारतीय सेना के मारक क्षमता और युद्ध कुशलता को और भी निपुण किया, ताकि भारतीय सेना हर एक परिस्थिति में दुश्मनों का मुकाबला डटकर कर सके. उनके और उनकी सेना के कुशलता का परीक्षण शीघ्र ही देखने को मिला, जब भारत देश ने पश्चिमी पाकिस्तान के विरुद्ध बांग्लादेश की ‘मुक्ति वाहिनी’ का साथ देने का निर्णय लिया.
1971 के उस समय जब देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सैम जी से पूछा, कि क्या हमारी सेना और आप युद्ध के लिए संपूर्ण रूप से तैयार हैं, तो तुरंत ही सैम जी ने उत्तर दिया अभी बिल्कुल भी नहीं हम युद्ध के लिए तैयार हैं. इंदिरा गांधी जी को सैम जी ने बताया, कि ‘मैं सही समय बताऊंगा जब युद्ध में सेना को आगे बढ़ना होगा’. दिसंबर 1971 को वह दिन आ गया जब सेना प्रमुख सैम जी ने पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध छेड़ने का घोषणा किया.
सैम जी के बेहतरीन युद्ध कौशल और युद्ध रणनीतियों की वजह से युद्ध के मात्र 15 दिनों में ही लगभग 90 हजार से अधिक पाकिस्तानी सैनिकों ने भारत के सामने आत्मसमर्पण कर दिया.
और इस ऐतिहासिक युद्ध को पाकिस्तानियों ने हार के रूप में स्वीकार कर लिया. भारतीय सेना ने सभी पाकिस्तानी की सेना का सम्मान पूर्वक आत्मसमर्पण स्वीकार किया और उन्हें बंदी बनाकर एक अच्छे व्यवस्था के साथ भारत में कुछ समय के लिए रखा गया.
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इस महान और वीर पुरुष को मिले कुछ भारतीय सेना की तरफ से पुरस्कार ?
इस वीर पुरुष और मातृभूमि की सेवा करने वाले व्यक्ति को भारतीय सेना द्वारा कुछ सम्मान से सम्मानित किया गया है, जो इस प्रकार निम्नलिखित हैं.
- पद्म विभूषण
- पद्म भूषण
- सैन्य क्रांस
सैम जी के रोमांचक जीवन पर बायोपिक फिल्म बनने वाली है ?
कुछ खबरों और सूत्रों के हवाला से यह पता चला है, कि सैम जी के पूरे रोमांचक जीवन के ऊपर फिल्म बनाई जाएगी जिसमें फिल्मी अभिनेता विक्की कौशल भी लीड रोल में नजर आएंगे.
अभी फिलहाल में इस फिल्म के संबंधित कोई भी जानकारी साफ तौर पर प्रदर्शित नहीं की गई है, परंतु हम यह कह सकते हैं, कि हो सकता है, कि यह फिल्म आपको 2021 में भारतीय सिनेमाघरों में देखने को मिले. यदि हमें अपडेट मिलता है, तो इस फिल्म के बारे में हम आपको अवश्य बताएंगे आप हमारे साथ बने रहे.
सैम मानेकशॉ जी का निधन ?
देश के इस वीर पुरुष का निधन 27 जून 2008 में निमोनिया बीमारी से ग्रसित होकर तमिलनाडु के हॉस्पिटल वेलिंगटन में हुआ. जब उनका स्वर्गवास हुआ तब उनकी उम्र 94 वर्ष की थी.
इंसान के अंदर अगर कुछ करने की इच्छा हो, तो वह हर-एक परिस्थिति में भी अपने आप को बेहतर साबित करने के लिए कुछ न कुछ अवश्य करता रहता है. इनके मातृभूमि की चाह ने हमारे देश के सैनिकों को एक से एक बढ़कर युद्ध ज्ञान इनसे सीखने को मिला. जिन महापुरुषों ने हमारे देश के लिए और अपनी मातृभूमि के लिए अपना सर्वस्व निछावर कर दिया और अपने परिवार अपने माता-पिता की जरा सा भी परवाह नहीं कि केवल और केवल सिर्फ अपनी मातृभूमि के लिए.
ऐसे लोगों को सदैव सम्मान देना एवं उनको याद करना हमारे देश के प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी होनी चाहिए. दुर्भाग्य से ऐसे बहुत से वीर पुरुष हैं, जिनको हमारे देश के नागरिक और हमारे देश की सरकारें कहीं ना कहीं भूलती हुई नजर आ रही है.
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